Thursday, February 27, 2025

कुम्भ राशि में हो रहे शनि अस्त, सभी राशियों पर पड़ेगा विविध प्रभाव

 

कुम्भ राशि में हो रहे  शनि अस्त, सभी राशियों पर पड़ेगा विविध प्रभाव

ज्योतिष शास्त्र में शनि का गोचर, वक्री होना और अस्त होना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंभ राशि के स्वामी ग्रह शनि देव को माना गया है ग्रहों की चाल में शनि का स्वयं की राशि में अस्त होना अत्यंत  महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि  सभी नौ ग्रहों में शनिदेव की गति सबसे धीमी है वैदिक पंचांग के आधार  ज्योतिर्विद  डॉ. संजय गील ने बताया की  न्याय के देवता शनि कुंभ राशि में शुक्रवार, 28 फरवरी 2025 को रात्रि  07.06 मिनट पर अस्त होकर  और बुधवार,  9 अप्रैल 2025 को सुबह 05.03 पर मीन राशि में उदय होंगे वर्तमान में शनि कुंभ राशि में है एवं शनिवार, 29 मार्च 2025 को रात 9:41 पर मीन राशि में प्रवेश करेंगे ज्योतिषीय गणनाओ  के अनुसार शनि अस्त होने के बाद अपनी कमजोर अवस्था में रहेंगे, किन्तु  वर्तमान में  सूर्य और शनि की युति कुंभ राशि में होने से सभी राशियो को प्रभावित अवश्य ही करेंगे

इसी प्रकार शनिवार,  29 मार्च 2025 को शनि के  मीन राशि में प्रवेश करते ही  कुछ राशियों  पर साढ़ेसाती और ढैय्या शुरू हो जाएगी तो कुछ को इससे राहत मिलेगी मुख्यतः  शनी के गोचर के साथ ही  मकर राशि वालों पर चल रही साढ़ेसाती खत्म होकर  मेष राशि पर साढ़ेसाती प्रारंभ होगी साथ ही मीन राशि पर साढ़ेसाती का दूसरा चरण, कुंभ राशि पर अंतिम चरण और मेष राशि पर पहला चरण शुरू होगा। वृश्चिक राशि के जातकों पर जहां ढैया समाप्त होगी जबकि धनु राशि वालों पर ढैया की शुरुआत हो जाएगी ज्योतिषीय गणना और मान्यताओ के आधार पर वर्तमान में शनि अस्त के अस्त होने का प्रभाव इस प्रकार देखा जा सकेगा -

मेष राशि - सामाजिक संबंधों और आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव

वृषभ राशि – रोज़गार संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है उच्च अधिकारियों के साथ अनबन एवं दुर्घटना की आशंका

मिथुन राशि - पिता के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर एवं उच्च अध्ययन में विलम्ब की संभावना

कर्क राशि - ससुराल पक्ष से अनबन एवं अत्यधिक व्यय के साथ लाभ की संभावना

सिंह राशि - प्रेम संबंध में या बिजनेस पार्टनर के साथ विवाद एवं निजी क्षेत्र में कार्य कर रहे जातको को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है  

कन्या राशि – प्रतिकूल स्वास्थ्य एवं  कड़ी प्रतिस्पर्धा की संभावना यदि कोई  कोर्ट केस या कानूनी प्रकरण है तो प्रतिकूल परिणाम की संभावना

तुला राशि -  संतान संबंधी चिन्ताओ में बढोत्तरी एवं  सामाजिक संबंधों में भी परेशानियां आ सकती हैं ऋण लेने और देने से बचे

वृश्चिक राशि - शनि देव चौथे भाव में अस्त होकर ढैय्या के माध्यम से मां के संबंध में उतार-चढ़ाव का कारण बन सकते हैं कोई प्रॉपर्टी खरीदने की योजना बनाएं तो सतर्क रहें

धनु राशि - यात्राओं करने के दौरान परेशानी हो सकती है  भाई-बहनों के साथ संबंधों में उतार-चढ़ाव आ सकते हैं

मकर राशि -  पारिवारिक विवाद एवं  आर्थिक क्षति की पूर्ण संभावना शेयर मार्केट में निवेश करने बचें, क्योंकि शनि देव की दृष्टि आठवें भाव पर पड़ रही है

कुंभ राशि -  भाई-बहनों के साथ संबंध प्रभावित होंगे। विवाह में परेशानी हो सकती है कार्यस्थल पर नौकरीपेशा जातकों को काम का अधिक दबाव महसूस एवं स्वास्थ्य में गिरावट

मीन राशि -  आर्थिक परेशानिया  एवं  कर्ज में बढ़ोतरी की संभावना

ये करे उपाय –

·        दशरथकृत शनि स्त्रोत अथवा शनि स्तवराज का नित्य पाठ करे

·        अनाथ, निर्धन वर्ग की सेवा करे

·         महिलाओ का सम्मान करे

·        नंगे पैर शनि मंदिर जावे

·        काली गाय को गुड खिलावे

·        पीले कपडे और दाए हाथ पर पीला धागा बांधे

 

Saturday, February 22, 2025

सूर्य, बुध और शनि के विशेष त्रिग्रही योग में मनायी जायेगी महाशिवरात्रि

 सूर्य, बुध  और शनि के  विशेष त्रिग्रही योग में मनायी जायेगी महाशिवरात्रि

सनातन धर्म में महादेव के प्रिय दिवस महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है । इस वर्ष  महाशिवरात्रि पर श्रवण नक्षत्र में  शिव योग , मकर राशि के  चंद्रमा  होने के साथ ही अमृत सिद्धि और सिद्ध योग का निर्माण शिव भक्तों के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करने वाला है । वैदिक पंचांग के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया कि इस वर्ष महाशिवरात्रि का पावन पर्व बुधवार , 26 फरवरी 2025 को है एवं इसका समापन अगले दिन अर्थात गुरूवार 27 फरवरी को प्रातः  08:54 बजे होगा ।  मुख्यतया  महाशिवरात्रि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि को होती है, जिसे फाल्गुन मासिक शिवरात्रि भी कहा जाता है । मान्यता है कि  महाशिवरात्रि  पर माँ पार्वती और भगवान शिव का विवाह हुआ था, वही मतांतर के आधार पर यह भी मान्यता है कि महाशिवरात्रि दिवस पर भगवान शिव लिंग  के रूप में प्रकट हुए जिनकी सर्वप्रथम ब्रह्म और विष्णु ने पूजा अर्चना की थी। यह भी मान्यता है कि माता लक्ष्मी, सरस्वती, पार्वती और माता रति ने भी कल्याण हेतु विशेष उपासना की। इस प्रकार महाशिवरात्रि को  पर्व प्रलय और निर्माण का प्रतीक भी माना गया है ।

महाशिवरात्रि शुभ मुहूर्त

मान्यताओ के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया कि महाशिवरात्रि पर भोलेनाथ की पूजा-अर्चना किसी  भी समय की जा सकती है , किन्तु प्रदोष काल एवं पूजा के निमित्त निर्धारित चार प्रहर इस हेतु अति उत्तम है । साथ ही महाशिवरात्रि के संबंध में  उदया तिथि की परिपालना  जरूरी नहीं है। इन शुभ मुहूर्त में उपवास, रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय जाप और विशेष अनुष्ठान एवं प्रहरनानुसार  मंत्रो का जाप कल्याणकारी  रहेगा ।

प्रथम प्रहर पूजा– सायं  06:29 से रात्रि  09 बजकर 34 मिनट तक ।

मन्त्र :- ॐ हीं ईशानाय नम: 

द्वितीय प्रहर पूजा - रात्रि 09:34 से  12 बजकर 39 मिनट तक ।

मन्त्र :- ॐ हीं अघोराय  नम: 

तृतीय प्रहर पूजा- रात्रि 12:39 से प्रातः  03 बजकर 45 मिनट तक ।

मन्त्र :- ॐ हीं वामदेवाय नम: 

चतुर्थ प्रहर पूजा – प्रातः  03:45 से 06 बजकर 50 मिनट तक ।

मन्त्र :- ॐ हीं सद्योजाताय नम:

निशिता काल मुहूर्त: बुधवार ,26 फरवरी 2025, मध्यरात्रि 12:09 बजे से 12:59 बजे  तक ।

महाशिवरात्रि व्रत पारण समय :-  गुरूवार ,27 फरवरी प्रातः 06 बजकर 48 मिनट से 08:54 मिनट तक ।

बन रहे ये ज्योतिषीय  संयोग 

वैदिक पंचाग के  के आधार पर इस महाशिवरात्रि अद्धभुत ज्योतिषीय योग निर्मित हो रहे है, जिसमे महाशिवरात्रि के दिन  मकर राशि में सूर्य, बुध  और शनि का विशेष त्रिग्रही योग बन रहा है। यह योग सफलता और समृद्धि का प्रतीक है। महाशिवरात्रि के दिन शिव योग और सिद्ध योग का संयोग बन रहा है। इन योगों में की गई पूजा-अर्चना से मनोकामनाएं जल्दी पूर्ण होती हैं। इसके अलावा महाशिवरात्रि के दिन अमृत सिद्धि योग का भी निर्माण हो रहा है। इस योग में किए गए कार्य और व्रत का फल कई गुना अधिक मिलता है,जबकि इसी दिन श्रवण और धनिष्ठा नक्षत्र भी रहेंगे ।

ऐसे  करें महादेव को प्रसन्न    

1. महाशिवरात्रि के दिन सुबह स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें ।

2. इसके सबसे पहले शिव भगवान की पूजा-अर्चना करें और व्रत का संकल्प लें ।

3. पूजा-अर्चना के दौरान आपका मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए ।

4. अभिषेक  के दौरान भगवान शंकर को पंचामृत से स्नान कराएं ।

5. ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करें । 

6. इस दिन आप भगवान गणेश और माता पार्वती की भी पूजा करें । 

7.  शंकर भगवान को फल,    फूल, चंदन, बिल्व पत्र, धतूरा, धूप व दीप से पूजा करें ।

8 भगवान शिव को केसर युक्त खीर का भोग जरूर लगाएं ।

9. इस दिन पूरी रात भगवान शिव के समक्ष दीपक जलाना चाहिए ।

Dr. Sanjay Geel

Sai Astrovision Society, Chittorgarh

9829747053,7425999259

Friday, January 24, 2025

षटतिला एकादशी पर की जायेगी माँ लक्ष्मी और श्री हरी की आराधना

 षटतिला एकादशी पर की जायेगी  माँ लक्ष्मी और  श्री हरी की आराधना  

हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु का प्रिय व्रत एकादशी व्रत  प्रति माह  दो बार किया जाता  है। पहला कृष्ण पक्ष और दूसरा शुक्ल पक्ष में। प्रायः धार्मिक शास्त्रों के अनुसार एक वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं और जिस वर्ष अधिक मास पड़ता है तो उस वर्ष एकादशी की संख्या कुल 26 हो जाती हैं।  इसी सम्बन्ध में षटतिला एकादशी हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन तिल का उपयोग स्नान, भोग/ प्रसाद, भोजन, दान और तर्पण में करने का विशेष महत्व होता है। इस दिन तिल का अधिक से अधिक उपयोग करने से जीवन में खुशियां आती है। 

षटतिला एकादशी व्रत-पूजा का शुभ मुहूर्त :

वैदिक पंचाग के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की इस वर्ष शनिवार, 25 जनवरी 2025 को षटतिला एकादशी मनाई जा रही है। 

षटतिला एकादशी तिथि का प्रारम्भ- जनवरी 24 शुक्रवार , 2025 को शाम 07 बजकर 25 मिनट से, 

एकादशी तिथि की समाप्ति- जनवरी 25शनिवार , 2025 को रात्रि 08 बजकर 31 मिनट पर। 

षटतिला एकादशी पारण (व्रत तोड़ने का) समय- रविवार ,26 जनवरी को सुबह 07 बजकर 12 मिनट से 09 बजकर 21 मिनट तक ।

पारण तिथि के दिन द्वादशी का समापन समय- रात 08 बजकर 54 मिनट पर।

षटतिला एकादशी का महत्व

 धार्मिक मान्यतानुसार षटतिला एकादशी के दिन तिल का उपयोग करने तथा दान देने का बहुत महत्व कहा गया है। साथ ही इस दिन तिल से भगवान श्री विष्णु का पूजन करने का विशेष महत्व है। इस दिन सुबह स्नान के समय जल में तिल मिलाकर स्नान करने से जहां आरोग्य अच्छा बना रहता है, वहीं तिल से हवन-तर्पण तथा दानादि करने से पुण्यफल प्राप्त होता है। माना जाता है कि माघ मास में षटतिला एकादशी का उपवास रखने से दरिद्रता, दुर्भाग्य तथा विभिन्न प्रकार के कष्ट दूर होकर समस्त पापों ना नाश तथा मोक्ष प्राप्ति होती है ।

धार्मिक मतानुसार षट्तिला का अर्थ छह तिल होता है, और इसी कारण इस एकादशी का नाम षट्तिला एकादशी पड़ा है। इस दिन व्रतधारी छ: तरीकों से तिल का उपयोग करके भगवान श्री विष्णु की पूजा करते हैं। साथ ही इस व्रत-उपवास में तिल का विशेष महत्व होने के कारण भी भगवान श्रीहरि और माता लक्ष्मी के पूजन तथा उन्हें तिल के भोग अर्पित करने से मनुष्य की हर मनोकामना पूरी होती है। और सुख-सौभाग्य, धन-धान्य में वृद्धि होकर जीवन में वैभव प्राप्त होता है। सुहाग की रक्षा हेतु इस दिन सौभाग्यवती महिलाओं को सौभाग्य की चीजें तथा तिल की खाद्य सामग्री दान करना चाहिए। इससे जीवन में आने वाला बड़े से बड़ा संकट टल जाता है। माघ मास में तपस्वियों को तिल दान करने से कभी नरक के दर्शन नहीं होते हैं और जीवन के सभी संकट दूर होकर मृत्यु के पश्चात मोक्ष प्राप्त होता है।

Thursday, January 23, 2025

मौनी अमावस्या पर सिद्धि योग में दान तर्पण करने से होगी , सौभाग्य-संपत्ति में वृद्धि(MONI AMAVASAY 2025 )

 मौनी अमावस्या पर सिद्धि योग में  दान तर्पण करने से  होगी , सौभाग्य-संपत्ति में वृद्धि

 

हिंदू धर्म में माघ अमावस्या अत्यंत महत्वपूर्ण  माना जाता है। यह दिन भगवान विष्णु और पितरों को समर्पित है। इस अमावस्या को मौनी और माघी अमावस्या के नाम से जाना जाता है। मौनी अमावस्या के दिन पवित्र नदी में स्नान का बड़ा महत्व है। मान्यता है कि इससे व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। हर साल माघ महीने की अमावस्या तिथि को मौनी अमावस्या मनाया जाता है। हिन्दू  पंचांग के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की इस वर्ष  बुधवार,29 जनवरी 2025 को सिद्धि योग में मौनी अमावस्या मनायी जाएगी । मुख्यतः मौनी अमावस्या के दिन पितरों की आत्माशांति और मोक्ष दिलाने के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान के कार्य किए जाते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है और परिवार के सदस्यों पर पूर्वजों का आशीर्वाद बना रहता है। इस बार मौनी अमावस्या के दिन महाकुंभ का द्वितीय प्रमुख शाही  स्नान भी  है।  साथ ही इस दिन मौन व्रत करने से मन काबू में होता है और ध्यान में एकाग्रता बढ़ती है।

मौनी अमावस्या शुभ मुहूर्त

हिन्दू पंचांग के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की  मौनी अमावस्या तिथि मंगलवार, 28 जनवरी को रात 07 बजकर 35 मिनट से प्रारम्भ होकर बुधवार,29 जनवरी को शाम को 06 बजकर 05 मिनट पर समाप्त होगी । इस प्रकार  मौनी अमावस्या  बुधवार , 29 जनवरी को मनाई जाएगी।  

ब्रह्म मुहूर्त - सुबह 05 बजकर 25 मिनट से 06 बजकर 18 मिनट तक

विजय मुहूर्त - दोपहर 02 बजकर 22 मिनट से 03 बजकर 05 मिनट तक

गोधूलि मुहूर्त - शाम 05 बजकर 55 मिनट से 06 बजकर 22 मिनट तक

अमृत काल- सुबह 08  बजकर 38  मिनट से 10 बजकर 01 मिनट तक  

पितृदोष होगा दूर

पितृ एवं काल सर्प दोष को खत्म करने के लिए माघ अमावस्या के दिन पितरों का तर्पण करें। साथ ही विशेष चीजों का भोग लगाएं। ऐसा करने से पितृ दोष दूर होता है और जीवन में खुशियों का आगमन होता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, मौनी अमावस्या के दिन देवी-देवता और पितृ भी पवित्र नदियों में स्नान करते आते हैं अतः यदि  मौनी अमावस्या के दिन ब्रह्म मुहूर्त में पवित्र नदी स्नान करें। माना जाता है कि ऐसा करने से सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है और पूर्वज प्रसन्न होते हैं।

इन उपायों से  होगी सोभाग्य और  सम्पति  में  वृद्धि

माघ अमावस्या के दिन गुड़, तिल, घी, धन या फिर गर्म कपड़े का दान करें। मान्यता है कि इन चीजों का दान करने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है और धन में वृद्धि होती है । इसके अलावा व्यक्ति के रुके हुए काम पूरे होते हैं और व्यवसाय में सफलता हासिल होती है । मौनी अमावस्या के दिन सुबह जल्दी उठकर ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें। इस दिन स्नानादि के बाद सूर्यदेव को जल अर्घ्य दें और उनकी पूजा-आराधना करें। मौनी अमावस्या के दिन पितरों की आत्माशांति के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान के कार्य जरूर करें। मान्यता है कि इससे पितर प्रसन्न होते हैं।मौनी अमावस्या के दिन जगत के पालनहार श्रीहरि विष्णु, माता लक्ष्मी,तुलसी के पौधे और मां गंगा की पूजा करना चाहिए।

मौनी अमावस्या के दिन मौन व्रत या उपवास भी रख सकते हैं। मान्यता है कि मौनी अमवस्या के दिन व्रत रखने से आत्मसंयम, मानसिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

Monday, January 20, 2025

सभी राशि के जातको पर पड़ेगा अनुकूल प्रतिकूल प्रभाव वक्री मंगल ग्रह कर रहे मिथुन राशि में प्रवेश

 सभी  राशि के जातको पर पड़ेगा अनुकूल प्रतिकूल प्रभाव

वक्री मंगल ग्रह कर रहे  मिथुन राशि में प्रवेश

 

ज्योतिष शास्त्र में मंगल ग्रह को ग्रहों का सेनापति कहा जाता है ।  मंगल ग्रह हर 45 दिनों में राशि बदलते हैं ।  मंगल के राशि बदलने का प्रभाव ज्योतिष शास्त्र की सभी 12 राशियों पर पड़ता है । इस समय  मंगल वक्री अवस्था में अपनी नीच राशि में गोचर कर रहे हैं ।  हिन्दू पंचाग  के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की मंगल ग्रह  इस साल मंगलवार 21 जनवरी को राशि पर परिवर्तन कर बुध की राशि मिथुन में सुबह 8 बजकर 4 मिनट पर प्रवेश करेंगे ।

मंगल वक्री अवस्था में मिथुन में करेंगे प्रवेश

मंगल वक्री अवस्था में मिथुन राशि में प्रवेश करने वाले हैं । मंगल ग्रह के मिथुन राशि में गोचर से सभी 12 राशियां प्रभावित होंगी, लेकिन कुछ राशियां हैं, जिनके लिए मंगल का ये गोचर लाभ देने वाला साबित हो सकता है । मंगल का ये गोचर निम्नलिखित राशि के जातको के लिए लाभकारी सिद्ध होगा, वही अन्य  राशियों को मिश्रित परिणाम प्रदान करेगा -

कर्क राशि

ग्रहों के सेनापति मंगल का वक्री अवस्था में मिथुन राशि  में गोचर कर्क राशि वालों के लिए लाभ देने वाला साबित हो सकता है ।मंगल ग्रह कर्क राशि के 12वें भाव में रहेंगे. ऐसे में कर्क राशि वालों को हर क्षेत्र में सफलता मिलेगी ।नौकरी में बदलाव हो सकता है ।व्यापार के लिए बनाई गई रणनीति सफल हो सकती है ।आर्थिक स्थिति अच्छी रहने वाली है । साथ ही  बेवजह के खर्च हो सकते हैं और छोटी मोटी परेशानियां होने की संभावना है ।

सिंह राशि

मंगल का मिथुन राशि में गोचर सिंह राशि के जातकों के लिए अनुकूल है । इस गोचर से  मंगल सिंह राशि के 11वें भाव में रहेंगे । इस दौरान सिंह राशि के जातकों को किस्मत का साथ मिल सकता है । करियर के लिहाज से ये समय अच्छा रहने वाला है । करियर में विशेष सफलता मिलने के योग बनेंगे । कारोबार के लिए बनाई गई योजना सफल साबित हो सकती है एवं  मान-सम्मान में बढ़ोतरी होगी ।

तुला राशि

मंगल ग्रह का वक्री अवस्था में मिथुन राशि में गोचर तुला राशि के जातकों के लिए बहुत शुभ हो सकता है ।मंगल तुला राशि के 9वें भाव में रहेंगे ।इस दौरान तुला राशि के जातकों को कारोबार को लेकर यात्राएं करनी पड़ सकती है, जो की आर्थिक आधार पर लाभदायक सिद्ध होगी  । 

वृष राशि

मंगल ग्रह का वक्री अवस्था में मिथुन राशि में गोचर वृष राशि के जातकों के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकता है । इस दौरान अचानक वृष राशि के जातकों को धन लाभ हो सकता है । इस दौरान वैवाहिक  जीवन में खुशियों का संचार होगा ।

मीन राशि

मगंल का वक्री अवस्था में मिथुन राशि में गोचर मीन राशि के जातकों के लिए अतिउत्तम  है । मंगला के इस गोचे में मीन राशि के जातको को वाहन और सम्पति अवश्य ही खरीदनी चाहिए ।

Dr. Sanjay Geel

President

Sai Astrovision Society, Chittorgarh

9829747053,7425999259

Friday, January 10, 2025

Makar Sankranti Remedies ( 19 साल बाद मकर संक्रांति पर दुर्लभ संयोग में बरसेगी सूर्य एवं शनि देव की कृपा )

 

19 साल बाद मकर संक्रांति पर दुर्लभ संयोग में  बरसेगी सूर्य एवं शनि देव की  कृपा 

हिन्दू धर्म में मकर संक्रांति पर्व का विशेष महत्व है एवं इसे बड़े ही उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है । मकर संक्रांति का धार्मिक, सांस्कृतिक और खगोलीय महत्व है इस  दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है, जिसे सूर्य का उत्तरायण भी कहा जाता है एवं इसके साथ ही  खरमास भी समाप्त हो जाता है और शुभ कार्यों की शुरुआत होती है । मुख्यतः. धार्मिक दृष्टि से, यह दिन भगवान सूर्य की पूजा का दिन है । इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, दान-पुण्य करते हैं और सूर्य देव की आराधना करते हैं । सांस्कृतिक रूप से, यह पर्व नई फसल के आगमन की खुशी का प्रतीक है । इस दिन तिल और गुड़ से बनी चीजें खाई जाती हैं और पतंगें उड़ाई जाती हैं. खगोलीय दृष्टि से, इस दिन सूर्य की स्थिति में परिवर्तन होता है, जिससे दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी होने लगती हैं. । भारत वर्ष में मकर संक्रांति को संक्रांति, पोंगल, माघी, उत्तरायण, उत्तरायणी और खिचड़ी आदि नाम से भी  जाना जाता है ।

मकर संक्रांति - शुभ मुहूर्त

हिन्दू पंचाग के आधार पर ज्योतिषाचार्य डॉ. संजय गील ने बताया की मकर संक्रांति इस बार मंगलवार,14 जनवरी 2025 को ही मनाई जाएगी । इस दिन सूर्य सुबह 8 बजकर 41 मिनट मकर राशि में प्रवेश करेंगे । हिंदू पंचांग के अनुसार, मकर संक्रांति पुण्य काल का समय सुबह 9 बजकर 03 मिनट से लेकर शाम 5 बजकर 46 मिनट तक रहेगा और महापुण्य काल का समय सुबह 9 बजकर 03 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 48 मिनट तक रहेगा ।

ये बन रहे रहे विशेष ज्योतिषीय संयोग

हिन्दू पंचाग के आधार पर ज्योतिषाचार्य डॉ. संजय गील ने बताया की इस बार 19 वर्षो बाद मकर संक्रांति पर  विशेष संयोग निर्मित हो रहे है,जिसमे भौम पुष्प योग को अत्यंत शुभ माना जा रहा है । यह योग मंगल और पुष्य नक्षत्र के मिलन से बनता है । इस योग में किए गए कार्यों में सफलता मिलने की संभावना बढ़ जाती है साथ ही  इस बार माघ कृष्ण प्रतिपदा  में पुनर्वसु व पुष्य नक्षत्र के युग्म संयोग का निर्माण भी  हो रहा है ।

 मान्यता है की मकर संक्रांति पर बन रहे इन संयोगो में सूर्य के मकर राशि में आने पर शनि से संबंधित वस्तुओं के दान व सेवन से सूर्य के साथ शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है एवं  पिता व पुत्र की आपसी मतभेद को दूर करने तथा अच्छे संबंध स्थापित करने में इन योगो का विशेष महत्व है । इसी प्रकार पितृ दोष की समाप्ति भी इस योग में उपासना करने से संभव है  

ये करे विशेष उपाय -

  • मकर संक्रांति के दिन नदियों में स्नान और चावल, दाल, तील और खिचड़ी का दान करे ।  
  • सूर्य देव की उपासना कर घर पर पूर्व दिशा में ताम्बे का सूर्य स्थापित करे
  • ॐ ह्रीं सूर्याय नमः, ॐ घृणिः सूर्याय नमः, ॐ आदित्याय नमः, ऊँ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्, ऊँ खखोल्काय स्वाहा का जाप अथवा माघ माहात्म्य का पाठ करें ।
  • गौशाला में हरी घास और गायों की देखभाल के लिए धन का दान करें ।
  • जरूरतमंद लोगों को ऊनी वस्त्र या कंबल का दान जरूर करें ।

Tuesday, December 31, 2024

वर्ष 2025 में रहेगा शनि, बृहस्पति एवं मंगल ग्रह का विशेष का प्रभाव

 वर्ष 2025 में रहेगा शनि, बृहस्पति एवं मंगल ग्रह का विशेष का प्रभाव

भारतीय समाज में विविधता हर क्षेत्र में देखने को मिलती है शायद इसका प्रमुख कारण भारतीयों की समभाव की भावना ही है  जो नवाचार प्रदान करने वाली संस्कृति को अपना लेती है । वास्तव में सनातन संस्कृति में नव सवंत्सर से नवीन वर्ष का प्रारम्भ माना जाता है , किन्तु कई वर्षो से आंग्ल नववर्ष को भी हम मानते आ रहे है ।  ज्योतिषीय  आधार पर नव आंग्ल वर्ष 2025  में अनेक ज्योतिषीय घटनाए फलित होगी जो आमजन को सीधा ही प्रभावित करेगी । ज्योतिषीय गणना के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की वर्ष 2025 में गुरु, शनि, राहु और केतु राशि परिवर्तन का प्रभाव सभी राशियों, देश और दुनिया पर देखने को मिलेगा। नया वर्ष 2025 में 4 ग्रहों का राशि परिवर्तन होगा। पहले 29 मार्च को शनि का कुंभ से निकलकर मीन राशि में गोचर होगा। इसके बाद 14 मई को बृहस्पति का वृषभ राशि से निकलकर मिथुन राशि में गोचर होगा। इसके बाद 18 मई को राहु और केतु का गोचर कुंभ और सिंह राशि में होगा। इसके अलावा मंगल का गोचर भी बड़े बदलाव का कारण बनेगा।

 मुख्यतः 29 मार्च, 2025 को शनि बृहस्पति की राशि मीन में गोचर करेंगे तब तक शनिदेव कुंभ राशि में रहकर शश राजयोग का फल देंगे। शश राजयोग के कारण कुछ राशियों के लोगों को असीम लाभ मिलता रहेगा। वर्ष 2025 की शुरुआत में शनि देव शश नामक पंच महापुरुष योग का निर्माण कर रहे हैं। वर्तमान समय में शनि देव कुंभ राशि पर गोचर कर रहे हैं, कुंभ राशि शनि की मूल त्रिकोण राशि कहलाती है। ज्योतिष मतानुसार शनि का अपनी मूल त्रिकोण राशि में रहना शश नामक पंच महापुरुष योग का निर्माण करता है। शश योग विशेष दर्जे का राजयोग माना जाता है तथा विशेष फलदाई होता है, वर्ष 2025 के शुरुआती 3 महीनो में यह पंच महापुरुष योग विशेष फल देने वाला होगा। इसी प्रकार ज्योतिष गणना के अनुसार 14 मई 2025 से देव  गुरु बृहस्पति  ग्रह वृषभ राशि  से मिथुन राशि में 3 गुना अतिचारी हो गोचर रहे हैं। अतिचारी यानी वे अब तेज गति से एक राशि को बहुत कम समय में पार करके पुन: उसी राशि में वक्री लौटेंगे और फिर मार्गी होकर पुन: अगली राशि में चले जाएंगे। ऐसे नए वर्ष 2025 में गुरु के मिथुन राशि में जाने से मित्र राशि के जातको को लाभ मिलेगा ।

नए साल में मंगल ग्रह बनेगा बदलाव का कारण

अंक ज्योतिष के आधार पर  वर्ष 2025 मंगल के प्रभाव का वर्ष है जो की अनेक  बड़ी घटनाओ एवं परिवर्तन के लिए उत्तरदायी होगा । मूलतः मंगल क्रिया और ऊर्जा का ग्रह है। इस प्रकार नववर्ष 2025 दुनिया के नजरिए से साहसिक निर्णय, बड़े कार्यो और लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक मजबूत अभियान का वर्ष होगा। मंगल चूंकि सेनापति हैं, इसलिए वह चुनौतियां भी लेकर के आते हैं। इसलिए मंगल की ऊर्जा को बहुत बुद्धिमानी से संभालता आवश्यक हो जाता है।

मान्यताओ के आधार पर ज्योतिषाचार्य डॉ. संजय गील  ने बताया कि 2025 का अधिपति  मंगल होने से  देश और दुनिया में सेना की गतिविधियो में वृद्धि  के साथ ही राष्ट्र अध्यक्षों के पास साहस और पराक्रम पहले से कहीं अधिक होगा। विभिन्न  समस्याओं से निपटने और साहसिक कदम उठाने के लिए सरकार हरपल तैयार रहेगी । मंगल का प्रभाव जहां एक ओर वीरता को बढ़ाता है, वहीं संघर्ष का कारक भी बन सकता है। इसलिए राष्ट्रअध्यक्षों को शांत रहना होगा। जल्दबाजी में लिए गए निर्णय से बचना होगा। अगर आप शांत और गंभीर होकर कोई निर्णय लेंगे तो मंगल की उस तीव्र ऊर्जा को आप संतुलित कर पाएंगे ।

इन राशियों पे रहेगी शनि की साढ़े  साती और  ढैय्या

29 मार्च, 2025 को शनि मीन राशि में प्रवेश करेंगे । इस दिन शनि की साढ़ेसाती का पहला चरण मेष राशि पर, दूसरा चरण मीन राशि पर, और तीसरा चरण कुंभ राशि पर शुरू होगा । इसी प्रकार शनिदेव कुंभ राशि से मीन राशि में प्रवेश करेंगे और इसके बाद सिंह और धनु राशि पर शनि की ढैय्या शुरू होगी । शनि की ढैय्या का प्रभाव ढाई साल तक रहता है । 

यह करे विशेष उपाय :-

मंगल स्त्रोत , शनि स्त्रोत एवं गुरु स्त्रोत का नित्य पाठ करे ।

दशरथकृत शनि चालीसा का पाठ करे ।

अनाथ एवं गरीबो की मदद करे ।

स्त्रियों का सम्मान करे ।

केसर के तिलक का प्रयोग करे ।

Monday, November 11, 2024

देवउठनी एकादशी पर 200 दिन बाद आज से गूंजेगी शहनाईया

 देवउठनी एकादशी पर 200 दिन बाद आज से गूंजेगी शहनाईया

भगवान विष्णु की उपासना से मिलेगा  धन-संपदा और सौभाग्य का आशीर्वाद

हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन से ही चातुर्मास का समापन होता है। धार्मिक मान्यतानुसार इस दिन सृष्टि के पालनकर्ता भगवान श्री विष्णु शयन निद्रा से जाग्रत होकर पुन: सृष्टि का कार्यभार संभालने लगते हैं और भगवान भोलेनाथ फिर से कैलाश यात्रा पर निकल पड़ते हैं। इस दिन भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। देवउठनी एकादशी के दिन ही कुछ जगहों पर तुलसी विवाह भी कराया जाता है और कुछ जगहों पर एकादशी व्रत पारण के दिन यानी द्वादशी तिथि पर तुलसी विवाह कराते हैं। हिन्दू पंचाग के आधार पर इस बार  देवउठनी एकादशी का पावन पर्व मंगलवार, 12 नवंबर को मनाया जा रहा  है, इसके साथ ही दौ सो दिवस के बाद विवाह एवं  अन्य  मांगलिक कार्य भी प्रारम्भ हो रहे है ।

हिन्दू पंचाग के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की एकादशी तिथि सोमवार, 11 नवंबर को शाम 06 बजकर 46 मिनट से  प्रारंभ होकर मंगलवार, 12 नवंबर को शाम 04 बजकर 04 मिनट पर समाप्त होगी। इस प्रकार उदया  तिथि के आधार पर देवउठनी एकादशी व्रत मंगलवार 12 नवंबर 2024, को  ही रखा जाएगा । इसी प्रकार देवउठनी एकादशी व्रत का पारण बुधवार, 13 नवंबर 2024, को किया जाएगा। व्रत पारण का समय 13 नवंबर को सुबह 06 बजकर 42 मिनट से सुबह 08 बजकर 51 मिनट तक रहेगा ।

ये है मान्यता –

धार्मिक मान्यताओ के अनुसार देवउठनी एकादशी पूजा-पाठ के साथ ही कुछ उपाय अपनाना भी लाभकारी माना गया है. यदि विवाह में देरी हो रही है या बाधाएं आ रही हैं तो देवउठनी एकादशी के दिन किये गए उपायो से सभी बाधाएं दूर होती है । मान्यता है की भगवान विष्णु का  इस जागरण मंत्र से आह्वान करने से सुख और सम्पदा का वास होता है ।

मंत्र   - 'उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये। त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्‌।।'

'उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिश:।।'

ये करे उपाय -

यदि किसी युवक या युवती के विवाह में बाधाएं आ रही हैं या रिश्ता पक्का होते-होते रह जाता है तो उसे देवउठनी एकादशी के दिन केसर व हल्दी का यह उपाय करना चाहिए । देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन करें और उन्हें केसर व हल्दी का तिलक लगाएं, इसके बाद उन्हें पीले रंग के फूल अर्पित करें । 

अगर वैवाहिक जीवन में बाधाएं आ रही हैं और पति-पत्नी के रिश्ते में खटास उत्पन्न हो गई है तो देवउठनी एकादशी के दिन कच्चे दूध में गन्ने का रस मिलाकर तुलसी के पौधे में अर्पित करें । 

देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी के पौधे में घी के 5 दीपक जलाएं. फिर विधि-विधान से मां तुलसी और भगवान विष्णु का पूजन करें । ज्योतिष शास्त्र के अनुसार देवउठनी एकादशी के दिन इस उपाय को करने से जीवन से सभी परेशानियां दूर होती हैं और खुशहाली आती है ।

विवाह के शुभ मुहूर्त :-

 हिन्दू पंचाग के आधार पर देवउठनी एकादशी से प्रारंभ  हो रहे विवाह के साथ ही 12,13,16,17,18,22,23,25,26,28  और 29 नवंबर  के बाद दिसम्बर में 4 ,5,9,10,14 और 15 को इस वर्ष अंतिम विवाह मुहूर्त रहेगा

Dr. Sanjay Geel

President

Sai Astrovision Society, Chittorgarh (Raj.)

9829747053,7425999259

Sunday, October 27, 2024

DIWALI 2024 -SHUBH MUHURAT & REMIDIES

 

काल निर्धारण के आधार पर दोनों दिन मनायी जा सकेगी  दिवाली

लक्ष्मीनारायण एवं शश राजयोग में की जाएगी माँ लक्ष्मी की उपासना

सनातन धर्म में  पांच दिवसीय दीपोत्सव के अंतर्गत दिवाली पर्व  कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर मनाया जाता है ।  इस बार अमावस्या तिथि दो दिवसों के मध्य घटित हो रही है, किन्तु प्रदोष काल के महात्म्य के आधार पर दिवाली पर्व  गुरूवार ,31 अक्टूबर को मनाया जाना ज्यादा शास्त्र सम्मत  है । इसी प्रकार शनिवार ,2 नवंबर 2024 को गोवर्धन पूजा एवं रविवार 3 नवंबर 2024 भाई दूज पर्व मनाया जा सकेगा ।  

हिन्दू पंचाग के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की इस वर्ष  दिवाली पर 30 सालों के बाद ऐसा महासंयोग बन रहा है कि कर्मफल के देवता शनिदेव अपनी मूल त्रिकोण राशि कुंभ में गोचर कर  शश राजयोग का निर्माण कर रहे है । इसी प्रकार आयुष्मान योग का निर्माण होने के साथ ही बुध और शुक्र वृश्चिक राशि में धन और सौभाग्य देने वाला ‘लक्ष्मी नारायण योग’ बन रहा  हैं।मान्यता है की  इन सब योग और संयोग का विलय दिवाली पर होने से व्यक्ति के जीवन में धन, ऐश्वर्य सुख संतान की प्राप्ति , उत्तम स्वास्थ्य लाभ,पराक्रम वृद्धि और  सर्व बाधा निवारण का संचार होता  हैं । 

लक्ष्मी गणेश पूजन   शुभ मुहूर्त

ज्योतिषीय गणना के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया अमावस्या गुरूवार ,31 अक्टूबर को सांय  3बजकर 12 मिनट से प्रारंभ होकर शुक्रवार , 01 नवंबर को शाम 6 बजकर 16 मिनट तक रहेगी धार्मिक मान्यताओ के अनुसार की  दीपावली तिथि का निर्धारण का मुख्य प्रत्यय लक्ष्मी पूजा व अर्ध रात्रि की उपासना पर आधारित  है अर्थात  अमावस्या तिथि में अर्ध रात्रि  और स्थिर लग्न मिले तब ही लक्ष्मी पूजन श्रेष्ठ माना गया  है एवं  वृष व सिंह लग्न 31 अक्टूबर 2024  की रात्रि में प्राप्त होंगे अतः इस दिन महालक्ष्मी पूजन अत्यंत उत्तम रहेगा ।  तदापि देश , काल एवं स्थान के आधार पर  शुक्रवार , 1 नवंबर 2024  को भी लक्ष्मी पूजन किया जा सकेगा   

शुभ मुहूर्त (गुरूवार,31 अक्टूबर 2024 )

सर्वश्रेष्ठ  मुहूर्त : शाम 05:32 से रात्रि 08:51 तक ।

गोधुली मुहूर्त: शाम 05:36 से 06:02 तक।

संध्या पूजा : शाम 05:36 से 06:54 तक।

अमृत काल : शाम 05:32 से 07:20 तक।

निशिथ पूजा काल : रात्रि 11:39 से 12:31 तक। 

प्रदोष काल: शाम 05: 36 से रात्रि 08 :11 तक

वृषभ काल :शाम 06 : 25 से रात्रि 08 : 20 तक । 

सिंह काल : रात्रि 12 : 35 से रात्रि 2 : 49 तक 

शुभ मुहूर्त (शुक्रवार, 1 नवंबर 2024 )

जो जातक महालक्ष्मी पूजन शुक्रवार, 1 नवंबर 2024 को करना चाहते है वे प्रातः दान तर्पण आदि से निवृत होकर शुभ चोघडिये और  सांयकाल  05:03 बजे लेकर 7:57 बजे के बीच महालक्ष्मी पूजन कर सकते हैं ।  यदि बिल्कुल ही शुद्ध समय लेना हो तो शाम 5:33 बजे से 6:17 के बीच का समय उचित रहेगा । 

गोवर्धन पूजा शुभ मुहूर्त  (शनिवार 2 नवंबर,2024 )

हिन्दू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि शुक्रवार 1 नवंबर 2024 को सायं 06 बजकर 16 मिनट पर प्रारंभ होगी, वहीं इसका समापन शनिवार 2 नवंबर को रात्रि 08 बजकर 21 मिनट पर होगा। उदयातिथि के आधार पर  गोवर्धन पूजा 2 नवंबर 2024 को की जायेगी।  इस प्रकार गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त 2 नवंबर 2024 को सुबह 6 बजे से लेकर 8 बजे तक है। इसके पश्चात दोपहर 03 बजकर 23 मिनट से लेकर 05 बजकर 35 मिनट का शुभ मुहूर्त है।  

भाई दूज शुभ मुहूर्त (रविवार 3 नवंबर,2024 )

कार्तिक मास द्वितीया तिथि का आरंभ शनिवार 2 नवंबर को रात्री  में 8 बजकर 22 मिनट पर हो जाएगा और कार्तिक द्वितीया तिथि रविवार, 3 नवंबर रात्रि 10 बजकर 6 मिनट तक  रहेगी। उदया तिथि आधार पर  भाई दूज का पर्व 3 तारीख को मनाया जाएगा। 3 तारीख को सुबह में 11 बजकर 39 मिनट तक सौभाग्य योग रहेगा। इसके बाद शोभन योग लग जाएगा अतः भाई दूज के दिन पूजा के लिए सबसे उत्तम मुहूर्त 11 बजकर 45 मिनट तक रहेगा ।

ये करे विशेष उपाय –

दिवाली पर लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व है। मान्यता के अनुसार देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।दिवाली पर  देवी लक्ष्मी के स्वागत के लिए अपने घरों साफ-सुथरा  कर मुख्य द्वार को हल्दी और कर्पुर मिश्रित  रंगोली, फूल और दीयों से सजाएं। दिवाली की रात पूजा करने के बाद चांदी के बर्तन में कपूर जलाकर लक्ष्मी की आरती करनी चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति को जीवन में कभी भी आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पड़ता है। आर्थिक और शारीरिक लाभ हेतु दीपावली की शाम को पीपल के पेड़ के पास दीपक जलाए। पूजा के समय कच्चे चने की दाल मां लक्ष्मी को अर्पित करें। इससे धन संबंधी परेशानियां दूर होती हैं।इस दिन घर के कोने में सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। ऐसा करने से घर से दरिद्रता एवं  भूत-प्रेत से संबंधित बाधाएं दूर होती हैं। लक्ष्मी की पूजा के बाद रात्रि जागरण कर विष्णु सहस्त्रनाम एवं कनकधारा स्त्रोत अथवा श्रीसूक्त का पाठ करे ।

 डॉ. संजय गील 

अध्यक्ष 

साईं अस्त्रों विज़न सोसायटी , चितोडगढ़ 

9829747053,7425999259

Tuesday, October 22, 2024

दिवाली से पहले 752 वर्षो बाद बन रहे गुरु पुष्य नक्षत्र सहित 6 अद्भुत संयोग

 दिवाली से पहले 752 वर्षो बाद बन रहे  गुरु पुष्य नक्षत्र सहित 6  अद्भुत संयोग

गुरुवार 24 अक्टूबर को पुष्य नक्षत्र सहित अद्भुत संयोगो का निर्माण हो रहा है । ज्योतिषीय गणना  के अनुसार गुरुवार के दिन पुष्य नक्षत्र पड़ने के कारण इसे गुरु पुष्य नक्षत्र योग के नाम से जाना जाता है। तैत्रीय ब्राह्मण में कहा गया है कि, 'बृहस्पतिं प्रथमं जायमानः तिष्यं नक्षत्रं अभिसं बभूव। पुष्य नक्षत्र को बहुत ही शुभ माना गया है। जब गुरुवार के दिन पुष्य नक्षत्र का संयोग बने तो इसे गुरु पुष्य नक्षत्र योग के नाम से जाना जाता है, वहीं रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र पड़ने के कारण इसे रवि पुष्य योग कहा जाता है। मुहूर्त ज्योतिष के यह श्रेष्ठतम मुहूर्तों में से एक है। हिन्दू पंचाग  के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया इस बार दिवाली से पहले 752 वर्षो बाद  गुरु पुष्य योग के साथ इस दिन महालक्ष्मी, सर्वार्थसिद्धि, अमृतसिद्धि, पारिजात, बुधादित्य और पर्वत योग का निर्माण हो रहा है । दिवाली से पूर्व गुरु पुष्य नक्षत्र के साथ इन शुभ योगो  में  खरीदारी, नवीन कार्य और निवेश के लिए अति उत्तम माना गया  है ।  

कब से कब तक है गुरु पुष्य योग

हिन्दू पंचाग के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की पुष्य नक्षत्र का गुरु पुष्य नक्षत्र का आरंभ गुरुवार 24 अक्टूबर 2024 को सुबह 11:38 बजे से होगा और इसका समापन शुक्रवार 25 अक्टूबर 2024 को दोपहर 12:11 बजे तक होगा. 

खरीदारी शुभ मुहूर्त-

सोना और वाहन खरीदने का मुहूर्त: सुबह 11:43 से दोपहर 12:28 तक ।

लाभ का चौघड़िया: दोपहर 12:15 से दोपहर 01:40 तक । 

अमृत का चौघड़िया: दोपहर 01:40 से दोपहर 03:05  तक ।

शुभ का चौघड़िया: अपराह्न 04:30  से शाम 05:55 तक।

गुरु पुष्य योग में ये करे विशेष कार्य

गुरु पुष्य योग की अवधि के दौरान सोना, आभूषण, घर, अचल संपत्ति और निवेश खरीदना शुभ माना जाता है। 

इस योग में आप कोई नया व्यवसाय या नौकरी शुरू कर सकते हैं। माना जाता है कि इससे इन कार्यों में सफलता मिल सकती है। इससे आपकी आर्थिक स्थिति भी मजबूत होगी।

गुरु पुष्य योग में देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। देवी लक्ष्मी को खीर और दूध से बनी मिठाई का भोग लगाया जाता है और भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते, पंचामृत, गुड़ आदि अर्पित किया जाता है। कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें। लक्ष्मी नारायण की कृपा से आपके धन में वृद्धि होगी।

गुरु पुष्य योग में हल्दी भी खरीद सकते हैं। भगवान विष्णु और गुरु बृहस्पति के लिए महत्वपूर्ण है। इससे आपका भाग्य मजबूत होता है। 

गुरु पुष्य योग में आपको चांदी का लक्ष्मी यंत्र या चांदी की कोई चौकोर वस्तु खरीदनी चाहिए। उसकी पूजा करनी चाहिए। इससे आपकी आर्थिक तंगी दूर हो जाएगी और घर में सुख-समृद्धि बनी रहेगी।

इस बार रात्रि में गुरु पुष्य योग बन रहा है। ऐसे में आप सबसे पहले उस उत्पाद का चयन कर सकते हैं जिसे आप खरीदना चाहते हैं और गुरु पुष्य योग के दौरान उसका भुगतान कर सकते हैं। इससे गुरु पुष्य योग में आपकी खरीदारी होगी और आप उसका लाभ उठा सकेंगे।

Dr. Sanjay Geel

Astrologer

Sai Astrovision Society, Chittorgarh

9829747053,7425999259

DHAN TERAS 2024 -धनतेरस पर त्रिपुष्कर - इंद्र योग में बरसेगी माँ लक्ष्मी एवं कुबेर की कृपा

 

धनतेरस पर त्रिपुष्कर - इंद्र योग में बरसेगी माँ लक्ष्मी एवं कुबेर की कृपा

डॉ. संजय गील 
(N.E.T. PH.D. JYOTISH RATNA)
 

पांच दिवसीय दीपोत्सव की शुरुआत धनतेरस से मानी गयी है । सनातन धर्म में धनतेरस का पर्व हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर मनाया जाता है जो कि  इस वर्ष मंगलवार, 29 अक्टूबर को है । धनतेरस के दिन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के जनक भगवान धन्वंतरि के साथ माता लक्ष्मी,कुबेर देवता और मृत्यु के देवता यमराज की पूजा अर्चना की जाती है वही  अगले दिन नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, भगवान धन्वंतरि की पूजा उपासना करने से आरोग्य की प्राप्ति होती है और व्यक्ति ऊर्जावान रहता है । धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान धन्वंतरि को भगवान विष्णु का  अंशावतार माना जाता है एवं  उनके हाथ में अमृत कलश होने की वजह से इस दिन बर्तन खरीदने की परंपरा भी देखने को मिलती  है ।

हिन्दू पंचाग के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की इस बार धनतेरस पर त्रिपुष्कर योग बन रहा है जो कि प्रातः  6 बजकर 31 मिनट से प्रारंभ होकर  अगले दिन प्रातः  10 बजकर 31 मिनट तक रहेगा । साथ ही  प्रातः  7 बजकर 48 मिनट से इंद्र योग, वैधृति योग का  उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र एवं  हस्त नक्षत्र में  शुभ  संयोग  का निर्माण  हो रहा है । इसी प्रकार इस दिन  बुध और शुक्र की  युति होने  से लक्ष्मी नारायण राजयोग का निर्माण भी हो रहा है । मान्यता है कि इस विशेष संयोग में  माता लक्ष्मी, कुबेर और धन्वंतरि की पूजा करने से सुख और समृद्धि में वृद्धि भगवान धन्वंतरि भक्तो को आरोग्य प्रदान करते है ।

धनतेरस शुभ मुहूर्त

हिन्दू पंचाग के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की  इस वर्ष धन्वंतरि पूजा का शुभ समय प्रातः 06:31 बजे से 08:44 बजे तक है । धनतेरस पूजा का समय सर्वश्रेष्ठ समय सांय  06:31 बजे से रात्री 08:12 बजे तक रहेगा, जिसकी कुल अवधि 01 घंटा 41 मिनट होगी । मान्यताओ के आधार पर धनतेरस की पूजा हमेशा प्रदोष काल में की ही  जाती है, जिसमे माता लक्ष्मी, कुबेर  की पूजा अर्चना कर यम के निमित्त की दक्षिण दिशा की ओर दीपदान किया जाता है, जिससे  अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है ।

प्रदोष काल: शाम 6:01 बजे से रात 8:27 बजे तक
वृषभ काल: शाम 7:04 बजे से रात 9:08 बजे तक

खरीदारी का शुभ मुहूर्त –

मान्यता है कि धनतेरस के दिन खरीदारी करने से धन में 13 गुणा वृद्धि होती है। शास्त्रों के अनुसार इस  दिन स्वर्ण, चांदी, बर्तन, झाड़ू, श्री यंत्र,चावल,धनिया.झाड़ू, गोमती चक्र,पान के पत्ते , नमक  ,वाहन, प्रॉपर्टी आदि क्रय करना शुभ माना गया है,वही  इसके विपरीत एल्युमिनियम, स्टील, प्लास्टिक, कांच, काले तेल या घी चीनी मिट्टी के बर्तन खरीदने से बचना चाहिये ।   

त्रिपुष्कर योग - प्रातः  सुबह 6 बजकर 31 मिनट से अगले दिन तक 10 बजकर 31 मिनट तक  

अभिजीत मुहूर्त – प्रातः 11 बजकर 42 मिनट से दोपहर 12 बजकर 27 मिनट तक ।

सरल  पूजा विधि

धनतेरस के अवसर पर शुभ समय में पूर्व अथवा उत्तर दिशा में  धन्वंतरि देव के साथ मां लक्ष्मी और कुबेर देवता की मूर्ति या तस्वीर की स्थापना कर घी का दीपक प्रज्वलित करें और संध्या के समय द्वार पर दीपक जलाएं । धनतेरस के दिन धन्वंतरि देव को पीली मिठाई का भोग एवं धन के देवता कुबेर और मां लक्ष्मी को  कुमकुम, हल्दी, अक्षत, हलवा अथवा खीर का भोग अर्पित  कर मंत्रों का जाप एवं आरती करें ।मान्यता है कि  इस दिन जो भी खरीदे मां लक्ष्मी को अर्पित करने से परिवार में समृद्धि आती है ।

धन्वंतरि देव मंत्र - 'ॐ नमो भगवते धन्वंतराय विष्णुरूपाय नमो नमः

कुबेर मंत्र - ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं में देहि दापय।

FOR MORE INFORMATION 

DR. SANJAY GEEL

PRESIDENT,

 SAI ASTROVISION SOCIETY, CHITTORGARH 

9829747053,7425999259