Monday, November 11, 2024

देवउठनी एकादशी पर 200 दिन बाद आज से गूंजेगी शहनाईया

 देवउठनी एकादशी पर 200 दिन बाद आज से गूंजेगी शहनाईया

भगवान विष्णु की उपासना से मिलेगा  धन-संपदा और सौभाग्य का आशीर्वाद

हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन से ही चातुर्मास का समापन होता है। धार्मिक मान्यतानुसार इस दिन सृष्टि के पालनकर्ता भगवान श्री विष्णु शयन निद्रा से जाग्रत होकर पुन: सृष्टि का कार्यभार संभालने लगते हैं और भगवान भोलेनाथ फिर से कैलाश यात्रा पर निकल पड़ते हैं। इस दिन भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। देवउठनी एकादशी के दिन ही कुछ जगहों पर तुलसी विवाह भी कराया जाता है और कुछ जगहों पर एकादशी व्रत पारण के दिन यानी द्वादशी तिथि पर तुलसी विवाह कराते हैं। हिन्दू पंचाग के आधार पर इस बार  देवउठनी एकादशी का पावन पर्व मंगलवार, 12 नवंबर को मनाया जा रहा  है, इसके साथ ही दौ सो दिवस के बाद विवाह एवं  अन्य  मांगलिक कार्य भी प्रारम्भ हो रहे है ।

हिन्दू पंचाग के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की एकादशी तिथि सोमवार, 11 नवंबर को शाम 06 बजकर 46 मिनट से  प्रारंभ होकर मंगलवार, 12 नवंबर को शाम 04 बजकर 04 मिनट पर समाप्त होगी। इस प्रकार उदया  तिथि के आधार पर देवउठनी एकादशी व्रत मंगलवार 12 नवंबर 2024, को  ही रखा जाएगा । इसी प्रकार देवउठनी एकादशी व्रत का पारण बुधवार, 13 नवंबर 2024, को किया जाएगा। व्रत पारण का समय 13 नवंबर को सुबह 06 बजकर 42 मिनट से सुबह 08 बजकर 51 मिनट तक रहेगा ।

ये है मान्यता –

धार्मिक मान्यताओ के अनुसार देवउठनी एकादशी पूजा-पाठ के साथ ही कुछ उपाय अपनाना भी लाभकारी माना गया है. यदि विवाह में देरी हो रही है या बाधाएं आ रही हैं तो देवउठनी एकादशी के दिन किये गए उपायो से सभी बाधाएं दूर होती है । मान्यता है की भगवान विष्णु का  इस जागरण मंत्र से आह्वान करने से सुख और सम्पदा का वास होता है ।

मंत्र   - 'उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये। त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्‌।।'

'उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिश:।।'

ये करे उपाय -

यदि किसी युवक या युवती के विवाह में बाधाएं आ रही हैं या रिश्ता पक्का होते-होते रह जाता है तो उसे देवउठनी एकादशी के दिन केसर व हल्दी का यह उपाय करना चाहिए । देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन करें और उन्हें केसर व हल्दी का तिलक लगाएं, इसके बाद उन्हें पीले रंग के फूल अर्पित करें । 

अगर वैवाहिक जीवन में बाधाएं आ रही हैं और पति-पत्नी के रिश्ते में खटास उत्पन्न हो गई है तो देवउठनी एकादशी के दिन कच्चे दूध में गन्ने का रस मिलाकर तुलसी के पौधे में अर्पित करें । 

देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी के पौधे में घी के 5 दीपक जलाएं. फिर विधि-विधान से मां तुलसी और भगवान विष्णु का पूजन करें । ज्योतिष शास्त्र के अनुसार देवउठनी एकादशी के दिन इस उपाय को करने से जीवन से सभी परेशानियां दूर होती हैं और खुशहाली आती है ।

विवाह के शुभ मुहूर्त :-

 हिन्दू पंचाग के आधार पर देवउठनी एकादशी से प्रारंभ  हो रहे विवाह के साथ ही 12,13,16,17,18,22,23,25,26,28  और 29 नवंबर  के बाद दिसम्बर में 4 ,5,9,10,14 और 15 को इस वर्ष अंतिम विवाह मुहूर्त रहेगा

Dr. Sanjay Geel

President

Sai Astrovision Society, Chittorgarh (Raj.)

9829747053,7425999259

Sunday, October 27, 2024

DIWALI 2024 -SHUBH MUHURAT & REMIDIES

 

काल निर्धारण के आधार पर दोनों दिन मनायी जा सकेगी  दिवाली

लक्ष्मीनारायण एवं शश राजयोग में की जाएगी माँ लक्ष्मी की उपासना

सनातन धर्म में  पांच दिवसीय दीपोत्सव के अंतर्गत दिवाली पर्व  कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर मनाया जाता है ।  इस बार अमावस्या तिथि दो दिवसों के मध्य घटित हो रही है, किन्तु प्रदोष काल के महात्म्य के आधार पर दिवाली पर्व  गुरूवार ,31 अक्टूबर को मनाया जाना ज्यादा शास्त्र सम्मत  है । इसी प्रकार शनिवार ,2 नवंबर 2024 को गोवर्धन पूजा एवं रविवार 3 नवंबर 2024 भाई दूज पर्व मनाया जा सकेगा ।  

हिन्दू पंचाग के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की इस वर्ष  दिवाली पर 30 सालों के बाद ऐसा महासंयोग बन रहा है कि कर्मफल के देवता शनिदेव अपनी मूल त्रिकोण राशि कुंभ में गोचर कर  शश राजयोग का निर्माण कर रहे है । इसी प्रकार आयुष्मान योग का निर्माण होने के साथ ही बुध और शुक्र वृश्चिक राशि में धन और सौभाग्य देने वाला ‘लक्ष्मी नारायण योग’ बन रहा  हैं।मान्यता है की  इन सब योग और संयोग का विलय दिवाली पर होने से व्यक्ति के जीवन में धन, ऐश्वर्य सुख संतान की प्राप्ति , उत्तम स्वास्थ्य लाभ,पराक्रम वृद्धि और  सर्व बाधा निवारण का संचार होता  हैं । 

लक्ष्मी गणेश पूजन   शुभ मुहूर्त

ज्योतिषीय गणना के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया अमावस्या गुरूवार ,31 अक्टूबर को सांय  3बजकर 12 मिनट से प्रारंभ होकर शुक्रवार , 01 नवंबर को शाम 6 बजकर 16 मिनट तक रहेगी धार्मिक मान्यताओ के अनुसार की  दीपावली तिथि का निर्धारण का मुख्य प्रत्यय लक्ष्मी पूजा व अर्ध रात्रि की उपासना पर आधारित  है अर्थात  अमावस्या तिथि में अर्ध रात्रि  और स्थिर लग्न मिले तब ही लक्ष्मी पूजन श्रेष्ठ माना गया  है एवं  वृष व सिंह लग्न 31 अक्टूबर 2024  की रात्रि में प्राप्त होंगे अतः इस दिन महालक्ष्मी पूजन अत्यंत उत्तम रहेगा ।  तदापि देश , काल एवं स्थान के आधार पर  शुक्रवार , 1 नवंबर 2024  को भी लक्ष्मी पूजन किया जा सकेगा   

शुभ मुहूर्त (गुरूवार,31 अक्टूबर 2024 )

सर्वश्रेष्ठ  मुहूर्त : शाम 05:32 से रात्रि 08:51 तक ।

गोधुली मुहूर्त: शाम 05:36 से 06:02 तक।

संध्या पूजा : शाम 05:36 से 06:54 तक।

अमृत काल : शाम 05:32 से 07:20 तक।

निशिथ पूजा काल : रात्रि 11:39 से 12:31 तक। 

प्रदोष काल: शाम 05: 36 से रात्रि 08 :11 तक

वृषभ काल :शाम 06 : 25 से रात्रि 08 : 20 तक । 

सिंह काल : रात्रि 12 : 35 से रात्रि 2 : 49 तक 

शुभ मुहूर्त (शुक्रवार, 1 नवंबर 2024 )

जो जातक महालक्ष्मी पूजन शुक्रवार, 1 नवंबर 2024 को करना चाहते है वे प्रातः दान तर्पण आदि से निवृत होकर शुभ चोघडिये और  सांयकाल  05:03 बजे लेकर 7:57 बजे के बीच महालक्ष्मी पूजन कर सकते हैं ।  यदि बिल्कुल ही शुद्ध समय लेना हो तो शाम 5:33 बजे से 6:17 के बीच का समय उचित रहेगा । 

गोवर्धन पूजा शुभ मुहूर्त  (शनिवार 2 नवंबर,2024 )

हिन्दू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि शुक्रवार 1 नवंबर 2024 को सायं 06 बजकर 16 मिनट पर प्रारंभ होगी, वहीं इसका समापन शनिवार 2 नवंबर को रात्रि 08 बजकर 21 मिनट पर होगा। उदयातिथि के आधार पर  गोवर्धन पूजा 2 नवंबर 2024 को की जायेगी।  इस प्रकार गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त 2 नवंबर 2024 को सुबह 6 बजे से लेकर 8 बजे तक है। इसके पश्चात दोपहर 03 बजकर 23 मिनट से लेकर 05 बजकर 35 मिनट का शुभ मुहूर्त है।  

भाई दूज शुभ मुहूर्त (रविवार 3 नवंबर,2024 )

कार्तिक मास द्वितीया तिथि का आरंभ शनिवार 2 नवंबर को रात्री  में 8 बजकर 22 मिनट पर हो जाएगा और कार्तिक द्वितीया तिथि रविवार, 3 नवंबर रात्रि 10 बजकर 6 मिनट तक  रहेगी। उदया तिथि आधार पर  भाई दूज का पर्व 3 तारीख को मनाया जाएगा। 3 तारीख को सुबह में 11 बजकर 39 मिनट तक सौभाग्य योग रहेगा। इसके बाद शोभन योग लग जाएगा अतः भाई दूज के दिन पूजा के लिए सबसे उत्तम मुहूर्त 11 बजकर 45 मिनट तक रहेगा ।

ये करे विशेष उपाय –

दिवाली पर लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व है। मान्यता के अनुसार देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।दिवाली पर  देवी लक्ष्मी के स्वागत के लिए अपने घरों साफ-सुथरा  कर मुख्य द्वार को हल्दी और कर्पुर मिश्रित  रंगोली, फूल और दीयों से सजाएं। दिवाली की रात पूजा करने के बाद चांदी के बर्तन में कपूर जलाकर लक्ष्मी की आरती करनी चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति को जीवन में कभी भी आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पड़ता है। आर्थिक और शारीरिक लाभ हेतु दीपावली की शाम को पीपल के पेड़ के पास दीपक जलाए। पूजा के समय कच्चे चने की दाल मां लक्ष्मी को अर्पित करें। इससे धन संबंधी परेशानियां दूर होती हैं।इस दिन घर के कोने में सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। ऐसा करने से घर से दरिद्रता एवं  भूत-प्रेत से संबंधित बाधाएं दूर होती हैं। लक्ष्मी की पूजा के बाद रात्रि जागरण कर विष्णु सहस्त्रनाम एवं कनकधारा स्त्रोत अथवा श्रीसूक्त का पाठ करे ।

 डॉ. संजय गील 

अध्यक्ष 

साईं अस्त्रों विज़न सोसायटी , चितोडगढ़ 

9829747053,7425999259

Tuesday, October 22, 2024

दिवाली से पहले 752 वर्षो बाद बन रहे गुरु पुष्य नक्षत्र सहित 6 अद्भुत संयोग

 दिवाली से पहले 752 वर्षो बाद बन रहे  गुरु पुष्य नक्षत्र सहित 6  अद्भुत संयोग

गुरुवार 24 अक्टूबर को पुष्य नक्षत्र सहित अद्भुत संयोगो का निर्माण हो रहा है । ज्योतिषीय गणना  के अनुसार गुरुवार के दिन पुष्य नक्षत्र पड़ने के कारण इसे गुरु पुष्य नक्षत्र योग के नाम से जाना जाता है। तैत्रीय ब्राह्मण में कहा गया है कि, 'बृहस्पतिं प्रथमं जायमानः तिष्यं नक्षत्रं अभिसं बभूव। पुष्य नक्षत्र को बहुत ही शुभ माना गया है। जब गुरुवार के दिन पुष्य नक्षत्र का संयोग बने तो इसे गुरु पुष्य नक्षत्र योग के नाम से जाना जाता है, वहीं रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र पड़ने के कारण इसे रवि पुष्य योग कहा जाता है। मुहूर्त ज्योतिष के यह श्रेष्ठतम मुहूर्तों में से एक है। हिन्दू पंचाग  के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया इस बार दिवाली से पहले 752 वर्षो बाद  गुरु पुष्य योग के साथ इस दिन महालक्ष्मी, सर्वार्थसिद्धि, अमृतसिद्धि, पारिजात, बुधादित्य और पर्वत योग का निर्माण हो रहा है । दिवाली से पूर्व गुरु पुष्य नक्षत्र के साथ इन शुभ योगो  में  खरीदारी, नवीन कार्य और निवेश के लिए अति उत्तम माना गया  है ।  

कब से कब तक है गुरु पुष्य योग

हिन्दू पंचाग के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की पुष्य नक्षत्र का गुरु पुष्य नक्षत्र का आरंभ गुरुवार 24 अक्टूबर 2024 को सुबह 11:38 बजे से होगा और इसका समापन शुक्रवार 25 अक्टूबर 2024 को दोपहर 12:11 बजे तक होगा. 

खरीदारी शुभ मुहूर्त-

सोना और वाहन खरीदने का मुहूर्त: सुबह 11:43 से दोपहर 12:28 तक ।

लाभ का चौघड़िया: दोपहर 12:15 से दोपहर 01:40 तक । 

अमृत का चौघड़िया: दोपहर 01:40 से दोपहर 03:05  तक ।

शुभ का चौघड़िया: अपराह्न 04:30  से शाम 05:55 तक।

गुरु पुष्य योग में ये करे विशेष कार्य

गुरु पुष्य योग की अवधि के दौरान सोना, आभूषण, घर, अचल संपत्ति और निवेश खरीदना शुभ माना जाता है। 

इस योग में आप कोई नया व्यवसाय या नौकरी शुरू कर सकते हैं। माना जाता है कि इससे इन कार्यों में सफलता मिल सकती है। इससे आपकी आर्थिक स्थिति भी मजबूत होगी।

गुरु पुष्य योग में देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। देवी लक्ष्मी को खीर और दूध से बनी मिठाई का भोग लगाया जाता है और भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते, पंचामृत, गुड़ आदि अर्पित किया जाता है। कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें। लक्ष्मी नारायण की कृपा से आपके धन में वृद्धि होगी।

गुरु पुष्य योग में हल्दी भी खरीद सकते हैं। भगवान विष्णु और गुरु बृहस्पति के लिए महत्वपूर्ण है। इससे आपका भाग्य मजबूत होता है। 

गुरु पुष्य योग में आपको चांदी का लक्ष्मी यंत्र या चांदी की कोई चौकोर वस्तु खरीदनी चाहिए। उसकी पूजा करनी चाहिए। इससे आपकी आर्थिक तंगी दूर हो जाएगी और घर में सुख-समृद्धि बनी रहेगी।

इस बार रात्रि में गुरु पुष्य योग बन रहा है। ऐसे में आप सबसे पहले उस उत्पाद का चयन कर सकते हैं जिसे आप खरीदना चाहते हैं और गुरु पुष्य योग के दौरान उसका भुगतान कर सकते हैं। इससे गुरु पुष्य योग में आपकी खरीदारी होगी और आप उसका लाभ उठा सकेंगे।

Dr. Sanjay Geel

Astrologer

Sai Astrovision Society, Chittorgarh

9829747053,7425999259

DHAN TERAS 2024 -धनतेरस पर त्रिपुष्कर - इंद्र योग में बरसेगी माँ लक्ष्मी एवं कुबेर की कृपा

 

धनतेरस पर त्रिपुष्कर - इंद्र योग में बरसेगी माँ लक्ष्मी एवं कुबेर की कृपा

डॉ. संजय गील 
(N.E.T. PH.D. JYOTISH RATNA)
 

पांच दिवसीय दीपोत्सव की शुरुआत धनतेरस से मानी गयी है । सनातन धर्म में धनतेरस का पर्व हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर मनाया जाता है जो कि  इस वर्ष मंगलवार, 29 अक्टूबर को है । धनतेरस के दिन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के जनक भगवान धन्वंतरि के साथ माता लक्ष्मी,कुबेर देवता और मृत्यु के देवता यमराज की पूजा अर्चना की जाती है वही  अगले दिन नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, भगवान धन्वंतरि की पूजा उपासना करने से आरोग्य की प्राप्ति होती है और व्यक्ति ऊर्जावान रहता है । धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान धन्वंतरि को भगवान विष्णु का  अंशावतार माना जाता है एवं  उनके हाथ में अमृत कलश होने की वजह से इस दिन बर्तन खरीदने की परंपरा भी देखने को मिलती  है ।

हिन्दू पंचाग के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की इस बार धनतेरस पर त्रिपुष्कर योग बन रहा है जो कि प्रातः  6 बजकर 31 मिनट से प्रारंभ होकर  अगले दिन प्रातः  10 बजकर 31 मिनट तक रहेगा । साथ ही  प्रातः  7 बजकर 48 मिनट से इंद्र योग, वैधृति योग का  उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र एवं  हस्त नक्षत्र में  शुभ  संयोग  का निर्माण  हो रहा है । इसी प्रकार इस दिन  बुध और शुक्र की  युति होने  से लक्ष्मी नारायण राजयोग का निर्माण भी हो रहा है । मान्यता है कि इस विशेष संयोग में  माता लक्ष्मी, कुबेर और धन्वंतरि की पूजा करने से सुख और समृद्धि में वृद्धि भगवान धन्वंतरि भक्तो को आरोग्य प्रदान करते है ।

धनतेरस शुभ मुहूर्त

हिन्दू पंचाग के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की  इस वर्ष धन्वंतरि पूजा का शुभ समय प्रातः 06:31 बजे से 08:44 बजे तक है । धनतेरस पूजा का समय सर्वश्रेष्ठ समय सांय  06:31 बजे से रात्री 08:12 बजे तक रहेगा, जिसकी कुल अवधि 01 घंटा 41 मिनट होगी । मान्यताओ के आधार पर धनतेरस की पूजा हमेशा प्रदोष काल में की ही  जाती है, जिसमे माता लक्ष्मी, कुबेर  की पूजा अर्चना कर यम के निमित्त की दक्षिण दिशा की ओर दीपदान किया जाता है, जिससे  अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है ।

प्रदोष काल: शाम 6:01 बजे से रात 8:27 बजे तक
वृषभ काल: शाम 7:04 बजे से रात 9:08 बजे तक

खरीदारी का शुभ मुहूर्त –

मान्यता है कि धनतेरस के दिन खरीदारी करने से धन में 13 गुणा वृद्धि होती है। शास्त्रों के अनुसार इस  दिन स्वर्ण, चांदी, बर्तन, झाड़ू, श्री यंत्र,चावल,धनिया.झाड़ू, गोमती चक्र,पान के पत्ते , नमक  ,वाहन, प्रॉपर्टी आदि क्रय करना शुभ माना गया है,वही  इसके विपरीत एल्युमिनियम, स्टील, प्लास्टिक, कांच, काले तेल या घी चीनी मिट्टी के बर्तन खरीदने से बचना चाहिये ।   

त्रिपुष्कर योग - प्रातः  सुबह 6 बजकर 31 मिनट से अगले दिन तक 10 बजकर 31 मिनट तक  

अभिजीत मुहूर्त – प्रातः 11 बजकर 42 मिनट से दोपहर 12 बजकर 27 मिनट तक ।

सरल  पूजा विधि

धनतेरस के अवसर पर शुभ समय में पूर्व अथवा उत्तर दिशा में  धन्वंतरि देव के साथ मां लक्ष्मी और कुबेर देवता की मूर्ति या तस्वीर की स्थापना कर घी का दीपक प्रज्वलित करें और संध्या के समय द्वार पर दीपक जलाएं । धनतेरस के दिन धन्वंतरि देव को पीली मिठाई का भोग एवं धन के देवता कुबेर और मां लक्ष्मी को  कुमकुम, हल्दी, अक्षत, हलवा अथवा खीर का भोग अर्पित  कर मंत्रों का जाप एवं आरती करें ।मान्यता है कि  इस दिन जो भी खरीदे मां लक्ष्मी को अर्पित करने से परिवार में समृद्धि आती है ।

धन्वंतरि देव मंत्र - 'ॐ नमो भगवते धन्वंतराय विष्णुरूपाय नमो नमः

कुबेर मंत्र - ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं में देहि दापय।

FOR MORE INFORMATION 

DR. SANJAY GEEL

PRESIDENT,

 SAI ASTROVISION SOCIETY, CHITTORGARH 

9829747053,7425999259

Thursday, October 17, 2024

Karwa Chauth 2024 करवा चौथ पर 24 वर्षो बाद बन रहे महासंयोग में सुहागिनों को मिलेगा अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद

 करवा  चौथ पर 24 वर्षो बाद बन रहे महासंयोग में सुहागिनों को  मिलेगा अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद

हिन्दू धर्म में प्रति वर्ष  कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन करवा चौथ का व्रत रखा जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं निर्जला उपवास रख चंद्रमा की पूजा करती हैं जो कि इस वर्ष रविवार,  20 अक्टूबर 2024 को  रखा जाएगा । करवा चौथ पर भगवान शिव, मां पार्वती, गणेश और कार्तिकेय जी के अलावा करवा माता की पूजा का भी विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार  सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए और कुंवारी कन्याएं मनचाहा वर पाने के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। मान्यताओं के अनुसार, यह व्रत सबसे पहले देवी पार्वती ने भगवान भोलेनाथ के लिए रखा था । इसके अलावा कहा जाता है कि द्रौपदी ने भी पांडवों को संकट से मुक्ति दिलाने के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था । करवा चौथ का व्रत विवाह के 16 या 17 सालों तक करना अनिवार्य माना जाता है । 

हिन्दू पंचाग के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की  24 वर्षो बाद करवा चौथ पर दुर्लभ ज्योतिषीय  योगो का निर्माण हो रहा है जो दाम्पत्य जीवन के लिए अत्यंत शुभ है । ज्योतिषीय गणना के आधार पर करवा चौथ के दिन गजकेसरी, महालक्ष्मी के साथ शश, समसप्तक, बुधादित्य, जैसे राजयोगों का निर्माण हो रहा है। साथ ही सूर्य और बुध बुधादित्य योग का निर्माण कर रहे  है। इसी प्रकार  शुक्र के वृश्चिक राशि में आने वह गुरु के साथ मिलकर समसप्तक योग का निर्माण कर रहे हैं। शनि अपनी राशि कुंभ में रहकर शश राजयोग का निर्माण कर रहे हैं। इसके अलावा चंद्रमा वृषभ राशि में गुरु के साथ युति करके गजकेसरी और मिथुन राशि में मंगल के साथ युति करके गजकेसरी राजयोग का निर्माण कर रहे हैं ।इस योग में चंद्रमा को अर्घ्य देने से सुहागिन महिलाओं की मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होंगी ।  साथ ही इस दिन चंद्रमा का सबसे प्रिय नक्षत्र रोहिणी नक्षत्र भी करवा चौथ के दिन को और भी खास बना रहा  है । 

करवा चौथ शुभ मुहूर्त

हिन्दू पंचाग के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि रविवार , 20 अक्टूबर को सुबह छह बजकर 46 मिनट से प्रारंभ होकर सोमवार , 21 अक्टूबर को प्रातः  चार बजकर 17 मिनट पर समाप्त होगी ।इसी प्रकार 20 अक्टूबर को चंद्रोदय का समय रात्री 08  बजकर 14  मिनट पर रहेगा । धार्मिक मान्यताओ  के अनुसार सूर्योदय से करीब दो घंटे पहले तक सरगी को किया जा सकता  हैं। इस प्रकार प्रातः तीन बजकर 12 मिनट से लेकर सुबह चार बजकर 37 मिनट तक का समय सरगी के लिए सर्वोत्तम है ।

सर्वश्रेष्ठ  मुहूर्त- शाम को 05:57 से 07:12 बजे तक ।

व्रत पारण - शाम 06:25 से रात्रि 08:15 बजे तक ।

अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 11:48 से 12:34 तक ।

विजय मुहूर्त : दोपहर 02:06 से 02:53 तक ।

गोधूलि मुहूर्त : शाम 05:57 से 06:22 तक ।

निशिथ काल : मध्यरात्रि 11:46 से 12:36 तक ।

ये रखे विशेष ध्यान-

सुहागिने सोलह  श्रृंगार कर पूजा के मुहूर्त में चौथ माता या मां गौरी और गणेश जी की विधि विधान से पूजा कर उनको गंगाजल, नैवेद्य, धूप-दीप, अक्षत, रोली, फूल, पंचामृत आदि अर्पित करे एवं श्रद्धापूर्वक फल और हलवा-पूरी का भोग लगाये ।  इसी प्रकार  चंद्रमा को अर्घ्य देते समय आटे का दीपक जलाएं। उस दीपक को अपनी छलनी की ओट में रखें। करवे से चंद्रमा को अर्घ्य दें। कलश में चांदी का सिक्का और चावल के दाने डालकर अर्घ्य दें साथ छलनी में अपने पति का मुख देखकर पति के हाथों से ही व्रत का पारण करें

करवा चौथ व्रत मंत्र - 'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।

 

Monday, October 14, 2024

Sharad Purnima 2024 Shubh Muhurat ( भगवान विष्णु तथा महालक्ष्मी की उपासना से होगा जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन)

 

 

शरद पूर्णिमा

 भगवान विष्णु तथा महालक्ष्मी की उपासना  से होगा जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन

सनातन धर्म प्रतिवर्ष आश्विन माह की पूर्णिमा को शरद अथवा कोजागरी पूर्णिमा पर्व मनाया जाता   हैं। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्र की कलाओ से अमृत की वर्षा होती है। इसलिए इस दिन दूध से बनी खीर को खुले आसमान या घर की छत पर रखा जाता है। ऐसा करने से शरद पूर्णिमा की चांदनी में खीर औषधीय गुणों से भरपूर होकर  सभी रोगों को दूर करने में असरदार होती हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन भगवान श्री कृष्ण ने ब्रज में रासलीला रचाई थी। इसी दिन समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ था। ज्योतिषीय गणना के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की प्रति माह  चंद्रमा 27 नक्षत्रों में भ्रमण करता है, आश्विन नक्षत्र की पूर्णिमा आरोग्यदायी माना गया  है, क्योकि नक्षत्र में ही  ही चंद्रमा अपनी 16 कलाओं यथा अमृत, मनदा, पुष्प, पुष्टि, तुष्टि , ध्रुति, शाशनी, चंद्रिका, कांति, ज्योत्सना, श्री, प्रीति, अंगदा, पूर्ण और पूर्णामृत. से संपूर्ण होकर पृथ्वी के सबसे निकट माना गया  है। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत की बूंदें झरती हैं।  ज्योतिषीय मान्यताओ के आधार पर शरद पूर्णिमा पर चांदी के बर्तन से चन्द्र को अर्ध्य प्रदान करने से चंद्र ग्रह सबंधित दोष दूर होते है ।

शरद पूर्णिमा शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के  आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की आश्विन माह  के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा बुधवार 16 अक्टूबर को रात्री 8 बजकर 40  मिनट से प्रारंभ होकर गुरूवार, 17 अक्टूबर शाम 4 बजकर 55  मिनट पर समाप्त होगी। इस प्रकार उदयातिथि के आधार पर शरद पूर्णिमा पर्व बुधवार 16 अक्‍टूबर को मनाया जाकर  प्रसाद के रूप में खीर भी उसी रात्री को ही  रखी जाएगी। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्र देव की पूजा का विधान है। इस दिन चंद्रोदय शाम को शाम 5 बजकर 16 मिनट पर होगा। वहीं उदय व्यापिनी सिद्धांत को ग्रहण करते हुए स्नान एवं दान का विधान  गुरूवार 17 अक्टूबर को करना शास्त्र सम्मत होगा ।

पूर्णिमा तिथि प्रारंभ : पूर्णिमा तिथि 16 अक्टूबर को रात में 08:40 बजे प्रारंभ होगी। 

पूर्णिमा तिथि समाप्त : पूर्णिमा तिथि 17 अक्टूबर को शाम को 04:55 बजे समाप्त होगी। 

पूजन  शुभ मुहूर्त: बुधवार 16 अक्टूबर 2024 शाम 05:56 से 07:12 तक ।

चंद्रमा को अर्घ्य देने का मंत्र - गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते। गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक॥

इन  देवी-देवता का करें पूजन : आश्विन माह की पूर्णिमा को बेहद फलदायी माना गया है। यह दिन भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी और चंद्र देव को समर्पित है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन पूजा-पाठ और दान अवश्य करना चाहिए। इससे धन और सौभाग्य में वृद्धि होती है।साथ ही यह भी कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन भगवान श्री कृष्ण वृंदावन में गोपियों के संग महारास रचा रहे थे अतः इस दिवस भगवान् लक्ष्मीनारायण की विशेष पूजा कर विष्णु सहस्त्रनाम एवं कनकधारा का पाठ करना चाहिये मान्यता है कि इस दिन माता लक्ष्मी पृथ्वी लोक पर भ्रमण करती हैं और जो भी व्यक्ति जागते हुए भक्ति भाव में लीन होता है उसे सुख-समृद्धि का वरदान देती हैं। इस दिन रात्रि जागरण करते हुए मां लक्ष्मी के निमित्त दीपदान भी करने का विधान बताया गया है।

DR. SANJAY GEEL

ASTROLOGER

SAI ASTROVISION SOCIETY, CHITTORGARH

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Saturday, October 5, 2024

Diwali on 31st Or 1st Nov. 2024 (दिवाली पर्व को लेकर ज्योतिषीय गणना में है इस बार मतभेद)

 

दिवाली पर्व को लेकर  ज्योतिषीय गणना में है इस बार मतभेद

इस बार दिवाली को लेकर ज्योतिर्विदो की गणना  में मतभेद नजर आ रहे  हैं, क्योकि इस बार कार्तिक अमावस्या तिथि गुरूवार, 31 अक्टूबर और शुक्रवार, 01 नवंबर 2024  दोनों दिवसों पर  रहेगी। जहाँ दक्षिणी भारत के ज्योतिर्विद दिवाली लक्ष्मी पूजा का मुहूर्त 01 नवंबर को बता रहे है , वही उत्तर भारतीय विद्वान 31 अक्टूबर 2024 को ही दिवाली मनाने का समर्थन कर रहे हैं। गुरूवार, 31 अक्टूबर 2024 गुरुवार को दिवाली मनाए जाने के पक्ष में ज्योतिर्विदो का धर्मसिंधु और निर्णयसिंधु  शास्त्रों के आधार पर तर्क है कि संध्याकाल, प्रदोष काल में और निशीथ काल में भी दिवाली मनायी जानी चाहिए ।  साथ ही इन ज्योतिर्विदो का कहना है कि सनातन में 5 दिन दीपोत्सव की परंपरा है  एवं 1 नवंबर को अमावस्या शाम 5.38 बजे ही समाप्त हो जाएगी अतः  इस स्थिति में दीपावली 31 अक्टूबर को ही मनाना श्रेयस्कर होगा।  इसी प्रकार प्रदोष काल में ही मां लक्ष्मी की पूजा का विधान  है, जबकि इस दौरान अमावस्या नहीं रहेगी, बल्कि प्रतिपदा तिथि प्रारंभ हो जाएगी अतः  इसलिए 31 अक्टूबर को ही दिवाली मनाना ठीक होगा। । वि‌द्वानों का कहना है कि दीपावली मनाने को लेकर उदयतिथि की अमावस मान्य नहीं है एवं दीपावली हमेशा प्रदोष काल  और व्यापिनी अमावस में मनाई जाती है। एक नवंबर को प्रदोष व्यापिनी अमावस नहीं मिल रही अतः 31 दिवाली मनाना श्रेयष्ठकर है ।
इसके विपरीत शुक्रवार ,01 नवंबर 2024 को दिवाली मनाए जाने के पक्ष में ज्योतिर्विदो का
स्कंद पुराण के वैष्णव खंड में कार्तिक महामात्य के आधार पर तर्क है कि तीनों ही  तिथियां को  दीपदान किया जा सकता है  यथाक्रम त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या । यदि ये संगव काल से पूर्व समाप्त हो जाती है तो  पूर्व तिथि से युक्त वाली ग्रहण करना चाहिए। इस प्रकार  1 नवंबर को संगव काल सुबह 8 बजकर 39 मिनट से 10 बजकर 54 मिनट तक रहेगा  । इसके बाद तक अमावस्या तिथि प्रारंभ होकर 06:18 तक रहेगी  इस मान से 1 नवंबर को दिवाली मनाना ज्यादा उचित  है। इसी प्रकार यदि कोई सनातनी लक्ष्मी पूजन 31 को कर लेंगे तो पितृ कार्य 1 नवंबर को देव कार्य के बाद होंगे, जबकि  देवकार्य से पूर्व पितृ कार्य करने का निर्देश है। इस प्रकार 1 नवंबर दोपहर में पितृ कार्य और इसके बाद शाम को देव कार्य कर सकते हैं। साथ ही 1 नवंबर को नंदा तिथि  भी  नहीं रहेगी जिसे की शुभ नहीं माना जाता है। निर्णय सिंधु के द्वितीय परिच्छेद पर लेख है कि 'दण्डैक रजनी योगे दर्श: स्यात्तु परेअहवि। तदा विहाये पूर्वे दयु: परेअहनि सख्यरात्रिका:' अर्थात यदि अमावस्या दो दिन प्रदोष व्यापिनी है तो अगले दिन करना चाहिए। तिथि निर्णय में उल्लेख है कि 'इयं प्रदोष व्यापनी साह्या, दिन द्वये सत्वाअसत्वे परा' अर्थात यदि अमावस्या दोनों दिन प्रदोष को स्पर्श न करे तो दूसरे दिन ही लक्ष्मी पूजन करना चाहिए। निर्णय सिंधु प्रथम परिच्छेद के पेज
26 पर निर्देश है कि जब तिथि दो दिन कर्मकाल में हो तो निर्णय युग्मानुसार ही करें। अमावस्या और प्रतिपदा का युग्म शुभ माना गया है। अत: प्रतिपदा युक्त अमावस्या महान फल देने वाली होती है।साथ  ही यदि  दोनों ही दिन प्रदोष को स्पर्श करे तो लक्ष्मी पूजन दूसरे दिन ही करना चाहिए। शुक्रवार, 1 नवंबर को अमावस्या साकल्या पादिता तिथि होगी, जो पूरी रात्रि और अगले दिन सूर्योदय तक मानी जाएगी। 1 नवंबर को पूरे प्रदोष काल, वृषभ लग्न व निशीथ में सिंह लग्न में लक्ष्मी पूजन किया जा सकता है ।

Dr. Sanjay Geel 
Sai AstroVision Society, Chittorgarh 
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Tuesday, October 1, 2024

सर्व पितृ अमावस्‍या पर दान-पुण्‍य करने से मिलेगी पितरो की विशेष कृपा

 श्राद्ध पक्ष -2024

सर्व पितृ अमावस्‍या पर दान-पुण्‍य करने से मिलेगी पितरो की विशेष कृपा

आश्विन कृष्‍ण अमावस्‍या अथवा सर्वपितृ अमावस्या इस बार बुधवार, 02 अक्टूबर  को है। इस दिन पितृ गण पुनः देव  लोक की ओर प्रस्‍थान करते हैं एवं इस दिन पितरों के नाम से दान पुण्‍य करने से वे प्रसन्‍न होकर आपको सुखी रहने का आशीर्वाद प्रदान करते हैं , जिससे सुख समृद्धि की  प्राप्‍त होती ऐसी मान्‍यता है कि अगर आप किसी भी कारणवश तिथि पर अपने पूर्वजों का श्राद्ध नहीं कर पाए हैं तो सर्वपितृ अमावस्‍या पर उनके निमित्‍त दान-पुण्‍य करने और कुछ उपाय करने से उनको तृप्ति प्राप्‍त होती है और वे आपसे प्रसन्‍न होते हैं। आपको पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्‍त हो जाता है। गरुड़ पुराण के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की  अमावस्या के दिन पितृगण वायुरूप में घर के दरवाजे पर उपस्थित रहते हैं और अपने स्वजनों से श्राद्ध की अभिलाषा करते हैं। जब तक सूर्यास्त नहीं हो जाता, तब तक वे भूख-प्यास से व्याकुल होकर वहीं खड़े रहते हैं। सूर्यास्त हो जाने के पश्चात वे अपने-अपने लोक को चले जाते हैं। अतः अमावस्या के दिन प्रयत्नपूर्वक श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। यदि पितृजनों के पुत्र तथा बन्धु-बान्धव उनका श्राद्ध करते हैं और गया-तीर्थ में जाकर इस कार्य में प्रवृत्त होते हैं तो वे उन्हीं पितरों के साथ ब्रह्मलोक में निवास करने का अधिकार प्राप्त करते हैं। उन्हें भूख-प्यास कभी नहीं लगती। इसलिए पितृ अमावस्‍या के दिन अपने पितरों के लिए श्राद्ध अवश्य करना चाहिए । 

पितृ अमावस्या कब से कब तक

हिंदू पंचांग के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की सर्व पितृ अमावस्या आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को होती है ,  जो की इस बार   मंगलवार, 01 अक्टूबर, 2024 को रात्रि 09 बजकर 39 मिनट से प्रारंभ होकर  बुधवार, 03 अक्टूबर को रात्रि 12 बजकर 18 मिनट पर समाप्त होगी  इस प्रकार  बुधवार, 02 अक्टूबर  को  सर्व पितरो संबंधी कार्य करना उतम रहेगा ।

*कुतुप मुहूर्त -*  प्रातः 11: 46 से 12 :34  तक

*रौहिण मुहूर्त* – 12: 34  से 01 : 21  तक

*अपराह्न काल* – 01 : 21  से 03:43  तक

पितृ अमावस्या पर क्‍या करें

मुख्यतः इस दिन भगवान विष्णु के हंस स्वरूप की पूजा करें. इस दिन भी पितृगणों के लिए श्राद्ध, तर्पण व पिंडदान किया जाता है, जिससे पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जातक की हर मनोकामना पूरी होती है. सर्व पितृ अमावस्या को महालया अमावस्या, पितृ अमावस्या और पितृ मोक्ष अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है और यही पितृ पक्ष का आखिरी दिन भी होता है.  साथ ही पितृ अमावस्‍या पर सुबह जल्‍दी उठकर स्‍नान कर लें और स्‍वयं अन्‍न जल ग्रहण करने से पहले पितरों को जल दें और पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं और एक मटकी में जल भरकर वहां रख आएं। पितृ अमावस्‍या पर सुबह उठकर सबसे पहले प‍ितृ तर्पण करें। गाय को हरा चारा या फिर पालक जरूर खिलाएं। गाय को चारा डालने से पितरों को भी संतुष्टि प्राप्‍त होती है। पितृ अमावस्‍या की शाम को पितरों के निमित्त तेल का चौमुखी दीपक दक्षिण दिशा की तरफ जलाकर रखें। ऐसी मान्‍यता है देवलोक को प्रस्‍थान करने में यह दीपक पितरों की राह रोशन करता है।

पितृ अमावस्‍या पर करें दान-पुण्‍य

पूर्वजों को अमावस्‍या का देवता माना जाता है और इस दिन पितर अपनी संतान के पास आते हैं और उनके निमित्‍त दान-पुण्‍य करने की आस रखते हैं। पितरों को प्रसन्‍न करने के लिए सदैव अच्‍छे कर्म करें और पितृ अमावस्‍या के दिन जरूरतमंदों को दान-पुण्‍य करें। आपके अच्‍छे कर्मों को देखकर और आपके दान धर्म को देखकर पूर्वज आपसे प्रसन्‍न होते हैं और आपको सुखी व संपन्‍न रहने का आशीर्वाद देते हैं।

इस दिन करें पीपल की पूजा

मान्यता है कि  पीपल के पेड़ में सभी देवी-देवता और पितरों का वास होता है. इसी कारण से पीपल के पेड़ की पूजा का विधान होता है. सर्वपितृ अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की पूजा और दीपक जलाने का विशेष महत्व होता है. मान्यता है अमावस्या तिथि पर पीपल की पूजा करने पर पितृदेव प्रसन्न होते हैं । इस तिथि पर पितरों को प्रसन्न करने के लिए तांबे के लोटे में जल, काला तिल और दूध मिलाकर पीपल के पेड़ पर अर्पित किया जाता है ।

ये करे विशेष  उपाय

सर्वपितृ अमावस्या के दिन पीपल की सेवा और पूजा करने से हमारे पितृ प्रसन्न रहते हैं । इस दिन स्टील के लोटे में दूध, पानी, काले तिल, शहद और जौ मिला लें । इसके साथ कोई भी सफेद मिठाई, एक नारियल, कुछ सिक्के और एक जनेऊ लेकर पीपल वृक्ष के नीचे जाकर सर्वप्रथम लोटे की समस्त सामग्री पीपल की जड़ में अर्पित कर दें । इस दौरान 'ॐ सर्व पितृ देवताभ्यो नमः' मंत्र का जाप भी लगातार करते रहें ।

अमावस्या पर ऐसे दें पितरों को विदाई 

जो व्यक्ति पितृपक्ष के 15 दिनों तक तर्पण, श्राद्ध आदि नहीं कर पाते या जिन लोगों को अपने पितरों की मृत्यु तिथि याद न हो, उन सभी पितरों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण, दान आदि इसी अमावस्या को किया जाता है. सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों को शांति देने के लिए और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए गीता के सातवें अध्याय का पाठ करना उत्तम माना जाता है. अमावस्या के श्राद्ध पर भोजन में खीर पूड़ी का होना आवश्यक है. भोजन कराने और श्राद्ध करने का समय दोपहर होना चाहिए. ब्राह्मण को भोजन कराने के पूर्व पंचबली दें और हवन करें. श्रद्धा पूर्वक ब्राह्मण को भोजन कराएं, उनका तिलक करके दक्षिणा देकर विदा करें. बाद में घर के सभी सदस्य एक साथ भोजन करें और पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें ।

सरल पूजन विधि

1. तर्पण-दूध, तिल, कुशा, पुष्प, सुगंधित जल पितरों को अर्पित करें ।

2. पिंडदान-चावल या जौ के पिंडदान, करके भूखों को भोजन दें ।

3. निर्धनों को वस्त्र दें ।

4. भोजन के बाद दक्षिणा दिए बिना एवं चरण स्पर्श बिना फल नहीं मिलता ।

5. पूर्वजों के नाम पर करें ये काम जैसे -शिक्षा दान,रक्त दान, भोजन दान,वृक्षारोपण ,चिकित्सा संबंधी दान आदि अवश्य करना चाहिए ।

Monday, September 30, 2024

शारदीय नवरात्र 2024 (SHARDIYA NAVRAATRI 2024) - घटस्थापना पर इंद्र योग समेत बन रहे हैं अद्भुत संयोग, प्राप्त होगा अक्षय फल

 शारदीय नवरात्र 2024

घटस्थापना पर इंद्र योग समेत बन रहे हैं अद्भुत संयोग, प्राप्त होगा अक्षय फल

सनातन धर्म में शारदीय नवरात्र का विशेष  महत्व है जो कि  प्रतिवर्ष  आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को शुरू होकर और नवमी तिथि समाप्त होती है । इस अवधि में जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा और उनके नौ शक्ति रूपों की पूजा की जाती है। साथ ही उनके निमित्त नवरात्र का व्रत रखकर कन्या पूजन और अन्य अनुष्ठान किया जाते है । धार्मिक मत है कि जगत जननी मां दुर्गा की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही घर में सुख, समृद्धि एवं खुशहाली आती है।हिन्दू पंचांग  के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की इस वर्ष आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि बुधवार 2 अक्टूबर, 2024 को रात्री 12:18 बजे से प्रारंभ हो रही है, जो गुरूवार 3 अक्टूबर की रात्री 2:58 बजे तक रहेगी  इस प्रकार उदय तिथि के आधार पर  शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ गुरुवार, 3 अक्टूबर 2024 को  होगा, जबकि समापन 11 अक्टूबर, 2024 को होकर इसके अगले दिन शनिवार 12 अक्टूबर, 2024 को विजयदशमी मनाई जाएगी । इस  शारदीय नवरात्रि का शुभारम्भ  गुरूवार को होने से माता पालकी पर सवार होकर आएगी , जो की देवी पुराण के अनुसार अत्यंत शुभ है ।

कब करें घट  स्थापना 

शारदीय नवरात्रि के शुभ अवसर पर घटस्थापना मुहूर्त 03 अक्टूबर को सुबह 06 बजकर 15 मिनट से लेकर सुबह 07 बजकर 22 मिनट तक है। वहीं, अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 46 मिनट से दोपहर 12 बजकर 33 मिनट तक है। इन दोनों शुभ योग समय में घटस्थापना कर सकते हैं।

पूजन के शुभ मुहूर्त:-

ब्रह्म मुहूर्त: प्रात: 04:53 से  05:41 तक

अमृत काल: सुबह 08:45 से सुबह 10:33 तक

अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 12:03 से दोपहर 12:51 तक

विजय मुहूर्त: अपरान्ह 02:26 से अपरान्ह 03:14 तक

गोधूलि मुहूर्त: शाम 06:25 से शाम 06:49 तक

घटस्थापना पर इंद्र योग समेत बन रहे हैं ये अद्भुत संयोग

हिन्दू पंचांग के आधार पर  ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की इस बार  आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर हस्त और चित्रा नक्षत्र का संयोग बन रहा है। साथ ही घटस्थापना तिथि पर सर्वार्थ  सिद्धी एवं दुर्लभ इंद्र योग सहित  अन्य मंगलकारी योग बन रहे हैं, ऐसे योग में मां दुर्गा की पूजा करने से साधक को अक्षय फल की प्राप्ति होगी। साथ ही नवरात्र की शुरुआत पर शिववास योग का संयोग होने से भगवान शिव कैलाश पर्वत पर मां गौरी के साथ विराजमान रहेंगे। इन योग में जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा की पूजा करने से सकल मनोरथ सिद्ध होंगे।

शारदीय नवरात्रि प्रमुख तिथिया  

03 अक्टूबर 2024- मां शैलपुत्री की पूजा

04 अक्टूबर 2024- मां ब्रह्मचारिणी की पूजा

05 अक्टूबर 2024- मां चंद्रघंटा की पूजा

06 अक्टूबर 2024- मां कूष्मांडा की पूजा

07 अक्टूबर 2024- मां स्कंदमाता की पूजा

08 अक्टूबर 2024- मां कात्यायनी की पूजा

09 अक्टूबर 2024- मां कालरात्रि की पूजा

10 अक्टूबर 2024- मां सिद्धिदात्री की पूजा

11 अक्टूबर 2024- मां महागौरी की पूजा

12 अक्टूबर 2024- विजयदशमी (दशहरा)

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