भद्राकाल और चन्द्रग्रहण का नही रहेगा प्रभाव
वृद्वि एवं ध्रुव योग में मनाया जायेगा रंगों का त्यौहार होली
सनातन धर्म में होली पर्व का विशेष स्थान है। हिन्दू पंचांग के आधार पर फाल्गुन मास की पूर्णिमा सहित दो दिवस तक रंगों का त्यौहार होली मनाया जाता है। होली बसंत ऋतु की समाप्ति और ग्रीष्म ऋतु के आगमन का भी प्रतीक है। हिन्दू पंचांग के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया कि भद्रा और चन्द्र ग्रहण की उपस्थिति में इस वर्ष 24 मार्च 2024 को होलिका दहन और 25 मार्च 2024 को धुलंडी पर्व मनाया जाएगा। हालांकि चन्द्र ग्रहण और भद्रा का प्रभाव होली पर्व पर लागू नही होगा।
ये है लोक मान्यता
मान्यता है कि होली पर्व इसलिए मनाया जाता है, क्योकि स्वयं को भगवान से भी बड़ा मानकर हरिण्यकश्यप श्री हरि की भक्ति में लीन भक्त प्रह्लाद को बहन होलिका की सहायता से जलाने चला था, किन्तु हरि कृपा से होलिका का स्वयं नाश होने से इस दिवस होली और अगले दिवस धुलंडी पर्व होता है।
इसी प्रकार प्राचीन मान्यता यह भी है कि सबसे पहले बृज में राधा-कृष्ण ने होली के त्योहार की शुरुआत की थी। वहीं काशी के मणिकर्णिका घाट में भगवान शंकर द्वारा श्मशान में होली खेलने और इसी तरह से अवध में भगवान राम और माता सीता के होली खेलने का उल्लेख भी शास्त्रों में मिलता है।
होलिका दहन :शुभ मुहूर्त
हिन्दू पंचांग के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया कि इस वर्ष होलिका पर्व पर दो शुभ योग बन रहे है, जिसमे वृद्वि योग रात्रि 09:30 तक है, वही ध्रुव योग 24 मार्च को सम्पूर्ण दिवस रहेगा
पूर्णिमा तिथि :
24 मार्च 2024 को प्रातः 8.13 बजे से 25 मार्च 2024, प्रातः 11.44 बजे तक।
होलिका दहन मुहूर्त
रात्रि11:13 से प्रात: 12:07 तक
होलिका दहन अवधि:1 घंटा 20 मिनट
होलिका दहन और भद्राकाल
24 मार्च को होलिका दहन के दिन भद्रा भी है जो कि प्रातः 09 बजकर 54 मिनट से रात्री 11 बजकर 13 मिनट तक रहेगी।हालिका दहन के दिन भद्रा का वास पृथ्वी लोक पर सुबह 09:54 बजे से दोपहर 02:20 बजे तक है, वहीं भद्रा का वास पाताल लोक में दोपहर 02:20 बजे से रात 11:13 बजे तक है। ज्योतिषीय आधार पर पृथ्वीलोक की भद्रा ही हमारे लिए प्रभावी मानी गयी है, अतः शेष समय मे भद्रा का प्रभाव लागू नही होगा।
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