श्राद्ध पक्ष : अष्टमी का श्राद्ध क्यों है इतना ख़ास
वर्तमान में श्राद्ध पक्ष चल रहा हैं। जैसा की विदित है कि जिनका भी देहांत जिस भी तिथि को हुआ है उनका श्राद्ध उन तिथि में ही किया जाता है, परंतु कुछ तिथियां महत्वपूर्ण होती है। इसी क्रम में अष्टमी तिथि के श्राद्ध अत्यधिक महत्व है। मान्यता है कि श्राद्ध काल मध्यान्ह काल में ही किया जाना चाहिये । इस बार अष्टमी का श्राद्ध शुक्रवार, 6 अक्टूबर 2023, को है ।
अष्टमी के श्राद्ध का महत्व
1. श्राद्ध पक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी और भैरव अष्टमी भी कहते हैं।
2. अष्टमी को गजलक्ष्मी का व्रत भी रखा जाता है जो कि दिवाली की लक्ष्मी पूजा से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
3. अष्टमी के श्राद्ध पर खरीदारी की जा सकती है।
4. अष्टमी को जिनका देहांत हुआ है उनका श्राद्ध इस दिन करना चाहिए।
5. जो अष्टमी को श्राद्ध करता है वह सम्पूर्ण समृद्धियां प्राप्त करता है।
6. यदि निधन पूर्णिमा तिथि को हुई हो तो उनका श्राद्ध अष्टमी, द्वादशी या पितृमोक्ष अमावस्या को किया जा सकता है।
7.अष्टमी के श्राद्ध के दिन महिलाएं अपने परिवार और बच्चों के लिए व्रत रखती है।
8. अष्टमी के श्राद्ध के दिन विधिवत श्राद्ध करने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है ।
ऐसे करे अष्टमी का श्राद्ध
सर्वप्रथम कुश आसन पर पूर्वमुखी होकर बैठें। देव, ऋषि और पितरों के लिएद धूप-दीप जलाएं, फूल माला चढ़ाएं और सुपारी रखें। साथ ही एक थाली में जल में तिल, कच्चा दूध, जौ, तुलसी मिलाकर रख लें। पास में ही खाली तरभाणा या थाली रखें। तत्पश्चात कुशे की अंगूठी बनाकर अनामिका अंगुली में पहनकर हाथ में जल, सुपारी, सिक्का, फूल लेकर तर्पण का संकल्प लें।इसी क्रम में जल, कच्चा दूध, गुलाब की पंखुड़ी डाले, फिर हाथ में चावल लेकर देवता एवं ऋषियों का आह्वान करें।
अब मंत्र उच्चारण करते हुए पहली थाली से जल लेकर दूसरी में अंगुलियों से ऋषि एवं देवता और अंगूठे से पितरों को अर्पित करें। ध्यान रखें कि पूर्व की ओर देवता, उत्तर की ओर ऋषि और दक्षिण की ओर मुख करके पितरों को जल अर्पित करें। कुश के आसन पर बैठकर पितरों के निमित्त अग्नि में गाय का दूध, दही, घी एवं खीर अर्पित करें। इसके बाद गाय, कुत्ता, कौवा और अतिथि के लिए भोजन से चार ग्रास निकालकर अलग रखें। अंत में ब्राह्मण, दामाद या भांजे को भोजन कराएं और तब खुद भोजन करें।
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