"बुद्ध और मसीह : करुणा के पैग़म्बरों के साम्य"
गौतम बुद्ध व ईसा मसीह!
वैसे तो दोनों संतों में कोई ऐसी समानता नहीं है,
जो किन्हीं भी दो संतों में दिखने के अलावा हो,
बल्कि भिन्नता ही अधिक है-
-एक का कालखंड 2500 साल पूर्व का है, दूसरे का 2000 साल पूर्व का.
-एक ग्रीष्म ऋतु में जन्मे, दूसरे शरद ऋतु में,
-एक बिना दाढ़ी मूँछ कुंचितकेश हैं, दूसरे दाढ़ी मूँछ युक्त लहराते केश युक्त
-एक अल्पवसनधारी पीतांबर हैं, दूसरे रोबधारी श्वेतांबर
-एक राजपुत्र हैं, दूसरे सामान्य बढ़ई के घर जन्मे पुत्र
-एक बहुत सुरक्षा में पालित प्रिय पुत्र हैं, दूसरे साधारण विचरते पुत्र
-एक विवाहोपरांत एक पुत्र के जन्म के बाद संन्यासी बनते हैं, दूसरे आजीवन अविवाहित रहते हैं,
-एक सुशिक्षित हैं, दूसरे लगभग अल्पशिक्षित
-एक सूत्रपरक प्रखर तार्किक हैं, दूसरे सरल वक्ता.
-एक विरक्त ज्ञानमार्गी हैं, दूसरे प्रार्थना मार्गी,
-एक ध्यानमार्गी हैं, दूसरे प्रेममार्गी
-एक को ईश्वर में, आत्मा के परंपरागत रूप में विश्वास नहीं, दूसरे ने स्वयं को परमात्मा का पुत्र ही कहा
--एक को तत्समय सम्राटों, श्रेष्ठियों, कुलीनों का भी समर्थन है, दूसरे को वंचितों और उपेक्षितों का
-एक पूरब में प्रभावी हुए, दूसरे पश्चिम में.
परंतु
जीवन की कतिपय समानताएँ विस्मित करती हैं-
-दोनों परंपराविरोधी, रूढ़िविरोधी, जातिविरोधी, संप्रदायविरोधी, कर्मकांड विरोधी रहे हैं. दोनों के धर्म या पंथ सरल, मध्यममार्गी व ध्यान-साधना परक रहे हैं. दोनों ने करुणाप्रधान धर्म का प्रवर्तन किया. दोनों का धर्म मध्य एशिया तक पहुँचा, फिर वहाँ से लगभग विलुप्त हुआ.
-दोनों ने मूर्तिपूजा को महत्ता नहीं दी, लेकिन सबसे अधिक मूर्तियां बनीं उनकी, आदर्श रूप में. दोनों को ही मूल छवि से भिन्न चित्रित किया गया। ईसा मसीह काले बालों वाले सामान्य गेहुँआ रंग के व्यक्ति थे, उन्हें सुनहरे बालों व धवल रंग वाला चित्रित किया गया। बुद्ध मुंडितकेश थे, जिन्हें कुंचितकेश जटामय चित्रित किया गया।
-दोनों का जन्म मार्ग में हुआ. ईसा मसीह का जन्म रोमन जनगणना के लिए जाते समय बेथलेहेम में एक गुफा में बने घोड़ों का अस्तबल, भेड़शाला या शायद गौशाला में हुआ था। आज इसे चर्च ऑफ नेटिविटी कहते हैं। बुद्ध का जन्म
माता महामाया के मायके जाते समय लुंबिनी में हुआ था, शालवृक्ष के नीचे.
-दोनों के भाई उनके सहचर रहे. ईसा मसीह के भाई जॉन द बैप्टिस्ट उनके दीक्षागुरु रहे, जो उनके संभवतः मौसेरे भाई थे. बुद्ध के आनंद उनके आजीवन उपस्थाक रहे, जो उनके चचेरे भाई थे. बुद्ध के मौसेरे भाई बहन नंद व नंदा भी उनके शिष्य बने.
-दोनों के महान होने की पूर्व भविष्यवाणी की गई थी। ईसा मसीह के लिए तीन मैगीज ने यह भविष्यवाणी की थी, बुद्ध के लिए कौंडिन्य ब्राह्मण और असित देवल ने.
-दोनों भिक्षु बनकर जीवन व्यतीत करते हैं। बुद्ध ने उनतीस साल की आयु में गृहत्याग कर निकले और अस्सी साल की आयु पाई. ईसा मसीह तीस वर्ष की उम्र में उन्होंने यूहन्ना (जॉन) से पानी में डुबकी लेकर दीक्षा ली। उन्हें बस तैंतीस साल की आयु मिली, क्रूसिफिक्शन तक.
-दोनों के देहावसान से पूर्व भोजन की गाथा है। ईसा मसीह ने अपने बारह अनुयायियों के साथ लास्ट सपर किया था। बुद्ध अपने शिष्यों के साथ चुंद बढ़ई के यहाँ सूकरमद्दव खाने के उपरांत दिवंगत हुए.
-दोनों अपने माता-पिता के इकलौते पुत्र रहे. जोसेफ व मेरी (यूसूफ व मरियम) के वे इकलौते पुत्र थे, सिद्धार्थ शुद्धोदन व महामाया के इकलौते पुत्र थे, यद्यपि शुद्धोदन को महाप्रजापति गौतमी से दो संतानें और थीं. संयोगवश सिद्धार्थ गौतम व जीसस क्राइस्ट में अक्षर भी समान संख्या में हैं.
-दोनों के धर्म को कालांतर में राजाओं ने पल्लवित पुष्पित किया, परंतु दोनों सरलतम लोगों के धर्म थे. यह भी रुचिकर है कि अनेक जन ईसा मसीह को मैत्रेय बुद्ध का अवतार मानते हैं. यह भी उल्लेखनीय है कि बाइबिल के पुराने रूप में पुनर्जन्म के प्रखर दृष्टांत थे, जिसे कैंस्टिनापोल की घटना में हटा दिया गया। ईसा मसीह व जॉन द बैप्टिस्ट को क्रमशः एलीशा व एलिजाह (इलियास) का पुनर्जन्म कहा गया है। बुद्ध की तो पुनर्जन्म की सत्तर से अधिक गाथाएँ जातक कथा में लिखी गई हैं।
-
होल्जर कर्स्टन ने अपनी पुस्तक "जीसस लिव्ड इन इंडिया"
में कहा है कि ईसा मसीह के जीवन के जिन 18 वर्षों (13 की उम्र से 29 तक) का विवरण 'न्यू टेस्टामेंट' में नहीं मिलता है और जिन्हें ईसा मसीह के जीवन के इन गुमनाम सालों के रूप में'साइलेंट ईयर्स', 'लॉस्ट ईयर्स' या 'मिसिंग ईयर्स' भी कहा जाता है, वह समय भारत में ही बीता था, बौद्ध देशना के साथ. बाद में भी वे अस्सी वर्ष तक जीवित रहे, कश्मीर में रोजे बल या यूज अल असफ के रूप में उनकी मजार भी है।
रूसी विद्वान निकोलस नोतोविच ने 1887 में भारत, तिब्बत और अफगानिस्तान का दौरा किया था और कहा जाता है कि उसने लेह की एक तिब्बत बौद्ध मठ (हेमिस मॉनेस्ट्री) में काफी वक्त बिताया, जिसके एक लामा ने नोतोविच को यह भी बताया था कि ईसा मसीह ने 13 से 29 वर्ष की उम्र में मॉनेस्ट्री में ज्ञान प्राप्त किया था. लामा ने बताया था कि ईसा महान देवदूत थे और सभी दलाई लामाओं में से श्रेष्ठ थे. यहां से शिक्षा लेकर वह जेरूसलम पहुंचे और इसराइल में गये, जहाँ वह मसीहा कहे गए. नोतोविच की कृति फ्रेंच भाषा में 1894 में प्रकाशित हुई थी.
1908 में लेवी एच डोलिंग ने 'एक्वेरियन गॉस्पेल ऑफ जीसस द क्राइस्ट' प्रकाशित किया था, जिसमें भी उन्होंने उत्त बातों की पुष्टि की थी।
वस्तुतः सत्य कितना है, नहीं पता, परंतु साम्य जितना है, सांयोगिक है। सच कहें, तो संत उतने ही भिन्न होते हैं, जितने दो अलग-अलग व्यक्ति,
पर उतने ही समान भी होते हैं, जितनी संतों की नियति व प्रकृति.
No comments:
Post a Comment