Friday, June 8, 2018

Third House of kundli and importance in Life

कुंडली में तृतीय भाव– संसार से संवाद का माध्यम
ॐ साईंराम ।।
मित्रों जन्म कुंडली में तृतीय भाव को वीरता और साहस का भाव कहा जाता है। यह हमारी संवाद शैली और उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किये जाने वाले प्रयासों को दर्शाता है। किसी भी तरह के कार्य को करने की इच्छाशक्ति का निर्धारण भी इस भाव से देखा जाता है। यह भाव आपके छोटे भाई-बहनों से भी संबंधित होता है। तृतीय भाव को विभिन्न माध्यमों से भी व्यक्त किया जाता है।

धैर्य भाव: बुरे विचार, स्तन, कान, विशेषकर दायां कान, वीरता, पराक्रम, भाई-बहन, मानसिक शक्ति

तृतीय भाव का महत्व और विशेषता
तृतीय भाव भाई-बहन, बुद्धिमत्ता, पराक्रम, कम दूरी की यात्राएँ, पड़ोसी, नज़दीकी रिश्तेदार, पत्र और लेखन आदि का प्रतिनिधित्व करता है। तृतीय भाव से किसी भी व्यक्ति के साहस, पराक्रम, छोटे भाई-बहन, मित्र, धैर्य, लेखन, यात्रा और दायें कान का विचार किया जाता है। यह भाव दायें कान व स्तन, दृढता, वीरता और शौर्य को भी दर्शाता है। अष्टम भाव से अष्टम होने की वजह से तृतीय भाव जातक की आयु और चतुर्थ भाव से द्वादश होने के कारण माता की आयु का विचार भी इसी भाव से किया जाता
तृतीय भाव की ज्योतिषीय व्याख्या
‘सत्याचार्य’ के अनुसार किसी व्यक्ति की मानसिक शक्ति, दृढ़ संकल्प और भाषा के बारे में जानने के लिए यह भाव देखा जाता है।
‘सर्वार्थ चिन्तामणि’ के अनुसार, यह भाव कुंडली में किसी भी व्यक्ति के लिए दवाई, मित्र, शिक्षा और कम दूरी की यात्राओं को दर्शाता है।
‘ऋषि पाराशर’ ने तृतीय भाव की व्याख्या करते हुए लिखा है कि, यह साहस और वीरता का भाव है। यह हमारी मानसिक क्षमता व स्थिरता, याददाशत और दिमागी प्रवृत्ति आदि को व्यक्त करता है। यह भाव मुख्य रूप से शिक्षा या ज्ञान प्राप्ति के लिए किये गये प्रयासों व झुकाव को दर्शाता है। काल पुरुष कुंडली में तृतीय भाव पर मिथुन राशि का नियंत्रण रहता है और इसका स्वामी बुध ग्रह होता है।
तृतीय भाव छोटे भाई-बहन, कजिन, प्रियजन, कर्ज से मुक्ति और पड़ोसियों के बारे में बताता है। सहज स्थान होने की वजह से यह भाव व्यक्ति को मिलने वाली मदद और अपने कार्य को पूरा करने के लिए मिलने वाली सहायता को दर्शाता है।
उत्तर कालामृत में कालिदास कहते हैं कि तृतीय भाव युद्ध, सड़क के किनारे वाला स्थान, मानसिक भ्रम की स्थिति, दुःख, सैनिक, कंठ, भोजन, कान, शुद्ध भोजन, संपत्ति का विभाजन, अंगुली और अंगूठे के बीच का स्थान, महिला सेवक, छोटे वाहन की यात्रा और धर्म को लेकर प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी को दर्शाता है।
जातक परिजात’ में कहा गया है कि, तृतीय भाव छोटे भाई-बहनों के कल्याण, प्रतिष्ठान, कान, चुनिंदा गहने, वस्त्र, स्थिरता, वीरता, शक्ति, जड़ युक्त खाद्य पदार्थ और फल आदि को दर्शाता है।
तृतीय भाव साहस, छोटी दूरी की यात्रा (साइकिल, ट्रेन, नदी, झील और वायु मार्ग के माध्यम से) का संकेत करता है। यह सभी प्रकार के पत्राचार, लेखन, अकाउंटिंग, गणित, समाचार, संचार के माध्यम जैसे- पोस्ट ऑफिस, लेटर बॉक्स, टेलीफोन, टेलीग्राफ, टेलीप्रिंट, टेलीविजन, टेली कम्युनिकेशन, रेडियो, रिपोर्ट, सिग्नल, एयर मेल आदि का प्रतिनिधित्व करता है।
तृतीय भाव किताब और प्रकाशन से संबंधित भी होता है, अतः इस भाव के प्रभाव से कोई भी व्यक्ति भविष्य में संपादक, रिपोर्टर, सूचना अधिकारी और पत्रकार बन सकता है। यह भाव निवास परिवर्तन, बेचैनी, बदलाव और परिवर्तन, पुस्तकालय, बुक स्टोर, भाव-राव, हस्ताक्षर (कॉन्ट्रेक्ट या समझौते पर) मध्यस्थता आदि का कारक भी होता है। इसके अलावा यह भाव हाथ, बांह, श्वसन और तंत्रिका तंत्र को भी दर्शाता है।
मेदिनी ज्योतिष के अनुसार तृतीय भाव परिवहन, टेलीकम्युनिकेशन, पोस्टल सर्विसेज, पड़ोसी देश और अन्य देशों के साथ संधियों को व्यक्त करता है।
वहीं नाड़ी ज्योतिष के अनुसार तृतीय भाव जातक के माता-पिता के पुनर्विवाह को भी दर्शाता है, यदि तृतीय भाव में एक से ज्यादा ग्रह स्थित हों।

प्रश्न ज्योतिष के अनुसार तृतीय भाव संचार के सभी माध्यमों को दर्शाता है। चाहे वह पत्र, पोस्टल डिलीवरी, टेलीफोन, फैक्स या इंटरनेट हो।

तृतीय भाव का अन्य भावों से अंतर्संबंध
वैदिक ज्योतिष में तृतीय भाव का संबंध संचार, संवाद, हाथों की मूवमेंट, शारीरिक पुष्टता, स्वयं के द्वारा की जाने वाली लंबी दूरी की यात्रा को दर्शाता है। यदि आप कोई काम अपने हाथों में लेकर उसे पूरा करते हैं, तो इसका बोध कुंडली में तृतीय भाव के माध्यम से किया जाता है। यह ड्राइविंग, कला, मीडिया, एंटरटेनमेंट, रोड, लेखन और आदेश, जो आप अपने नजदीकी रिश्तेदार या भाई-बहनों को संदेश के रूप में देते हैं। किसी भी कार्य को करने की क्षमता या यात्रा के बारे में तृतीय भाव से देखा जाता है।

यह भाव धन बढ़ोत्तरी के लिए किये जाने वाले प्रयासों को भी दर्शाता है। यह माता का भाव भी होता है। यद्यपि चतुर्थ भाव माता का प्रतिनिधित्व करता है इसलिए कुंडली में तृतीय भाव से भी माता के संबंध में अध्ययन किया जाता है। यह भाव जीवन में खुशियों का अभाव या घर की खुशियों की कमी को भी दर्शाता है। यह आशा, कामना और बच्चों की इच्छा (विशेषकर पहली संतान), वृद्धि, सफलता, बच्चों को मिलने वाले पुरस्कार, जॉब, करियर, प्रशासनिक सेवा, बच्चों का व्यावसायिक लोन, वीरता और शत्रुओं से सामना करने का साहस, धर्म, गुरुजन और जीवनसाथी के सलाहकार को भी दर्शाता है।
तृतीय भाव बड़े परिवर्तन और ससुराल पक्ष में किसी की मृत्यु का बोध भी कराता है। यह अष्टम भाव से अष्टम पर स्थित होता है इसलिए मृत्यु जैसे विषयों का अनुभव कराता है। यह आपके जीवनसाथी के गुरु और जीवनसाथी के पिता का बोध भी कराता है। यह भाव कर्ज, बीमारी, आपके बड़े भाई-बहनों के बच्चे, आध्यात्मिक कर्मों के संचय को भी दर्शाता है। क्या आपको मोक्ष की प्राप्ति होगी, क्या आप विदेश यात्रा पर जाएंगे, क्या आप अस्पताल में भर्ती होंगे आदि ये सभी बाते तृतीय भाव द्वारा व्यक्त की जाती है।

लाल किताब के अनुसार तृतीय भाव
लाल किताब के अनुसार, तृतीय भाव भाई-बहन, संधि या समझौता, आपके हाथ, मजबूती, कलाई, युद्ध क्षेत्र, रिश्तेदार और घर की साज-सज्जा को दर्शाता है।
ज्योतिष ग्रन्थों के अनुसार, मंगल ग्रह तृतीय भाव का स्वामी होता लेकिन बुध ग्रह भी इस भाव को नियंत्रित करता है। इसलिए व्यक्ति पर इन दोनों ग्रहों का मिश्रित प्रभाव देखने को मिलता है। यह भाव नवम भाव के स्वामी और एकादश भाव के स्वामी के माध्यम से सक्रिय होते हैं। यदि ये दोनों भाव खाली होते है तो, तृतीय भाव निष्क्रिय या सामान्य रहता है। यह किसी भी प्रकार का फल प्रदान नहीं करता है।
तृतीय भाव एक प्रमुख भाव है, क्योंकि यह हमारे संदेश को बाहर की दुनिया और मित्रों के बीच, सोशल मीडिया, मनोरंजन, ऑनलाइन माध्यम, सेलफोन, स्मार्टफोन या संचार के अन्य किसी उपकरण के द्वारा प्रसारित करता है, इसलिए यह एक मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है।
ॐ साईंराम ।।
डॉ संजय गील
श्री साईं ज्योतिष अनुसंधान केंद्र
चितौड़गढ़
www.sanjaygeelastrology.com

Monday, April 9, 2018

Remedies for judicial disputes

कोर्ट कचहरी से निजात के ज्योतिषीय उपाय
श्री गुरुदेवदत्त।।
मित्रो आज हम बता रहे है वे आसान उपाय जिन्हें आज़माकर कोई भी कोर्ट में चल रहे बेमतलब के विवाद से निजात पा सकता है।उपाय इस प्रकार है-
यदि आप  ग्यारह हकीक पत्थर लेकर किसी मंदिर में चढ़ा  दें और कहें की मैं अमुक कार्य में विजय होना चाहता हूँ तो निश्चय ही उस कार्य में विजय प्राप्त होती है ।
दूसरा आसान उपाय यह है कि यदि आप पहली बार कोर्ट गए है तो आते समय किसी भी मजार पर गुलाब के फूल पेश कर घर लौटे और हर बार करते रहे। शीघ्र ही आपको इस चिंता से राहत मिल जाएगी।
ॐ साईंराम ।।
आपका
डॉ संजय गील
श्री साईं ज्योतिष अनुसंधान केंद्र, चितौड़गढ़
Www.sanjaygeelastrology.com

Friday, March 9, 2018

How to change planets

आओ जाने ज्योतिष
रूठे ग्रहों को मनाए ऐसे
श्री गुरुदेवदत्त।
सभी को सायंकालीन प्रणाम।
आज बताया जा रहा है किस प्रकार दयाभाव और परोपकार द्वारा ग्रहो की कृपा पायी जा सकती है।

उदाहरणस्वरूप बेवजह कुत्तों को कष्ट देने से राहु की उग्रता बढऩे लगती है अतः कुत्तों को भोजन कराने से कुंडली में राहु की नाराजगी कम की जा सकती  है। वास्तव में आध्यात्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से सम्पूर्ण विश्व कर्म प्रधान है। हमारे शास्त्र भी कर्म बंधन की बात करते हैं। ‘कर्म प्रधान विश्व रचि राखा, जो जस कराई तो तस फलि चाखा, सकल पदार्थ है जग माही, कर्म हीन पर पावत नाहीं।’

पदार्थ कभी नष्ट नहीं होता है केवल रूप बदल जाता है। इसी प्रकार किया गया कर्म भी कभी निष्फल नहीं होता है। हम जैसा कर्म करते हैं वैसा ही फल पाते हैं।
ग्रहों को प्रसन्न करने के लिए उपासना, यज्ञ और रत्न आदि धारण करने का विधान है। हम लोग जड़ की अपेक्षा सीधे जीव से संबंध स्थापित रखें तो ग्रह अतिशीघ्र प्रसन्न हो सकते हैं।
वेदों में कहा गया है कि
मातृ देवो भव: पितृ देवो भव: गुरु देवो भव: अतिथि देवो भव:।
हमारे शास्त्रों में सूत्र संकेतों के रूप में हैं जिन्हें समझने की कोशिश करनी चाहिए।
अभिवादन शीलस्य नित्य
वृद्धोपसेविन:।
चत्वारि तस्य वर्धते,
आयुर्विद्या यशो बलं॥

अर्थात मात्र प्रणाम करने से, सदाचार के पालन से एवं नित्य वृद्धों की सेवा करने से आयु, विद्या, यश और बल की वृद्धि होती है। भगवान श्रीगणेश अपने माता-पिता में त्रैलोक समाहित मान कर उनका पूजन और प्रदक्षिणा चक्कर लगाना) करने से प्रथम पूज्यनीय बन गए। यदि हम जीवों के प्रति परोपकार की भावना रखें तो अपनी कुंडली में ग्रहों की रुष्टता को न्यूनतम कर सकते हैं।

नवग्रह इस चराचर जगत में पदार्थ, वनस्पति, तत्व, पशु-पक्षी इत्यादि में अपना वास रखते हैं। इसी तरह ऋषियों ने पारिवारिक सदस्यों और आसपास के लोगों में भी ग्रहों का प्रतिनिधित्व बताया है। माता-पिता दोनों के संयोग से किसी जातक का जन्म होता है इसलिए सूर्य आत्मा के साथ-साथ पिता का प्रतिनिधित्व करता है और चंद्रमा मन के साथ-साथ मां का प्रतिनिधित्व करता है।

योग शास्त्र में दाहिने स्वर को सूर्य और बाएं को चंद्रमा कहा गया है। श्वास ही जीवन है और इसको देने वाले सूर्य और चंद्र हैं। योग ने इस श्वास को प्राण कहा है। आजकल ज्योतिष में तरह-तरह के उपाय प्रचलित हैं परन्तु व्यक्ति के आचरण संबंधी और जीव के निकट संबंधियों से जो उपाय शास्त्रों में वर्णित हैं कदाचित वे चलन में नहीं रह गए हैं।

यदि कुंडली में सूर्य अशुभ स्थिति में हो, नीच का हो, पीड़ित हो तो कर्मविपाक सिद्धांत के अनुसार यह माना जाता है कि पिता रुष्ट रहे होंगे तभी जातक सूर्य की अशुभ स्थिति में जन्म पाता है। सूर्य के इस अनिष्ट परिहार के लिए इस जन्म में जातक को अपने पिता की सेवा करनी चाहिए और प्रात: उनके चरण स्पर्श करे और अन्य सांसारिक क्रियाओं से उन्हें प्रसन्न रखें तो सूर्य अपना अशुभ फल कम कर सकते हैं।

यदि सूर्य ग्रह रुष्ट हैं तो पिता को प्रसन्न करें, चंद्र रुष्ट है तो माता को प्रसन्न करें, मंगल रुष्ट है तो भाई-बहन को प्रसन्न करें, बुध रुष्ट है तो मामा और बंधुओं को प्रसन्न करें, गुरु रुष्ट है तो गुरुजन और वृद्धों को प्रसन्न करें, शुक्र रुष्ट है तो पत्नी को प्रसन्न करें, शनि रुष्ट है तो दास-दासी को प्रसन्न करें और यदि केतू रुष्ट है तो कुष्ठ रोगी को प्रसन्न करें। ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार यदि हम प्रेम-सत्कार और आदर का भाव रख कर ग्रहों के प्रति व्यवहार करें तो रुष्ट ग्रह की नाराजगी को शांत किया जा सकता है।
ॐ साईंराम।।
आपका
डॉ संजय गील
श्री साईं ज्योतिष अनुसंधान केंद्र चितोडगढ़
Www.sanjaygeelastrology.Com
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