Monday, October 9, 2023

शारदीय नवरात्रि : बुधादित्य योग में माँ नवदुर्गा बरसायेगी भक्तो पर विशेष कृपा

 

शारदीय नवरात्रि

बुधादित्य योग में माँ नवदुर्गा बरसायेगी भक्तो पर विशेष कृपा

मां भगवती को समर्पित शारदीय नवरात्रि पर्व आदिशक्ति के उपासकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया  है मुख्यतः  मां दुर्गा की उपासना नवरात्रि के रूप में वर्ष में दो गुप्त नवरात्रि और दो चैत्र व शारदीय नवरात्रि के रूप में की जाती   है  शारदीय नवरात्रि अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होती है  हिंदू पंचाग के आधार पर ज्योतिषाचार्य डॉ संजय गील  ने बताया की इस बार शारदीय नवरात्रि ज्योतिष के बुधादित्य  योग में प्रतिपदा 15 अक्टूबर 2023 से शुरू होकर नवमी तिथि 23 अक्टूबर तक रहेगी।साथ ही  24 अक्टूबर 2023, बुधवार को विजयदशमी या दशहरा का पर्व मनाया जाएगा

शारदीय नवरात्रि पर बन रहा शुभ संयोग

इस बार आरंभ होने वाले शारदीय नवरात्रि ज्योतिष गणना और धार्मिक मान्यता के अनुसार बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योकि 30 वर्षो के पश्चात  शारदीय नवरात्रि की शुरुआत ग्रहों के राजा सूर्य और बुद्ध द्वारा बनाए गए बुधादित्य योग में होगी ज्योतिष गणना के अनुसार इस योग में शुरू हो रही नवरात्रि कई मानव जीव के लिए बहुत लाभकारी है साधना में सफलता मिलेगी वहीं भक्तों में पराक्रम और घर में धन की वृद्धि होती है

गज  पर सवार माँ दुर्गा करेगी सबका कल्याण :-

प्रतिवर्ष आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शारदीय नवरात्र उत्सव का प्रारंभ होता है एवं मान्यता है कि  हर नवरात्री में माँ नवदुर्गा किसी न किसी वाहन पर सवार होकर आती है इससे यह पता चलता है कि यह वर्ष कैसा रहेगा माता का आगमन और प्रस्थान दोनों ही महत्वपूर्ण माना जाता हैइस वर्ष 2023 में मां दुर्गा शारदीय नवरात्रि में हाथी पर सवार होकर आ रही है जब भी सोमवार के दिन नवरात्रि की शुरुआत होती है तो माता का वाहन हाथी होता है इसे अति शुभ माना जाता है इससे जलवृद्धि होगी यानी इस वर्ष पानी की कमी नहीं रहेगी इस साथ खेती फसल अच्‍छी रहेगी और जो भी व्रत का पालन करेगा उसके घर में सुख, शांति और समृद्धि रहेगी

देवी भागवत के श्लोक में कहाँ गया है कि,शशि सूर्य दिने यदि सा विजया महिषागमने रुज शोककराशनि भौमदिने यदि सा विजया चरणायुध यानि करी विकलाबुधशुक्र दिने यदि सा विजया गजवाहन गा शुभ वृष्टिकरासुरराजगुरौ यदि सा विजया नरवाहन गा शुभ सौख्य करा॥

शारदीय नवरात्रि घटस्थापना मुहूर्त-

हिंदू पंचांग के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ। संजय गील ने बताया है कि अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 14 अक्टूबर 2023 को रात्री  11 बजकर 24 मिनट पर आरंभ होगी एवं  15 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 32 मिनट पर समाप्त होगी इस प्रकार उदयातिथि के आधार  शारदीय नवरात्रि का पहला दिन 15 अक्टूबर को है और इस दिन मां शैलपुत्री की विधिवत पूजा की जाती है नवरात्रि के पहले दिन ही कलश या घट स्थापना भी की जाएगी कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 15 अक्टूबर को सुबह 11 बजकर 48 मिनट से दोपहर 12 बजकर 36 मिनट तक रहेगा इस तरह से कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त की अवधि केवल 48 मिनट की है

घटस्थापना तिथि -   रविवार 15 अक्टूबर 2023

घटस्थापना मुहूर्त -   प्रातः 06:30 मिनट से प्रातः 08: 47  मिनट तक

अभिजित मुहूर्त -  सुबह 11:48 मिनट से दोपहर 12:36 मिनट तक

 नवरात्रि कलश या घट स्थापना विधि-

नवरात्रि में कलश या घटस्थापना करने से पहले उस जगह को गंगा जल से शुद्ध किया जाता है कलश को पांच तरह के पत्तों से सजाया जाता है और उसमें हल्दी की गांठ, सुपारी, दूर्वा, आदि रखी जाती है कलश को स्थापित करने के लिए उसके नीचे बालू की वेदी बनाई जाती है जिसमें जौ बोये जाते हैं जौ बोने की विधि धन-धान्य देने वाली देवी अन्नपूर्णा को खुश करने के लिए की जाती है मां दुर्गा की फोटो या मूर्ति को पूजा स्थल के बीचों-बीच स्थापित करते है जिसके बाद मां दुर्गा को श्रृंगार, रोली ,चावल, सिंदूर, माला, फूल, चुनरी, साड़ी, आभूषण अर्पित करते हैं कलश में अखंड दीप जलाया जाता है जिसे व्रत के आखिरी दिन तक जलाया जाना चाहिए 

कलश स्थापना के नियम

नवरात्रि में कलश स्थापना का विशेष महत्व है कलश स्थापना को घट स्थापना भी कहा जाता है नवरात्रि की शुरुआत घट स्थापना के साथ ही होती है घट स्थापना शक्ति की देवी का आह्वान है। मान्यता है कि गलत समय में घट स्थापना करने से देवी मां क्रोधित हो सकती हैं।रात के समय और अमावस्या के दिन घट स्थापित करने की मनाही है। घटस्थापना का सबसे शुभ समय प्रतिपदा का एक तिहाई भाग बीत जाने के बाद होता है। किसी कारण वश आप उस समय कलश स्थापित न कर पाएं तो अभिजीत मुहूर्त में भी स्थापित कर सकते हैं। प्रत्येक दिन का आठवां मुहूर्त अभिजीत मुहूर्त कहलाता है। सामान्यत: यह 40 मिनट का होता है। हालांकि इस बार घट स्थापना के लिए अभिजीत मुहूर्त उपलब्ध नहीं है।

कलश स्थापना की सामग्री

मां दुर्गा को लाल रंग खास पसंद है इसलिए लाल रंग का ही आसन खरीदें। इसके अलावा कलश स्थापना के लिए मिट्टी का पात्र, जौ, मिट्टी, जल से भरा हुआ कलश, मौली, इलायची, लौंग, कपूर, रोली, साबुत सुपारी, साबुत चावल, सिक्के, अशोक या आम के पांच पत्ते, नारियल, चुनरी, सिंदूर, फल-फूल, फूलों की माला और श्रृंगार पिटारी भी चाहिए।

कैसे करें नवरात्रि में कलश स्थापना ?

नवरात्रि के पहले दिन यानी कि प्रतिपदा को सुबह स्नान कर लें। मंदिर की साफ-सफाई करने के बाद सबसे पहले गणेश जी का नाम लें और फिर मां दुर्गा के नाम से अखंड ज्योत जलाएं। कलश स्थापना के लिए मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालकर उसमें जौ के बीज बोएं। अब एक तांबे के लोटे पर रोली से स्वास्तिक बनाएं। लोटे के ऊपरी हिस्से में मौली बांधें। अब इस लोटे में पानी भरकर उसमें कुछ बूंदें गंगाजल की मिलाएं। फिर उसमें सवा रुपया, दूब, सुपारी, इत्र और अक्षत डालें। इसके बाद कलश में अशोक या आम के पांच पत्ते लगाएं। अब एक नारियल को लाल कपड़े से लपेटकर उसे मौली से बांध दें। फिर नारियल को कलश के ऊपर रख दें। अब इस कलश को मिट्टी के उस पात्र के ठीक बीचों बीच रख दें जिसमें आपने जौ बोएं हैं। कलश स्थापना के साथ ही नवरात्रि के नौ व्रतों को रखने का संकल्प लिया जाता है। आप चाहें तो कलश स्थापना के साथ ही माता के नाम की अखंड ज्योति भी जला सकते हैं।

शारदीय नवरात्रि में किस दिन कौन सी देवी की पूजा होगी?

·        15 अक्टूबर 2023 दिन रविवार को मां शैलपुत्री की पूजा होगी मां शैलपुत्री को नारंगी रंग पसंद है इस दिन घी का भोग लगाया जाता है मां शैलपुत्री की पूजा करने से रोगों से मुक्ति मिलती है

             मंत्र - ह्रीं शिवायै नम:

·        16 अक्टूबर 2023 दिन सोमवार को मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होगी मां ब्रह्मचारिणी को सफेद रंग पसंद है इस दिन चीनी का भोग लगाने पर आयु में वृद्धि होती है

मंत्र- ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:

·        17 अक्टूबर 2023 दिन मंगलवार मां चंद्रघंटा की पूजा होगी मां चंद्रघंटा को लालरंग पसंद है इस दिन दूध से बनी मिठाई खीर का भोग लगाने पर शारिरिक, मानसिक और आर्थिक संकटों से मुक्ति मिलती है

मंत्र- ऐं श्रीं शक्तयै नम:

·        18 अक्टूबर 2023 दिन बुधवार को मां कुष्मांडा की पूजा की जाएगी मां कुष्मांडा को ब्लू रंग पसंद है इस दिन मालपुए का भोग लगाने पर बुद्धि में वृद्धि होती है

              मंत्र- ऐं ह्री देव्यै नम:

·        19 अक्टूबर 2023 दिन गुरुवार को मां स्कंदमाता की पूजा होगी मां स्कंदमाता को पीला रंग पसंद है इस दिन केले का भोग लगाने पर अच्छा स्वास्थ्य बना रहता है

              मंत्र- ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:

·        20 अक्टूबर 2023 दिन शुक्रवार को मां कात्यायनी की पूजा करने का विधान है मां कात्यायनी को हरा रंग पसंद है इस दिन शहद का भोग लगाने पर आकर्षण और सकारात्मकता परिणाम मिलता है

              मंत्र- क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:

·        21 अक्टूबर 2023 दिन शनिवार मां कालरात्रि की पूजा की जाती है मां कालरात्रि को ग्रे रंग पसंद है गुड़ और गुड़ से बनी चीजों का भोग लगाने पर शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में आप सफल होंगे

              मंत्र- क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:

·        22 अक्टूबर 2023 दिन रविवार को मां महागौरी की पूजा होगी मां महागौरी को बैंगनी रंग पसंद है इस दिन नारियल का भोग लगाने पर धनलाभ और संतान सुख की प्राप्ति होती है

             मंत्र- श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:

·        23 अक्टूबर 2023 दिन सोमवार को मां सिद्धिदात्री की पूजा होगी मां सिद्धिदात्री को मोरपंखी पसंद है इस दन हलवा, पुरी चना का भोग लगाने पर घर में सुख समृद्धि आती है

             मंत्र- ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:

·        24 अक्टूबर 2023 - मां दुर्गा प्रतिमा विसर्जन, दशमी तिथि (दशहरा)

 

कुंडली विश्लेषण , वास्तु परामर्श , रत्न जानकारी सहित अन्य ज्योतिषीय सेवाओ हेतु संपर्क करे-

डॉ. संजय गील ,

साईं  एस्ट्रो  विज़न सोसायटी , चितौड़गढ़

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Friday, October 6, 2023

क्या आपने किया पितृपक्ष में ये अचूक उपाय

 श्राद्ध पक्ष में करे पितृदोष की शांति का सरल उपाय

आज बताया जा रहा है कि कैसे आसानी से पायें पितृदोष से शांति—पीपल के पास यह चमत्कारी मंत्र बोल कर—

शास्त्रों के मुताबिक पितृ ऋण से मुक्ति के लिये पितृपक्ष में पितरों का स्मरण बहुत ही शुभ फल देता है। इसके लिए श्राद्ध का महत्व बताया गया है। किंतु शास्त्र कहते हैं कि नियत तिथि या काल में पितरों की शांति न होने पर परिवार में पितृदोष उत्पन्न होता है। यह पितृदोष जीवन में अनेक तरह रोग, परेशानियां व अशांति लाने वाला माना गया है।

शास्त्रों की मानें तो अगर आप भी जीवन में तन, मन या आर्थिक परेशानियों से जूझ रहें हैं तो पितृदोष के संकेत हो सकते हैं। जिसके लिये पितृपक्ष या अमावस्या जैसी तिथियों पर श्राद्धकर्म, तर्पण अचूक उपाय है। किंतु अगर इस कर्मों को करने में वक्त या धन की समस्या आए तो यहां बताया जा रहा है एक ऐसा सरल उपाय जो पितृदोष से मुक्ति ही न देगा, बल्कि घर-परिवार में सुख-समृद्धि भी लाएगा -

यह उपाय है पीपल या वट की पूजा। शास्त्रों में पितरों को भगवान विष्णु का रूप भी बताया गया है। भगवान विष्णु का ही एक स्वरूप पीपल भी है। इसलिए यहां बताए सरल उपाय से श्राद्धपक्ष में पीपल पूजा करें -

श्राद्धपक्ष में पीपल वृक्ष की गंध, अक्षत, तिल व फूल चढ़ाकर पूजा करें। दूध या दूध मिला जल चढ़ाकर पीपल के नीचे एक गोघृत यानी गाय के घी का दीप जलाएं। दूध से बनी खीर का भोग लगाएं।

दीप जलाकर पीपल के नीचे स्वच्छ स्थान पर कुश का आसन बिछाकर पितृरों को नीचे लिखे मंत्र से स्मरण करें। चंदन की माला से इस मंत्र की 1, 3 या 5 माला कर विष्णु आरती करें —–

ऊँ ऐं पितृदोष शमनं हीं ऊँ स्वधा

आरती कर पीपल पूजा का जल घर में लाकर छिड़कें व प्रसाद घर-परिवार के सदस्यों को खिलाए।

ॐ साईंराम ।।

डॉ संजय गील

श्री साईं ज्योतिष अनुसंधान केंद्र चितोडगढ़

9829747053

Thursday, October 5, 2023

श्राद्ध पक्ष : अष्टमी का श्राद्ध क्यों है इतना ख़ास

श्राद्ध पक्ष : अष्टमी का श्राद्ध क्यों है इतना ख़ास

वर्तमान में  श्राद्ध पक्ष चल रहा  हैं। जैसा की विदित है कि जिनका भी देहांत जिस भी तिथि को हुआ है उनका श्राद्ध उन तिथि में ही किया जाता है, परंतु कुछ तिथियां महत्वपूर्ण होती है। इसी क्रम में  अष्टमी तिथि के श्राद्ध अत्यधिक महत्व  है।  मान्यता है कि श्राद्ध काल मध्यान्ह काल में ही किया जाना चाहिये । इस बार अष्टमी का श्राद्ध शुक्रवार, 6 अक्टूबर 2023, को है

अष्टमी के श्राद्ध का महत्व  

1. श्राद्ध पक्ष की अष्‍टमी को कालाष्‍टमी और भैरव अष्टमी भी कहते हैं। 

2. अष्टमी को गजलक्ष्मी का व्रत भी रखा जाता है जो कि दिवाली की लक्ष्मी पूजा से ज्यादा महत्वपूर्ण है।  

3. अष्टमी के श्राद्ध पर खरीदारी की जा सकती है।

4. अष्टमी को जिनका देहांत हुआ है उनका श्राद्ध इस दिन करना चाहिए। 

5. जो अष्टमी को श्राद्ध करता है वह सम्पूर्ण समृद्धियां प्राप्त करता है। 

6. यदि निधन पूर्णिमा तिथि को हुई हो तो उनका श्राद्ध अष्टमी, द्वादशी या पितृमोक्ष अमावस्या को किया जा सकता है। 

7.अष्टमी के श्राद्ध के दिन महिलाएं अपने परिवार और बच्चों के लिए व्रत रखती है। 

8. अष्टमी के श्राद्ध के दिन विधिवत श्राद्ध करने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है

ऐसे  करे अष्टमी का श्राद्ध

सर्वप्रथम कुश आसन पर पूर्वमुखी होकर बैठें। देव, ऋषि और पितरों के लिएद धूप-दीप जलाएं, फूल माला चढ़ाएं और सुपारी रखें। साथ ही  एक थाली में जल में तिल, कच्चा दूध, जौ, तुलसी मिलाकर रख लें। पास में ही खाली तरभाणा या थाली रखें। तत्पश्चात कुशे की अंगूठी बनाकर अनामिका अंगुली में पहनकर हाथ में जल, सुपारी, सिक्का, फूल लेकर तर्पण का संकल्प लें।इसी क्रम में जल, कच्चा दूध, गुलाब की पंखुड़ी डाले, फिर हाथ में चावल लेकर देवता एवं ऋषियों का आह्वान करें। 

अब मंत्र उच्चारण करते हुए पहली थाली से जल लेकर दूसरी में अंगुलियों से ऋषि एवं देवता और अंगूठे से पितरों को अर्पित करें। ध्यान रखें कि पूर्व की ओर देवता, उत्तर की ओर ऋषि और दक्षिण की ओर मुख करके पितरों को जल अर्पित करें। कुश के आसन पर बैठकर पितरों के निमित्त अग्नि में गाय का दूध, दही, घी एवं खीर अर्पित करें। इसके बाद गाय, कुत्ता, कौवा और अतिथि के लिए भोजन से चार ग्रास निकालकर अलग रखें। अंत में ब्राह्मण, दामाद या भांजे को भोजन कराएं और तब खुद भोजन करें।

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