शरद पूर्णिमा
भगवान विष्णु तथा महालक्ष्मी की उपासना से होगा जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन
सनातन धर्म में प्रतिवर्ष आश्विन माह की पूर्णिमा को शरद अथवा कोजागरी पूर्णिमा पर्व मनाया जाता हैं। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्र की कलाओ से अमृत की वर्षा होती है अतः इस दिन दूध से बनी खीर को खुले आसमान या घर की छत पर रखा जाता है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की चांदनी में खीर औषधीय गुणों से भरपूर होकर सभी रोगों को दूर करने में असरदार होती हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन भगवान श्री कृष्ण ने ब्रज में रासलीला रचाई थी। इसी दिन समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ था। ज्योतिषीय गणना के आधार पर ज्योतिषाचार्य डॉ. संजय गील ने बताया कि चन्द्रमा प्रतिमास 27 नक्षत्रों में भ्रमण करता है,जिसमे आश्विन नक्षत्र की पूर्णिमा आरोग्यदायी माना गया है, क्योकि इस नक्षत्र में ही चंद्रमा अपनी 16 कलाओं यथा अमृत, मनदा, पुष्प, पुष्टि, तुष्टि , ध्रुति, शाशनी, चंद्रिका, कांति, ज्योत्सना, श्री, प्रीति, अंगदा, पूर्णऔर पूर्णामृत से संपूर्ण होकर पृथ्वी के सबसे निकट माना गया है। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत की बूंदें झरती हैं। ज्योतिषीय मान्यताओ के आधार पर शरद पूर्णिमा पर चांदी के बर्तन से चन्द्र को अर्ध्य प्रदान करने से चंद्र ग्रह सबंधित दोष दूर होते है ।
शरद पूर्णिमा शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के आधार पर ज्योतिषाचार्य डॉ. संजय गील ने बताया की आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा सोमवार 6 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 23 मिनट से प्रारंभ होकर मंगलवार, 7 अक्टूबर सुबह को 09 बजकर 16 मिनट पर पर समाप्त होगी। इस प्रकार शरद पूर्णिमा पर्व सोमवार 06 अक्टूबर को मनाया जाकर प्रसाद के रूप में खीर भी उसी रात्री को ही रखी जाएगी। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्र देव की पूजा का विधान है। इस दिन चंद्रोदय शाम को शाम 05 बजकर 27 मिनट पर होगा । वहीं उदय व्यापिनी सिद्धांत को ग्रहण करते हुए स्नान एवं दान का विधान मंगलवार 7 अक्टूबर को करना शास्त्र सम्मत होगा ।शरद पूर्णिमा के दिन दोपहर 12 बजकर 23 मिनट से रात में 10 बजकर 53 मिनट तक भद्रा रहेगी। हालांकि पूर्णिमा में भद्रा का विचार नहीं किया जाता है, लेकिन इस दौरा शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। तदापि चन्द्र रौशनी में खीर रात्रि 11:00 बजे पश्चात रखनी चाहिए ।
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ:
06 अक्टूबर 2025 को दोपहर 12 बजकर 23 मिनट पर।
पूर्णिमा तिथि समाप्त
07 अक्टूबर 2025 को सुबह 09 बजकर 16 मिनट पर।
*चन्द्र दर्शन शुभ मुहूर्त*- रात 08:30 बजे से लेकर प्रातः 04 :00 तक। विशेष रूप से रात 11:30 बजे से 12:30 बजे
का समय चंद्र पूजन और दर्शन के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
चंद्रमा को अर्घ्य देने का मंत्र- गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते। गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक
इन देवी-देवताओ का करें पूजन : आश्विन माह की पूर्णिमा को बेहद फलदायी माना गया है। यह दिन भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी और चंद्र देव को समर्पित है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन पूजा-पाठ और दान अवश्य करना चाहिए। इससे धन और सौभाग्य में वृद्धि होती है।साथ ही यह भी कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन भगवान श्री कृष्ण वृंदावन में गोपियों के संग महारास रचा रहे थे अतः इस दिवस भगवान् लक्ष्मीनारायण की विशेष पूजा कर विष्णु सहस्त्रनाम एवं कनकधारा का पाठ करना चाहिये मान्यता है कि इस दिन माता लक्ष्मी पृथ्वी लोक पर भ्रमण करती हैं और जो भी व्यक्ति जागते हुए भक्ति भाव में लीन होता है उसे सुख-समृद्धि का वरदान देती हैं। इस दिन रात्रि जागरण करते हुए मां लक्ष्मी के निमित्त दीपदान भी करने का विधान बताया गया है।
Dr. Sanjay Geel
Sai Astrovision Society Chittorgarh
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