Monday, October 14, 2024

Sharad Purnima 2024 Shubh Muhurat ( भगवान विष्णु तथा महालक्ष्मी की उपासना से होगा जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन)

 

 

शरद पूर्णिमा

 भगवान विष्णु तथा महालक्ष्मी की उपासना  से होगा जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन

सनातन धर्म प्रतिवर्ष आश्विन माह की पूर्णिमा को शरद अथवा कोजागरी पूर्णिमा पर्व मनाया जाता   हैं। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्र की कलाओ से अमृत की वर्षा होती है। इसलिए इस दिन दूध से बनी खीर को खुले आसमान या घर की छत पर रखा जाता है। ऐसा करने से शरद पूर्णिमा की चांदनी में खीर औषधीय गुणों से भरपूर होकर  सभी रोगों को दूर करने में असरदार होती हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन भगवान श्री कृष्ण ने ब्रज में रासलीला रचाई थी। इसी दिन समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ था। ज्योतिषीय गणना के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की प्रति माह  चंद्रमा 27 नक्षत्रों में भ्रमण करता है, आश्विन नक्षत्र की पूर्णिमा आरोग्यदायी माना गया  है, क्योकि नक्षत्र में ही  ही चंद्रमा अपनी 16 कलाओं यथा अमृत, मनदा, पुष्प, पुष्टि, तुष्टि , ध्रुति, शाशनी, चंद्रिका, कांति, ज्योत्सना, श्री, प्रीति, अंगदा, पूर्ण और पूर्णामृत. से संपूर्ण होकर पृथ्वी के सबसे निकट माना गया  है। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत की बूंदें झरती हैं।  ज्योतिषीय मान्यताओ के आधार पर शरद पूर्णिमा पर चांदी के बर्तन से चन्द्र को अर्ध्य प्रदान करने से चंद्र ग्रह सबंधित दोष दूर होते है ।

शरद पूर्णिमा शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के  आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की आश्विन माह  के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा बुधवार 16 अक्टूबर को रात्री 8 बजकर 40  मिनट से प्रारंभ होकर गुरूवार, 17 अक्टूबर शाम 4 बजकर 55  मिनट पर समाप्त होगी। इस प्रकार उदयातिथि के आधार पर शरद पूर्णिमा पर्व बुधवार 16 अक्‍टूबर को मनाया जाकर  प्रसाद के रूप में खीर भी उसी रात्री को ही  रखी जाएगी। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्र देव की पूजा का विधान है। इस दिन चंद्रोदय शाम को शाम 5 बजकर 16 मिनट पर होगा। वहीं उदय व्यापिनी सिद्धांत को ग्रहण करते हुए स्नान एवं दान का विधान  गुरूवार 17 अक्टूबर को करना शास्त्र सम्मत होगा ।

पूर्णिमा तिथि प्रारंभ : पूर्णिमा तिथि 16 अक्टूबर को रात में 08:40 बजे प्रारंभ होगी। 

पूर्णिमा तिथि समाप्त : पूर्णिमा तिथि 17 अक्टूबर को शाम को 04:55 बजे समाप्त होगी। 

पूजन  शुभ मुहूर्त: बुधवार 16 अक्टूबर 2024 शाम 05:56 से 07:12 तक ।

चंद्रमा को अर्घ्य देने का मंत्र - गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते। गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक॥

इन  देवी-देवता का करें पूजन : आश्विन माह की पूर्णिमा को बेहद फलदायी माना गया है। यह दिन भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी और चंद्र देव को समर्पित है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन पूजा-पाठ और दान अवश्य करना चाहिए। इससे धन और सौभाग्य में वृद्धि होती है।साथ ही यह भी कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन भगवान श्री कृष्ण वृंदावन में गोपियों के संग महारास रचा रहे थे अतः इस दिवस भगवान् लक्ष्मीनारायण की विशेष पूजा कर विष्णु सहस्त्रनाम एवं कनकधारा का पाठ करना चाहिये मान्यता है कि इस दिन माता लक्ष्मी पृथ्वी लोक पर भ्रमण करती हैं और जो भी व्यक्ति जागते हुए भक्ति भाव में लीन होता है उसे सुख-समृद्धि का वरदान देती हैं। इस दिन रात्रि जागरण करते हुए मां लक्ष्मी के निमित्त दीपदान भी करने का विधान बताया गया है।

DR. SANJAY GEEL

ASTROLOGER

SAI ASTROVISION SOCIETY, CHITTORGARH

9829747053,7425999259

 

 

 

 



 

Saturday, October 5, 2024

Diwali on 31st Or 1st Nov. 2024 (दिवाली पर्व को लेकर ज्योतिषीय गणना में है इस बार मतभेद)

 

दिवाली पर्व को लेकर  ज्योतिषीय गणना में है इस बार मतभेद

इस बार दिवाली को लेकर ज्योतिर्विदो की गणना  में मतभेद नजर आ रहे  हैं, क्योकि इस बार कार्तिक अमावस्या तिथि गुरूवार, 31 अक्टूबर और शुक्रवार, 01 नवंबर 2024  दोनों दिवसों पर  रहेगी। जहाँ दक्षिणी भारत के ज्योतिर्विद दिवाली लक्ष्मी पूजा का मुहूर्त 01 नवंबर को बता रहे है , वही उत्तर भारतीय विद्वान 31 अक्टूबर 2024 को ही दिवाली मनाने का समर्थन कर रहे हैं। गुरूवार, 31 अक्टूबर 2024 गुरुवार को दिवाली मनाए जाने के पक्ष में ज्योतिर्विदो का धर्मसिंधु और निर्णयसिंधु  शास्त्रों के आधार पर तर्क है कि संध्याकाल, प्रदोष काल में और निशीथ काल में भी दिवाली मनायी जानी चाहिए ।  साथ ही इन ज्योतिर्विदो का कहना है कि सनातन में 5 दिन दीपोत्सव की परंपरा है  एवं 1 नवंबर को अमावस्या शाम 5.38 बजे ही समाप्त हो जाएगी अतः  इस स्थिति में दीपावली 31 अक्टूबर को ही मनाना श्रेयस्कर होगा।  इसी प्रकार प्रदोष काल में ही मां लक्ष्मी की पूजा का विधान  है, जबकि इस दौरान अमावस्या नहीं रहेगी, बल्कि प्रतिपदा तिथि प्रारंभ हो जाएगी अतः  इसलिए 31 अक्टूबर को ही दिवाली मनाना ठीक होगा। । वि‌द्वानों का कहना है कि दीपावली मनाने को लेकर उदयतिथि की अमावस मान्य नहीं है एवं दीपावली हमेशा प्रदोष काल  और व्यापिनी अमावस में मनाई जाती है। एक नवंबर को प्रदोष व्यापिनी अमावस नहीं मिल रही अतः 31 दिवाली मनाना श्रेयष्ठकर है ।
इसके विपरीत शुक्रवार ,01 नवंबर 2024 को दिवाली मनाए जाने के पक्ष में ज्योतिर्विदो का
स्कंद पुराण के वैष्णव खंड में कार्तिक महामात्य के आधार पर तर्क है कि तीनों ही  तिथियां को  दीपदान किया जा सकता है  यथाक्रम त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या । यदि ये संगव काल से पूर्व समाप्त हो जाती है तो  पूर्व तिथि से युक्त वाली ग्रहण करना चाहिए। इस प्रकार  1 नवंबर को संगव काल सुबह 8 बजकर 39 मिनट से 10 बजकर 54 मिनट तक रहेगा  । इसके बाद तक अमावस्या तिथि प्रारंभ होकर 06:18 तक रहेगी  इस मान से 1 नवंबर को दिवाली मनाना ज्यादा उचित  है। इसी प्रकार यदि कोई सनातनी लक्ष्मी पूजन 31 को कर लेंगे तो पितृ कार्य 1 नवंबर को देव कार्य के बाद होंगे, जबकि  देवकार्य से पूर्व पितृ कार्य करने का निर्देश है। इस प्रकार 1 नवंबर दोपहर में पितृ कार्य और इसके बाद शाम को देव कार्य कर सकते हैं। साथ ही 1 नवंबर को नंदा तिथि  भी  नहीं रहेगी जिसे की शुभ नहीं माना जाता है। निर्णय सिंधु के द्वितीय परिच्छेद पर लेख है कि 'दण्डैक रजनी योगे दर्श: स्यात्तु परेअहवि। तदा विहाये पूर्वे दयु: परेअहनि सख्यरात्रिका:' अर्थात यदि अमावस्या दो दिन प्रदोष व्यापिनी है तो अगले दिन करना चाहिए। तिथि निर्णय में उल्लेख है कि 'इयं प्रदोष व्यापनी साह्या, दिन द्वये सत्वाअसत्वे परा' अर्थात यदि अमावस्या दोनों दिन प्रदोष को स्पर्श न करे तो दूसरे दिन ही लक्ष्मी पूजन करना चाहिए। निर्णय सिंधु प्रथम परिच्छेद के पेज
26 पर निर्देश है कि जब तिथि दो दिन कर्मकाल में हो तो निर्णय युग्मानुसार ही करें। अमावस्या और प्रतिपदा का युग्म शुभ माना गया है। अत: प्रतिपदा युक्त अमावस्या महान फल देने वाली होती है।साथ  ही यदि  दोनों ही दिन प्रदोष को स्पर्श करे तो लक्ष्मी पूजन दूसरे दिन ही करना चाहिए। शुक्रवार, 1 नवंबर को अमावस्या साकल्या पादिता तिथि होगी, जो पूरी रात्रि और अगले दिन सूर्योदय तक मानी जाएगी। 1 नवंबर को पूरे प्रदोष काल, वृषभ लग्न व निशीथ में सिंह लग्न में लक्ष्मी पूजन किया जा सकता है ।

Dr. Sanjay Geel 
Sai AstroVision Society, Chittorgarh 
9829747053,7425999259
 

Tuesday, October 1, 2024

सर्व पितृ अमावस्‍या पर दान-पुण्‍य करने से मिलेगी पितरो की विशेष कृपा

 श्राद्ध पक्ष -2024

सर्व पितृ अमावस्‍या पर दान-पुण्‍य करने से मिलेगी पितरो की विशेष कृपा

आश्विन कृष्‍ण अमावस्‍या अथवा सर्वपितृ अमावस्या इस बार बुधवार, 02 अक्टूबर  को है। इस दिन पितृ गण पुनः देव  लोक की ओर प्रस्‍थान करते हैं एवं इस दिन पितरों के नाम से दान पुण्‍य करने से वे प्रसन्‍न होकर आपको सुखी रहने का आशीर्वाद प्रदान करते हैं , जिससे सुख समृद्धि की  प्राप्‍त होती ऐसी मान्‍यता है कि अगर आप किसी भी कारणवश तिथि पर अपने पूर्वजों का श्राद्ध नहीं कर पाए हैं तो सर्वपितृ अमावस्‍या पर उनके निमित्‍त दान-पुण्‍य करने और कुछ उपाय करने से उनको तृप्ति प्राप्‍त होती है और वे आपसे प्रसन्‍न होते हैं। आपको पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्‍त हो जाता है। गरुड़ पुराण के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की  अमावस्या के दिन पितृगण वायुरूप में घर के दरवाजे पर उपस्थित रहते हैं और अपने स्वजनों से श्राद्ध की अभिलाषा करते हैं। जब तक सूर्यास्त नहीं हो जाता, तब तक वे भूख-प्यास से व्याकुल होकर वहीं खड़े रहते हैं। सूर्यास्त हो जाने के पश्चात वे अपने-अपने लोक को चले जाते हैं। अतः अमावस्या के दिन प्रयत्नपूर्वक श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। यदि पितृजनों के पुत्र तथा बन्धु-बान्धव उनका श्राद्ध करते हैं और गया-तीर्थ में जाकर इस कार्य में प्रवृत्त होते हैं तो वे उन्हीं पितरों के साथ ब्रह्मलोक में निवास करने का अधिकार प्राप्त करते हैं। उन्हें भूख-प्यास कभी नहीं लगती। इसलिए पितृ अमावस्‍या के दिन अपने पितरों के लिए श्राद्ध अवश्य करना चाहिए । 

पितृ अमावस्या कब से कब तक

हिंदू पंचांग के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की सर्व पितृ अमावस्या आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को होती है ,  जो की इस बार   मंगलवार, 01 अक्टूबर, 2024 को रात्रि 09 बजकर 39 मिनट से प्रारंभ होकर  बुधवार, 03 अक्टूबर को रात्रि 12 बजकर 18 मिनट पर समाप्त होगी  इस प्रकार  बुधवार, 02 अक्टूबर  को  सर्व पितरो संबंधी कार्य करना उतम रहेगा ।

*कुतुप मुहूर्त -*  प्रातः 11: 46 से 12 :34  तक

*रौहिण मुहूर्त* – 12: 34  से 01 : 21  तक

*अपराह्न काल* – 01 : 21  से 03:43  तक

पितृ अमावस्या पर क्‍या करें

मुख्यतः इस दिन भगवान विष्णु के हंस स्वरूप की पूजा करें. इस दिन भी पितृगणों के लिए श्राद्ध, तर्पण व पिंडदान किया जाता है, जिससे पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जातक की हर मनोकामना पूरी होती है. सर्व पितृ अमावस्या को महालया अमावस्या, पितृ अमावस्या और पितृ मोक्ष अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है और यही पितृ पक्ष का आखिरी दिन भी होता है.  साथ ही पितृ अमावस्‍या पर सुबह जल्‍दी उठकर स्‍नान कर लें और स्‍वयं अन्‍न जल ग्रहण करने से पहले पितरों को जल दें और पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं और एक मटकी में जल भरकर वहां रख आएं। पितृ अमावस्‍या पर सुबह उठकर सबसे पहले प‍ितृ तर्पण करें। गाय को हरा चारा या फिर पालक जरूर खिलाएं। गाय को चारा डालने से पितरों को भी संतुष्टि प्राप्‍त होती है। पितृ अमावस्‍या की शाम को पितरों के निमित्त तेल का चौमुखी दीपक दक्षिण दिशा की तरफ जलाकर रखें। ऐसी मान्‍यता है देवलोक को प्रस्‍थान करने में यह दीपक पितरों की राह रोशन करता है।

पितृ अमावस्‍या पर करें दान-पुण्‍य

पूर्वजों को अमावस्‍या का देवता माना जाता है और इस दिन पितर अपनी संतान के पास आते हैं और उनके निमित्‍त दान-पुण्‍य करने की आस रखते हैं। पितरों को प्रसन्‍न करने के लिए सदैव अच्‍छे कर्म करें और पितृ अमावस्‍या के दिन जरूरतमंदों को दान-पुण्‍य करें। आपके अच्‍छे कर्मों को देखकर और आपके दान धर्म को देखकर पूर्वज आपसे प्रसन्‍न होते हैं और आपको सुखी व संपन्‍न रहने का आशीर्वाद देते हैं।

इस दिन करें पीपल की पूजा

मान्यता है कि  पीपल के पेड़ में सभी देवी-देवता और पितरों का वास होता है. इसी कारण से पीपल के पेड़ की पूजा का विधान होता है. सर्वपितृ अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की पूजा और दीपक जलाने का विशेष महत्व होता है. मान्यता है अमावस्या तिथि पर पीपल की पूजा करने पर पितृदेव प्रसन्न होते हैं । इस तिथि पर पितरों को प्रसन्न करने के लिए तांबे के लोटे में जल, काला तिल और दूध मिलाकर पीपल के पेड़ पर अर्पित किया जाता है ।

ये करे विशेष  उपाय

सर्वपितृ अमावस्या के दिन पीपल की सेवा और पूजा करने से हमारे पितृ प्रसन्न रहते हैं । इस दिन स्टील के लोटे में दूध, पानी, काले तिल, शहद और जौ मिला लें । इसके साथ कोई भी सफेद मिठाई, एक नारियल, कुछ सिक्के और एक जनेऊ लेकर पीपल वृक्ष के नीचे जाकर सर्वप्रथम लोटे की समस्त सामग्री पीपल की जड़ में अर्पित कर दें । इस दौरान 'ॐ सर्व पितृ देवताभ्यो नमः' मंत्र का जाप भी लगातार करते रहें ।

अमावस्या पर ऐसे दें पितरों को विदाई 

जो व्यक्ति पितृपक्ष के 15 दिनों तक तर्पण, श्राद्ध आदि नहीं कर पाते या जिन लोगों को अपने पितरों की मृत्यु तिथि याद न हो, उन सभी पितरों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण, दान आदि इसी अमावस्या को किया जाता है. सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों को शांति देने के लिए और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए गीता के सातवें अध्याय का पाठ करना उत्तम माना जाता है. अमावस्या के श्राद्ध पर भोजन में खीर पूड़ी का होना आवश्यक है. भोजन कराने और श्राद्ध करने का समय दोपहर होना चाहिए. ब्राह्मण को भोजन कराने के पूर्व पंचबली दें और हवन करें. श्रद्धा पूर्वक ब्राह्मण को भोजन कराएं, उनका तिलक करके दक्षिणा देकर विदा करें. बाद में घर के सभी सदस्य एक साथ भोजन करें और पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें ।

सरल पूजन विधि

1. तर्पण-दूध, तिल, कुशा, पुष्प, सुगंधित जल पितरों को अर्पित करें ।

2. पिंडदान-चावल या जौ के पिंडदान, करके भूखों को भोजन दें ।

3. निर्धनों को वस्त्र दें ।

4. भोजन के बाद दक्षिणा दिए बिना एवं चरण स्पर्श बिना फल नहीं मिलता ।

5. पूर्वजों के नाम पर करें ये काम जैसे -शिक्षा दान,रक्त दान, भोजन दान,वृक्षारोपण ,चिकित्सा संबंधी दान आदि अवश्य करना चाहिए ।

Monday, September 30, 2024

शारदीय नवरात्र 2024 (SHARDIYA NAVRAATRI 2024) - घटस्थापना पर इंद्र योग समेत बन रहे हैं अद्भुत संयोग, प्राप्त होगा अक्षय फल

 शारदीय नवरात्र 2024

घटस्थापना पर इंद्र योग समेत बन रहे हैं अद्भुत संयोग, प्राप्त होगा अक्षय फल

सनातन धर्म में शारदीय नवरात्र का विशेष  महत्व है जो कि  प्रतिवर्ष  आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को शुरू होकर और नवमी तिथि समाप्त होती है । इस अवधि में जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा और उनके नौ शक्ति रूपों की पूजा की जाती है। साथ ही उनके निमित्त नवरात्र का व्रत रखकर कन्या पूजन और अन्य अनुष्ठान किया जाते है । धार्मिक मत है कि जगत जननी मां दुर्गा की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही घर में सुख, समृद्धि एवं खुशहाली आती है।हिन्दू पंचांग  के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की इस वर्ष आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि बुधवार 2 अक्टूबर, 2024 को रात्री 12:18 बजे से प्रारंभ हो रही है, जो गुरूवार 3 अक्टूबर की रात्री 2:58 बजे तक रहेगी  इस प्रकार उदय तिथि के आधार पर  शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ गुरुवार, 3 अक्टूबर 2024 को  होगा, जबकि समापन 11 अक्टूबर, 2024 को होकर इसके अगले दिन शनिवार 12 अक्टूबर, 2024 को विजयदशमी मनाई जाएगी । इस  शारदीय नवरात्रि का शुभारम्भ  गुरूवार को होने से माता पालकी पर सवार होकर आएगी , जो की देवी पुराण के अनुसार अत्यंत शुभ है ।

कब करें घट  स्थापना 

शारदीय नवरात्रि के शुभ अवसर पर घटस्थापना मुहूर्त 03 अक्टूबर को सुबह 06 बजकर 15 मिनट से लेकर सुबह 07 बजकर 22 मिनट तक है। वहीं, अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 46 मिनट से दोपहर 12 बजकर 33 मिनट तक है। इन दोनों शुभ योग समय में घटस्थापना कर सकते हैं।

पूजन के शुभ मुहूर्त:-

ब्रह्म मुहूर्त: प्रात: 04:53 से  05:41 तक

अमृत काल: सुबह 08:45 से सुबह 10:33 तक

अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 12:03 से दोपहर 12:51 तक

विजय मुहूर्त: अपरान्ह 02:26 से अपरान्ह 03:14 तक

गोधूलि मुहूर्त: शाम 06:25 से शाम 06:49 तक

घटस्थापना पर इंद्र योग समेत बन रहे हैं ये अद्भुत संयोग

हिन्दू पंचांग के आधार पर  ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की इस बार  आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर हस्त और चित्रा नक्षत्र का संयोग बन रहा है। साथ ही घटस्थापना तिथि पर सर्वार्थ  सिद्धी एवं दुर्लभ इंद्र योग सहित  अन्य मंगलकारी योग बन रहे हैं, ऐसे योग में मां दुर्गा की पूजा करने से साधक को अक्षय फल की प्राप्ति होगी। साथ ही नवरात्र की शुरुआत पर शिववास योग का संयोग होने से भगवान शिव कैलाश पर्वत पर मां गौरी के साथ विराजमान रहेंगे। इन योग में जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा की पूजा करने से सकल मनोरथ सिद्ध होंगे।

शारदीय नवरात्रि प्रमुख तिथिया  

03 अक्टूबर 2024- मां शैलपुत्री की पूजा

04 अक्टूबर 2024- मां ब्रह्मचारिणी की पूजा

05 अक्टूबर 2024- मां चंद्रघंटा की पूजा

06 अक्टूबर 2024- मां कूष्मांडा की पूजा

07 अक्टूबर 2024- मां स्कंदमाता की पूजा

08 अक्टूबर 2024- मां कात्यायनी की पूजा

09 अक्टूबर 2024- मां कालरात्रि की पूजा

10 अक्टूबर 2024- मां सिद्धिदात्री की पूजा

11 अक्टूबर 2024- मां महागौरी की पूजा

12 अक्टूबर 2024- विजयदशमी (दशहरा)

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Dr. Sanjay Geel 

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Monday, September 16, 2024

अनंत चतुर्दशी पर एक धागा खोलेगा आपके किस्मत के द्वार

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अनंत चतुर्दशी पर एक धागा खोलेगा आपके किस्मत के द्वार

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी के नाम से जानते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत का विधान है। इस दिन को अनंत चौदस भी कहा जाता है।गणपति बप्पा की विदाई भी इसी दिन लोग करते हैं।धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अनंत चतुर्दशी के व्रत और पूजा से सुख, समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होती है,इसलिए लोग इस दिन विशेषपूजा-अर्चना करते हैं।

कब है अनंत चतुर्दशी का व्रत?

मुख्यतः  अनंत चतुर्दशी पर शेषनाग पर विराजे भगवान विष्णु के पूजन का विधान है । इस बार अनंत चतुर्दशी का व्रत मंगलवार,17 सितंबर को रखा जाएगा।

हिन्दू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 16 सितंबर को दोपहर 03:10 बजे हो रही है। समापन 17 सितंबर दोपहर 11:44 बजे होगा। इस प्रकार अनन्त चतुर्दशी की पूजा का मुहूर्त प्रातः  06:07 से दोपहर 11:44 बजे तक रहेगा, जिसकी कुल अवधि 05 घण्टे 37 मिनट रहेगी।

हाथ में बांधे अनंत सूत्र

इस दिन भगवान विष्णु के पूजन के दौरान चौदह ग्रंथि का सूत्र उनके सामने रखकर पूरे विधि विधान से उनकी पूजा करनी चाहिए।इस दौरान भगवान विष्णु के मंत्रों से इस अनंत सूत्र को जागृत करना चाहिए।पूरे विधि विधान से पूजा के बाद इस चौदह ग्रन्थ अनंत सूत्र को पुरुष दाहिने हाथ के बांह पर और महिलाओं को बाएं हाथ के बांह पर बांधना चाहिए। इस अनंत सूत्र को धारण करने से भगवान विष्णु की कृपा भक्तों पर बनी रहती है और सुख समृद्धि और वैभव की प्राप्ति भी होती है।साथ ही इस दिवस हो सके तो नमक न खाएं

गणेश विसर्जन में करें ये उपाय

यदि किसीको संतान प्राप्ति की इच्छा है या फिर वैवाहिक जीवन में खुशहाली नहीं मिल रही तो गणेश विसर्जन के समय बप्पा को भोग में लड्‌डू अर्पित करें और कच्चे सूत में सात गांठ लगाएं, उसपर हल्दी लगाकर घर के मंदिर में रख दें. मान्यता है की इससे मनोकामना पूरी होती है।

गणेश विसर्जन मंत्र

गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ स्वस्थाने परमेश्वर!मम पूजा गृहीत्मेवां पुनरागमनाय च।

गणेश विसर्जन के  शुभ मुहूर्त

प्रातः मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत) - सुबह 09:11 - दोपहर 01:47 तक।

अपराह्न मुहूर्त (शुभ) - दोपहर 03:19 - शाम 04:51तक।

सायाह्न मुहूर्त (लाभ) - रात 07:51 - रात 09:19 तक।

रात्रि मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर) - रात 10:47 - सुबह 03:12 तक।

भगवान श्री गणेश- विष्णु आप सभी का कल्याण करे

शुभकामनाओ सहित

डॉ. संजय गील

अध्यक्ष

साईं एस्ट्रो विज़न सोसायटी, चितौड़गढ़

9829747053,7425999259

Wednesday, September 11, 2024

पितृ पक्ष 2024 (PITRA PAKSH 2024) श्राद्ध पक्ष में तर्पण अनुष्ठान से बरसेगी पितरों की कृपा

 

पितृ पक्ष 2024

श्राद्ध पक्ष में तर्पण अनुष्ठान से बरसेगी पितरों की कृपा
हिंदू धर्म में पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है, जो कि पूरे 16 दिनों तक चलता है । इस अवधि में  पितरों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने का विधान है।मान्यता है कि पितृ पक्ष में किए श्राद्ध कर्म से पितर तृप्त होते हैं और पितरो का ऋण उतरता है। प्रतिवर्ष  भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से लेकर आश्विन अमावस्या तक पितृ पक्ष होता है और इन सोलह दिवसों  में पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध किए जाते हैं । हिंदी पंचांग के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की इस वर्ष  श्राद्ध पक्ष मंगलवार ,17 सितंबर 2024, से पूर्णिमा श्राद्ध के साथ प्रारंभ होकर बुधवार 02 अक्टूबर 2024, को आश्विन कृष्ण अमावस्या यानी सर्वपितृ अमावस्या पर  समाप्त होगा। मान्यता है की  पितृ पक्ष के  समय पितृ धरतीलोक पर आते हैं और किसी न किसी रूप में अपने परिजनों के आसपास रहते हैं। इसलिए इस समय प्रत्येक गृहस्थ को श्राद्ध करना ही चाहिये । इन सोलह दिवसों  तक तर्पण, पूजा अर्चना, श्राद्ध आदि करके नदी, तालाब आदि स्थलों पर जाकर वैदिक मंत्रोच्चार के साथ तर्पण करके अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने से पितरो की कृपा मिलती है,क्योकि यह कर्म पितरों की आत्मा की शांति के लिए किए जाते हैं ।

श्राद्ध मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष  श्राद्ध पक्ष मंगलवार ,17 सितंबर 2024, से पूर्णिमा श्राद्ध के साथ प्रारंभ होकर बुधवार 02 अक्टूबर 2024, को आश्विन कृष्ण अमावस्या अर्थात सर्वपितृ अमावस्या पर  समाप्त होगा  श्राद्ध संपन्न करने के लिए कुतुप, रौहिण मुहूर्त अच्छा माना गया है ।

कुतुप मूहूर्त – प्रातः 11:51 से 12:40 तक ।

रौहिण मूहूर्त – दिन में 12:40 से 01 :29 तक ।

अपराह्न काल – 01 :29 से 03:56 तक ।

सरल तर्पण विधि

सर्वप्रथम  साफ जल, बैठने का आसन, थाली, कच्चा दूध, गुलाब के फूल, फूल की माला, कुशा, सुपारी, जौ, काले तिल, जनेऊ आदि अपने पास रखें । आचमन के बाद हाथ धोकर अपने ऊपर जल छिड़के, फिर गायत्री मंत्र से शिखा बांधकर तिलक लगा लें । फिर थाली में जल, कच्चा दूध, गुलाब की पंखुड़ी डाले, फिर हाथ में चावल लेकर देवताओें को याद करें । श्राद्ध के दौरान अनामिका उंगली में कुशा घास से बनी अंगूठी धारण करें, फिर सीधे हाथ से तर्पण दें । पितरों को अग्नि में गाय का दूध, दही, घी या खीर अर्पित करें । ब्राह्मण भोजन निकलने से पहले गाय, कुत्ते, कौवे के लिए खाना निकाल लें. दक्षिण की तरफ मुख करके और कुश, तिल और जल लेकर पितृतीर्थ से संकल्प करें और एक या फिर तीन ब्राह्मण को भोजन कराएं । तर्पण करने के बाद ही ब्राह्मण को भोजन ग्रहण कराएं और भोजन के बाद दक्षिणा और अन्य सामान दान करें और ब्राह्मण का आशीर्वाद प्राप्त करें ।

प्रार्थना मंत्र -पितृभ्य:स्वधायिभ्य:स्वधा नम:। पितामहेभ्य:स्वधायिभ्य:स्वधा नम:। प्रपितामहेभ्य:स्वधायिभ्य:स्वधा नम:।सर्व पितृभ्यो श्र्द्ध्या नमो नम:।।

किस तिथि में किन पितरों का करें श्राद्ध

हर व्यक्ति को अपने पूर्व की तीन पीढ़ियों (पिता, दादा, परदादा) और नाना-नानी का श्राद्ध करना चाहिए। जो लोग पूर्वजों की संपत्ति का उपभोग करते हैं और उनका श्राद्ध नहीं करते, ऐसे लोगों को पितरों द्वारा शप्त होकर कई दुखों का सामना करना पड़ता है। यदि किसी माता-पिता के अनेक पुत्र हों और संयुक्त रूप से रहते हों तो सबसे बड़े पुत्र को पितृकर्म करना चाहिए। मुख्यतः श्राद्ध के लिए सोलह तिथियां बताई गई हैं, मान्यता है कि इस  आधार पर पितरो का  श्राद्ध करने से निश्चित ही कल्याण होता है ।

पूर्णिमा  श्राद्ध : मंगलवार,17 सितंबर 2024

ऐसे पूर्वज  जो पूर्णिमा तिथि को मृत्यु को प्राप्त हुए, उनका श्राद्ध पितृ पक्ष के भाद्रपद शुक्ल की पूर्णिमा तिथि को करना चाहिए. इसे प्रोष्ठपदी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।

प्रतिपदा  श्राद्ध : बुधवार, 18 सितंबर 2024

जिनकी मृत्यु किसी भी माह के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन हुई हो उनका श्राद्ध पितृ पक्ष की इसी तिथि को किया जाता है। इसके साथ ही प्रतिपदा श्राद्ध पर ननिहाल के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला नहीं हो या उनके मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो तो भी आप श्राद्ध प्रतिपदा तिथि में उनका श्राद्ध कर सकते हैं।

द्वितीया  श्राद्ध : गुरूवार, 19 सितंबर 2024

जिन पूर्वज की मृत्यु किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को हुई हो, उनका श्राद्ध इस दिन किया जाता है।

तृतीया  श्राद्ध : शुक्रवार, 20  सितंबर 2024

जिनकी मृत्यु कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन होती है, उनका श्राद्ध तृतीया तिथि को करने का विधान है।

 

चतुर्थी  श्राद्ध (महाभरणी): शनिवार ,21 सितंबर 2024

शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष में से चतुर्थी तिथि में जिनकी मृत्यु होती है, उनका श्राद्ध पितृ पक्ष की चतुर्थ तिथि को किया जाता है।

पंचमी  श्राद्ध : रविवार, 22 सितंबर 2024

ऐसे पूर्वज जिनकी मृत्यु अविवाहिता के रूप में होती है उनका श्राद्ध पंचमी तिथि में किया जाता है. यह दिन कुंवारे पितरों के श्राद्ध के लिए समर्पित होता है।

षष्ठी और सप्तमी श्राद्ध : सोमवार, 23 सितंबर 2024

षष्ठी और सप्तमी श्राद्ध  के श्राद्ध  एक ही दिवस पर होंगे । मान्यता है की किसी भी माह के षष्ठी तिथि को जिनकी मृत्यु हुई हो, उनका श्राद्ध इस दिन किया जाता है. इसे छठ श्राद्ध भी कहा जाता है, वही किसी भी माह के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को जिन व्यक्ति की मृत्यु होती है, उनका श्राद्ध पितृ पक्ष की इस तिथि को करना चाहिए।

अष्टमी श्राद्ध :मंगलवार,  24 सितंबर 2024

ऐसे पितर जिनकी मृत्यु पूर्णिमा तिथि पर हुई हो तो उनका श्राद्ध अष्टमी, द्वादशी या पितृमोक्ष अमावस्या पर किया जाता है।

नवमी श्राद्ध : बुधवार, 25 सितंबर 2024

माता की मृत्यु तिथि के अनुसार श्राद्ध न करके नवमी तिथि पर उनका श्राद्ध करना चाहिए. ऐसा माना जाता है कि, नवमी तिथि को माता का श्राद्ध करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती हैं. वहीं जिन महिलाओं की मृत्यु तिथि याद न हो उनका श्राद्ध भी नवमी तिथि को किया जा सकता है।

दशमी  श्राद्ध : गुरूवार, 26 सितंबर 2024

दशमी तिथि को जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई हो, उनका श्राद्ध महालय की दसवीं तिथि के दिन किया जाता है।

एकादशी श्राद्ध : शुक्रवार, 27 सितंबर 2024

उक्त तिथि पर जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई हो के साथ ही  ऐसे लोग जो संन्यास लिए हुए होते हैं, उन पितरों का श्राद्ध एकादशी तिथि को करने की परंपरा है।

द्वादशी( मघा )  श्राद्ध : रविवार, 29 सितंबर 2024

 उक्त तिथि पर जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई हो के साथ ही  जिनके पिता संन्यास लिए हुए होते हैं उनका श्राद्ध पितृ पक्ष की द्वादशी तिथि को करना चाहिए. चाहे उनकी मृत्यु किसी भी तिथि को हुई हो. इसलिए तिथि को संन्यासी श्राद्ध भी कहा जाता है।

त्रयोदशी श्राद्ध : सोमवार, 30 सितंबर 2024

उक्त तिथि पर जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई हो के साथ ही  श्राद्ध महालय के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को बच्चों का श्राद्ध किया जाता है।

चतुर्दशी  श्राद्ध : मंगलवार , 1 अक्टूबर 2024

उक्त तिथि पर जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई हो के साथ ही  ऐसे लोग जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो जैसे आग से जलने, शस्त्रों के आघात से, विषपान से, दुर्घना से या जल में डूबने से हुई हो, उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को करना चाहिए।

सर्वपितृ अमावस्या : बुधवार, 2 अक्टूबर 2024

पितृ पक्ष के अंतिम दिन सर्वपितृ अमावस्या पर ज्ञात-अज्ञात पूर्वजों के श्राद्ध किए जाते हैं।इसे पितृविसर्जनी अमावस्या, महालय समापन भी कहा जाता है।

DR. SANJAY GEEL 

SAI ASTROVISION SOCIETY, CHITTORGARH

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Friday, July 19, 2024

(Guru Purnima)सर्वार्थ सिद्धि,श्रवण नक्षत्र और प्रीति योग में मनाई जायेगी गुरुपूर्णिमा

 सर्वार्थ सिद्धि,श्रवण नक्षत्र और प्रीति योग में मनाई जायेगी गुरुपूर्णिमा

सनातन धर्म में गुरु पूर्णिमा अथवा व्यास पूर्णिमा  श्रद्धा और समर्पण का पर्व है। यह पर्व मुख्यतः  आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन महर्षि वेद व्यास के जन्मदिन के उपलक्ष में मनाया जाता है जो की इस  बार रविवार ,21 जुलाई 2024 को है ।   मान्यताओ के अनुसार वेद व्यास जी चारों वेदों के प्रथम व्याख्याता रहे अत: गुरु पूर्णिमा के दिन उन्हें आदि गुरु मानते हुए पूजन किया जाता है, कुछ स्थानों पर इस दिवस पर भगवन विष्णु एवं शिव को भी गुरु के रूप में स्वीकार कर पूजन किया जाता है ।    भारतवर्ष में पीठाधीश्वर एवं सक्षम गुरुओ द्वारा इस दिवस पर अष्टम रहस्य दीक्षा से योग्य शिष्य को पारंगत किया जाता है, जिसमे समय ,ज्ञान ,मार्ग, शांभवी, चक्र जागरण, विद्या, शिष्याभिषेक, पूर्णाभिषेक दीक्षा आदि सम्मिलित है ।  

हिंदू पंचांग के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की इस वर्ष  आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि शनिवार,20 जुलाई दिन को शाम 05 बजकर 59 मिनट से प्रारंभ  होकर  अगले दिवस रविवार , 21 जुलाई, 2024 को दोपहर 03 बजकर 46 मिनट पर  समाप्त होगी। इस प्रकार उदयातिथि के आधार पर  गुरु पूर्णिमा का पर्व रविवार , 21 जुलाई को मनाया जाएगा।

शुभ मुहूर्त 

ब्रह्म मुहूर्त-प्रातः04:14 से 04:55 तक। 

अभिजित मुहूर्त- दोपहर 12:00 से 12:55 तक।  

विजय मुहूर्त- अपराह्न 02:44 से 03:39 तक। 

गोधूलि मुहूर्त- 07:17 शाम से 07:38 तक। 

सायाह्न सन्ध्या-07:18 शाम से 08:20 तक। 

अमृत काल- 06:15 शाम से 07:45 तक। 

यह बन रहे शुभ संयोग 

इस  बार गुरु पूर्णिमा  पर कई शुभ योग का महासंयोग बन रहा है। इस तिथि पर सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 05 बजकर 37 मिनट पर शुरू होगा। वहीं  इसका समापन मध्य रात्रि 12 बजकर 14 मिनट पर होगा। इसके साथ ही उत्तराषाढ नक्षत्र भोर से लेकर मध्य रात्रि 12 बजकर 14 मिनट तक रहेगा । साथ ही श्रवण नक्षत्र और प्रीति योग का भी निर्माण होगा। इसके अलावा विष्कंभ योग प्रात: से लेकर रात्रि 09 बजकर 11 मिनट तक रहेगा। मान्यता  है की इन योगो में गुरु दीक्षा लेने से मोक्ष की प्राप्ति संभव है ।

ये करे गुरु पूर्णिमा पर 

कल युग में गुरु एवं गुरु कृपा इतनी सहज नहीं है , तदापि मान्यताओ के आधार पर यदि गुरु प्राप्ति हो जाए तो उनसे श्री गुरु पादुका मंत्र लेने की यथाशक्ति कोशिश करें। यही वह मंत्र है जिससे पूर्णता प्राप्त होगी। साथ ही  इस दिन गुरु पादुका पूजन कर  गुरु दर्शन करें। सक्षम गुरु को नेवैद्य, दक्षिणा, वस्त्रादि भेंट प्रदान कर आरती करें तथा उनके चरणों में बैठकर उनकी कृपा प्राप्त करें । यदि गुरु के समीप जाने का अवसर न मिले तो उनके चित्र, पादुकादि प्राप्त कर उनका पूजन करें। गुरु न होने की स्थिति में भगवान शिव और विष्णु की गुरु स्वरूप मानकर पूजा करनी चाहिये ।

गुरु गायत्री मंत्र - ॐ वेदाहि गुरु देवाय विद्महे परम गुरुवे धीमहि तन्नौ: गुरु: प्रचोदयात्

72 साल बाद दुर्लभ संयोग के साथ शुरू होगा सावन का श्रावण मास

आषाढ़ माह के बाद श्रावण मास प्रारंभ होता है। इस बार  सोमवार 22 जुलाई 2024 से  सावन मास  प्रारंभ हो रहा है, जिसका समापन सोमवार, 19 अगस्त 2024 को होगा। ऐसे में इस साल सावन का महीना 29 दिनों का होगा। हिंदू पंचाग के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की  इस बार 72 साल बाद श्रावण मास बहुत ही शुभ योग संयोग खासतौर पर सोमवार से प्रारंभ हो रहा है। साथ ही श्रावण की शुरुआत पर अनेक दुर्लभ संयोगो का निर्माण हो रहा है जिनमे प्रीति योग, आयुष्मान योग, नवम पंचम योग, शश राजयोग, सर्वार्थ सिद्ध योग आदि प्रमुख है ।

सावन सोमवार की तिथियाँ  

1. प्रथम श्रावण सोमवार व्रत - 22 जुलाई को रहेगा।

2. द्वितीय श्रावण सोमवार व्रत - 29 जुलाई को रहेगा।

3. तृतीय श्रावण सोमवार व्रत - 5 अगस्त को रहेगा।

4. चतुर्थ श्रावण सोमवार व्रत - 12 अगस्त को रहेगा।

5. पंचम श्रावण सोमवार व्रत - 19 अगस्त को रहेगा।

Dr. Sanjay Geel

Sai Astrovision Society, Chittorgarh

Monday, June 17, 2024

ग्रहों के पंचयोग एवं स्वाति नक्षत्र में निर्जला एकादशी व्रत रखेंगे विष्णु उपासक (NIRJALA EKAADASHI 2024)

ग्रहों के पंचयोग एवं स्वाति नक्षत्र में निर्जला एकादशी व्रत रखेंगे विष्णु उपासक

निर्जला एकादशी जिसे भीमसेनी, पांडव एकादशी भी कहते हैं,पर इस बार बेहद खास संयोग बन रहा है। एकादशियों में श्रेष्ठ निर्जला एकादशी व्रत मंगलवार,18 जून को रखा जाएगा। हिन्दू पंचांग के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया कि सात वर्ष बाद इस बार पंच योग और स्वाति नक्षत्र में लोग निर्जला व्रत रखेंगे, जो काफी फलदायी होगा। साथ ही इस दिवस पर गंगा स्नान और दान का विशेष महत्व है। सनातन धर्म  में  मुख्यतया चौबीस एकादशी पर लोग व्रत और भगवान विष्णु का पूजन-अर्चन करते हैं, जिसमे से ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी को सबसे श्रेष्ठ माना गया है। ऐसी मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत रखने से सालभर की एकादशियों के व्रत का फल मिल जाता है। 

एकादशी मुहूर्त

हिन्दू पंचांग के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया कि इस बार स्वाती नक्षत्र और जययोग, त्रिपुष्कर, रवि, शिव, ध्वज योग बन रहा है। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि सोमवार, 17 जून को 5:11 बजे पर लगेगी, जो मंगलवार,18 जून को सुबह 6:26 बजे तक रहेगी। ऐसे में उदया तिथि के आधार पर निर्जला एकादशी व्रत मंगलवार,18 जून को रखा जाएगा। इसी प्रकार स्वाति  नक्षत्र सोमवार को दोपहर 1:51 बजे से अगले दिन शाम 3:57 बजे मिनट तक रहेगा।

मान्यता है कि इस दिवस  भगवान विष्णु का ओम नमो भगवते वासुदेवाय का जप करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही  गो, वस्त्र, छत्र, फल और पानी से भरे हुए घड़े आदि का दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।  महाभारत पर्व के अनुसार ऋषि व्यास ने भीम को अपनी भूख पर नियंत्रण के लिए निर्जला एकादशी व्रत रखने की सलाह दी। उन्होंने इस व्रत से 24 एकादशियों के पुण्य का फल प्राप्त किया।निर्जला एकादशी बिहार और उत्तरप्रदेश के कुछ स्थानों पर तुलसी  बीजारोपण भी देखने को मिलता है।

Dr. Sanjay Geel

Astrologer

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Tuesday, May 21, 2024

सूर्य के रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश के साथ प्रारंभ होगा नौतपा

 आद्रा नक्षत्र में बारिश होने पर बनेगे उत्तम वर्षा के योग

सूर्य के रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश के साथ प्रारंभ  होगा नौतपा


शनिवार 25 मई को ज्येष्ठ माह कृष्ण पक्ष द्वितीया से नौतपा प्रारंभ होने जा रहा  है जो कि  2 जून तक प्रभावी रहेगा ।वैज्ञानिक आधार पर मई के आखिरी सप्ताह में सूर्य और पृथ्वी के बीच दूरी सबसे कम हो जाती है ,जिससे  धूप और तेज हो जाती है। साथ ही जब सूर्य की किरणें सीधे पृथ्वी पर पड़ती हैं तो इस बीच तापमान सबसे ज्यादा होता है। इस प्रकार  मैदानी क्षेत्रों में निम्न दबाव का क्षेत्र बनने और  समुद्र की लहरों को आकर्षित करने के फलस्वरूप  ठंडी हवाएं मैदानों की ओर उच्च दबाव के आधार पर वर्षाकाल का अनुमान  लगाया जाता है ।

नौतपा का विज्ञान से भी पहले ज्योतिषीय आधार पर महत्वपूर्ण स्थान है । ज्योतिषीय मान्यताओ के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की जब रोहिणी नक्षत्र में सूर्य प्रवेश करता है तो इस दौरान जो स्थिति निर्मित होती है उसे नौतपा कहते हैं। साथ ही  जब चंद्रमा ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष में आर्द्रा से स्वाति नक्षत्र तक अपनी स्थितियों में हो एवं तीव्र गर्मी पड़े, तो ये स्थिति नौतपा कहलाती है।  ख़ास बात ये भी है की नौतपा भी उन कतिपय घटनाओ में से एक है जिसकी गणना की जाए तो ये प्रतिवर्ष 25 मई से ही शुरू होते हैं, लेकिन इसके प्रारंभ होने का समय परिवर्तित हो जाता है । इस वर्ष  सूर्य 25 मई को सुबह को 3 बजकर 16 मिनट पर रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करेंगे और उसके बाद 2  जून को मृगशिरा नक्षत्र में जाएंगे। शुरू के 9 दिन सबसे भीषण गर्मी होने की वजह से इसे नौतपा कहते हैं। 

नौतपा  में सूर्य पर रहेगी रोहिणी नक्षत्र की नजर

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ऐसा साल में एक बार होता है जब सूर्य पर रोहिणी नक्षत्र की दृष्टि पड़ती है। सूर्य किसी भी नक्षत्र में 15 दिन के लिए होता है। लेकिन आपको बता दें इसके शुरू होने के पहले चन्द्रमा जिन 9 नक्षत्रों पर रहता है वह दिन नौतपा  कहलाते हैं। यही कारण है कि इन नौ दिनों में गर्मी अधिक रहती है। चूंकि मई के आखिरी सप्ताह में सूर्य और पृथ्वी के बीच दूरी कम हो जाती है और इससे धूप और तेज हो जाती है । सूर्य तेज और प्रताप का प्रतीक माना जाता है जबकि चंद्रमा शीतलता का। रोहिणी नक्षत्र का अधिपति ग्रह चंद्रमा ही है। जब सूर्य चंद्रमा के रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करता है तो सूर्य चंद्रमा के इस नक्षत्र को भी अपने प्रभाव में ले लेता है। जिसके कारण रोहिणी नक्षत्र का तापमान भी बढ़ने लगता है। जब सूर्य रोहिणी नक्षत्र में आता है तो इस दौरान तापमान बढ़ने से धरती पर आंधी, तूफान आने की आशंका भी बढ़ जाती 

इस नक्षत्र में बारिश  होने पर बनेगे उत्तम  वर्षा के योग

मान्यताओ के आधार पर ज्योतिषाचार्य डॉ. संजय गील ने बताया की ज्येष्ठ माह  में सूर्य के वृष राशि के 10 अंश से 23 अंश 40 कला तक नौतपा कहलाता है। इस दौरान तेज गर्मी बारिश के अच्छे योग बनते हैं। ऐसा माना जाता है कि नौतपा जितने अधिक तपते हैं तो उस साल बारिश भी अच्छी होती है। इसी प्रकार ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष में आद्रा नक्षत्र से लेकर दस नक्षत्रों तक यदि बारिश हो तो पूरे बारिश के मौसम में अच्छी बारिश के योग माने जाते हैं। यदि इन दसों नक्षत्रों में बारिश न हो तो और इन्हीं नक्षत्रों में तीव्र गर्मी पड़ जाए तो समझो उस साल बारिश जमकर होगी। है।शास्त्र में उल्लेखित है कि  ज्येष्ठ मासे सीत पक्षे आर्द्रादि दशतारका। सजला निर्जला ज्ञेया निर्जला सजलास्तथा।।

Dr. Sanjay Geel

President

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Tuesday, April 30, 2024

बृहस्पति गोचर 2024(Jupiter transit 2024

 देव गुरु बृहस्पति का राशि परिवर्तन 13 वर्षो  बाद बनने जा रहा  अद्भुत संयोग

वैदिक ज्योतिष गणना में  ग्रह परिवर्तन को  बहुत महत्वपूर्ण घटना माना गया है एवं  जब भी कोई ग्रह एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तो मनुष्य पर इसका कम ज्यादा प्रभाव अवश्य ही पड़ता है । हिंदू पंचाग के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की इस  मई के महीने में कई बड़े ग्रहों का गोचर होने जा रहा है जिसमें सबसे प्रमुख देव गुरु बृहस्पति का गोचर है । बृहस्पति का यह गोचर लगभग 13  वर्षो बाद आज दोपहर 02 बजकर 29 मिनट पर होने जा रहा है जो कई राशियों के लिए धन लाभ और करियर में अपार सफलता लेकर आएगा, वही कुछ राशि के जातको को मिश्रित फल देने वाला साबित होगा ।

13 वर्षों बाद वृषभ राशि में होगी गुरु,शुक्र एवं सूर्य  की युति

हिंदू पंचाग के आधार पर 14 मई को सूर्य ग्रह का गोचर होने जा रहा है । ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को ग्रहों का राजा कहा जाता है ।  इसी प्रकार  19 मई को शुक्र ग्रह मेष राशि से निकलकर अपनी स्वराशि वृषभ में चले जाएंगे । इस प्रकार 12 वर्ष बाद वृषभ राशि में गुरु,शुक्र और सूर्य की युति भी देखने को मिलेगी ।

 बृहस्पति का विविध राशियों पर प्रभाव और उपाय

बृहस्पति  ग्रह को भाग्य का कारक माना गया  है और  कुंडली में अगर गुरु की स्थिति मजबूत होती है  तो जीवन में कम मेहनत में भी बड़ा फल मिलता है। मान्यता है कि गुरु को मजबूत करने के लिए गुरुवार के दिन दान-पुण्य और विष्णु भगवान की पूजा जरूर करनी चाहिए। गुरु का यह  गोचर कई राशियों के लिए शुभ परिणामों वाला तो अन्य के लिये मिश्रित परिणामो वाला रहेगा । मुख्यतः राशि परिवर्तन के इस प्रभाव को लग्न एवं चन्द्र कुंडली के आधार पर देखना चाहिये । 

मेष राशि: धीरे-धीरे समय के साथ प्रयासों का फल मिलने लगेगा ,नए अवसर मिल सकते हैं और व्यवसाय में भी लाभ हो सकता है.  वही जन्मकुंडली में अशुभ होने पर करियर, स्वास्थ्य और पारिवारिक जीवन में कुछ परेशानियां आ सकती हैं । नियमित रूप से पिता और गुरु को प्रणाम करें और आशीर्वाद लें। 

वृषभ राशि: वृषभ राशि के लिए यह गोचर बहुत शुभ होगा. करियर, धन, स्वास्थ्य और पारिवारिक जीवन में आपको खुशियां मिलेंगी, लेकिन  अपनी वाणी पर थोड़ा ध्यान रखना होगा  गुरुवार को भगवान विष्णु की पूजा करें और पीले रंग के फूल अर्पित करें।

मिथुन राशि:- काम में सफलता और  नए अवसर मिल सकते हैं  मिथुन राशि के लिए यह गोचर शुरुआती दौर में कुछ खर्च और स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां लेकर आ सकता है । गुरुवार को गाय को चने की दाल और गुड़ के आटे की लोई खिलाएं।

कर्क राशि:- करियर, धन और पारिवारिक जीवन में आपको खुशियां मिलेंगी हालांकि, आपको अपने स्वास्थ्य का थोड़ा ध्यान रखना होगा । प्रतिदिन भगवान शिव की पूजा करें और जल चढ़ाएं।

सिंह राशि:- सिंह राशि के लिए यह गोचर मिश्रित रहेगा एवं करियर में कुछ परेशानियां आ सकती हैं । जरूरतमंद छात्रों को स्टेशनरी का सामान दान करें।

कन्या राशि:-  करियर, धन, स्वास्थ्य और पारिवारिक जीवन में खुशियां मिलेंगी ।  घर पर सत्यनारायण पूजा करें या कोई धार्मिक कार्य करें।

तुला राशि :- यह गोचर मिश्रित रहेगा. करियर में कुछ उतार-चढ़ाव आ सकते हैं । गुरुवार के दिन पुजारी को बूंदी के लड्डू दान करें। भूखे लोगों को खाना खिलाएं। 

वृश्चिक राशि:- करियर, धन, स्वास्थ्य और पारिवारिक जीवन में खुशियां मिलेंगी । रोज 108 बार बृहस्पति ग्रह के बीज मंत्र का जाप करें । 

धनु राशि:- स्वास्थ्य और पारिवारिक जीवन में खुशियां मिलेंगी । विष्णु सहस्त्रनाम का नित्य पाठ करे । 

मकर राशि:-  करियर, धन, स्वास्थ्य और पारिवारिक जीवन में खुशियां मिलेंगी । गुरुवार के दिन केले के पेड़ की पूजा करें और जल चढ़ाएं ।

कुंभ राशि :- कुंभ राशि के लिए यह गोचर मिश्रित रहेगा । करियर में कुछ उतार-चढ़ाव आ सकते हैं । गुरुवार का व्रत करें और अपने का सम्मान करें ।

मीन राशि: धन, स्वास्थ्य और पारिवारिक जीवन में खुशियां मिलेंगी. पीले रंग के कपड़े अधिक पहनने का प्रयास करें। पीले रंग का रुमाल अपने पास रखें ।

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