"रामनाम : होली खेलें रघुवीरा अवध में से होली खेलें नंदलाला बिरज में तक"
होली के कोई मास पर्यंत होने से पूर्व ही
रामनवमी आ जाती है।
राम का जन्मदिन लेकर.
कुछ योजक संदर्भ निकल आए हैं।
एक पुराना व लोकप्रिय भक्तिपरक लोकगीत है-
होली खेलें नंदलाला बिरज में.
इसी के समानांतर दूसरा लोकगीत है-
होली खेलें रघुवीरा अवध में.
नहीं पता, कौन सा पुराना है और कितना पुराना है।
परंतु जाने क्यों लगता है कि
"रघुवीरा अवध में" मूल है, "नंदलाला बिरज में" प्रतिलिपि है।
संभवतः रघुवीरा ही लोकप्रिय भी अधिक है।
कारण नहीं पता,
शायद असामान्यता ही हेतु होगी।
श्याम का होली खेलना कुछ नया नहीं,
सारा रंग ही उनसे है।
बहुतेरे गीत-चित्र-नृत्य उसकी स्मृति लिए मिल जाएँगे.
परंतु राम का होली खेलना अप्रत्याशित सा है.
बहुत मर्यादा पुरुषोत्तम जो हैं,
बहुत वेदनामय त्याग भरा जीवन जो है उनका.
सो उनके जीवन में हास-रास-रस निकालना कठिन होगा।
वे स्वयं भौतिक अर्थों में रम्य हैं, परंतु उन अर्थों में रमण नहीं.
परंतु मर्यादा के जीवन में भी कुछ रससिक्त पल आते ही हैं.
पीड़ा के पलों को तिल-तिल कर भोग रहे जन भी कभी स्मित के क्षण निकाल ही लेते हैं, स्मृति में ही सही, स्मृतियों के लिए ही सही.
कृष्ण रससिद्ध हैं, सो रसिया कहे जाते हैं और रंगरसिया भी,
परंतु वहाँ भी श्याम कभी श्वेत श्याम ही रह जाते होंगे.
राम नाम के साथ नृत्य नहीं, अधिक से अधिक अभिवादन है,
अन्यथा तो पीड़ा की कराह है, जीवन की अंंतिम विदाई है,
परंतु कबीर की पंक्ति है-
"पीवत रामरस लगी खुमारी."
उनके राम जरा और से राम हैं.
वे दाशरथि नहीं, दशेंद्रियों से परे तक, दशों दिशाओं में घट-घट तक व्याप्त राम हैं.
सौ उनके रामरस का अमृत अलग है।
जाने कब से और क्यों उत्तर प्रदेश में नमक का एक नाम रामरस भी रखा हुआ है।
उन्होंने उनके जीवन में शायद आँसुओं का खारापन पाया होगा,
या फिर रूप में वही लावण्य देखा होगा.
या फिर सागर तक गए राम की स्मृति सागर के नमक में पायी होगी।
भक्ति का अपना रस है।
वह प्रार्थना को कीर्तन बना निमग्न हो रहती है।
पूरी तरह दो जून का भोजन न जुटा पाने वाले भी भजन गाकर दिन-रात काट ही लेते हैं।
रामराज्य ऐसे ही रामरस की खुमारी में डूबे त्यागियों का है,
जो संतप्त होकर भी संतृप्त होने की कला जानते हैं।
उनकी रामधुन में सब समाया है-
"हरे रामा" के कीर्तन से लेकर "राम-राम" के अभिवादन तक,
"हे राम" के विस्मय या उसकी व्यथा से लेकर अंत में "राम नाम के सत्य होने" के उद्घोष तक भी.
तो चूँकि दिन उनका है,
एक मंगलकामना,
"राम-राम" का अभिवादन लिए,
"मेरे राम" का विनत अपनत्व लिए.
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