Monday, October 14, 2024

Sharad Purnima 2024 Shubh Muhurat ( भगवान विष्णु तथा महालक्ष्मी की उपासना से होगा जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन)

 

 

शरद पूर्णिमा

 भगवान विष्णु तथा महालक्ष्मी की उपासना  से होगा जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन

सनातन धर्म प्रतिवर्ष आश्विन माह की पूर्णिमा को शरद अथवा कोजागरी पूर्णिमा पर्व मनाया जाता   हैं। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्र की कलाओ से अमृत की वर्षा होती है। इसलिए इस दिन दूध से बनी खीर को खुले आसमान या घर की छत पर रखा जाता है। ऐसा करने से शरद पूर्णिमा की चांदनी में खीर औषधीय गुणों से भरपूर होकर  सभी रोगों को दूर करने में असरदार होती हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन भगवान श्री कृष्ण ने ब्रज में रासलीला रचाई थी। इसी दिन समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ था। ज्योतिषीय गणना के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की प्रति माह  चंद्रमा 27 नक्षत्रों में भ्रमण करता है, आश्विन नक्षत्र की पूर्णिमा आरोग्यदायी माना गया  है, क्योकि नक्षत्र में ही  ही चंद्रमा अपनी 16 कलाओं यथा अमृत, मनदा, पुष्प, पुष्टि, तुष्टि , ध्रुति, शाशनी, चंद्रिका, कांति, ज्योत्सना, श्री, प्रीति, अंगदा, पूर्ण और पूर्णामृत. से संपूर्ण होकर पृथ्वी के सबसे निकट माना गया  है। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत की बूंदें झरती हैं।  ज्योतिषीय मान्यताओ के आधार पर शरद पूर्णिमा पर चांदी के बर्तन से चन्द्र को अर्ध्य प्रदान करने से चंद्र ग्रह सबंधित दोष दूर होते है ।

शरद पूर्णिमा शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के  आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की आश्विन माह  के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा बुधवार 16 अक्टूबर को रात्री 8 बजकर 40  मिनट से प्रारंभ होकर गुरूवार, 17 अक्टूबर शाम 4 बजकर 55  मिनट पर समाप्त होगी। इस प्रकार उदयातिथि के आधार पर शरद पूर्णिमा पर्व बुधवार 16 अक्‍टूबर को मनाया जाकर  प्रसाद के रूप में खीर भी उसी रात्री को ही  रखी जाएगी। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्र देव की पूजा का विधान है। इस दिन चंद्रोदय शाम को शाम 5 बजकर 16 मिनट पर होगा। वहीं उदय व्यापिनी सिद्धांत को ग्रहण करते हुए स्नान एवं दान का विधान  गुरूवार 17 अक्टूबर को करना शास्त्र सम्मत होगा ।

पूर्णिमा तिथि प्रारंभ : पूर्णिमा तिथि 16 अक्टूबर को रात में 08:40 बजे प्रारंभ होगी। 

पूर्णिमा तिथि समाप्त : पूर्णिमा तिथि 17 अक्टूबर को शाम को 04:55 बजे समाप्त होगी। 

पूजन  शुभ मुहूर्त: बुधवार 16 अक्टूबर 2024 शाम 05:56 से 07:12 तक ।

चंद्रमा को अर्घ्य देने का मंत्र - गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते। गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक॥

इन  देवी-देवता का करें पूजन : आश्विन माह की पूर्णिमा को बेहद फलदायी माना गया है। यह दिन भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी और चंद्र देव को समर्पित है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन पूजा-पाठ और दान अवश्य करना चाहिए। इससे धन और सौभाग्य में वृद्धि होती है।साथ ही यह भी कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन भगवान श्री कृष्ण वृंदावन में गोपियों के संग महारास रचा रहे थे अतः इस दिवस भगवान् लक्ष्मीनारायण की विशेष पूजा कर विष्णु सहस्त्रनाम एवं कनकधारा का पाठ करना चाहिये मान्यता है कि इस दिन माता लक्ष्मी पृथ्वी लोक पर भ्रमण करती हैं और जो भी व्यक्ति जागते हुए भक्ति भाव में लीन होता है उसे सुख-समृद्धि का वरदान देती हैं। इस दिन रात्रि जागरण करते हुए मां लक्ष्मी के निमित्त दीपदान भी करने का विधान बताया गया है।

DR. SANJAY GEEL

ASTROLOGER

SAI ASTROVISION SOCIETY, CHITTORGARH

9829747053,7425999259

 

 

 

 



 

Saturday, October 5, 2024

Diwali on 31st Or 1st Nov. 2024 (दिवाली पर्व को लेकर ज्योतिषीय गणना में है इस बार मतभेद)

 

दिवाली पर्व को लेकर  ज्योतिषीय गणना में है इस बार मतभेद

इस बार दिवाली को लेकर ज्योतिर्विदो की गणना  में मतभेद नजर आ रहे  हैं, क्योकि इस बार कार्तिक अमावस्या तिथि गुरूवार, 31 अक्टूबर और शुक्रवार, 01 नवंबर 2024  दोनों दिवसों पर  रहेगी। जहाँ दक्षिणी भारत के ज्योतिर्विद दिवाली लक्ष्मी पूजा का मुहूर्त 01 नवंबर को बता रहे है , वही उत्तर भारतीय विद्वान 31 अक्टूबर 2024 को ही दिवाली मनाने का समर्थन कर रहे हैं। गुरूवार, 31 अक्टूबर 2024 गुरुवार को दिवाली मनाए जाने के पक्ष में ज्योतिर्विदो का धर्मसिंधु और निर्णयसिंधु  शास्त्रों के आधार पर तर्क है कि संध्याकाल, प्रदोष काल में और निशीथ काल में भी दिवाली मनायी जानी चाहिए ।  साथ ही इन ज्योतिर्विदो का कहना है कि सनातन में 5 दिन दीपोत्सव की परंपरा है  एवं 1 नवंबर को अमावस्या शाम 5.38 बजे ही समाप्त हो जाएगी अतः  इस स्थिति में दीपावली 31 अक्टूबर को ही मनाना श्रेयस्कर होगा।  इसी प्रकार प्रदोष काल में ही मां लक्ष्मी की पूजा का विधान  है, जबकि इस दौरान अमावस्या नहीं रहेगी, बल्कि प्रतिपदा तिथि प्रारंभ हो जाएगी अतः  इसलिए 31 अक्टूबर को ही दिवाली मनाना ठीक होगा। । वि‌द्वानों का कहना है कि दीपावली मनाने को लेकर उदयतिथि की अमावस मान्य नहीं है एवं दीपावली हमेशा प्रदोष काल  और व्यापिनी अमावस में मनाई जाती है। एक नवंबर को प्रदोष व्यापिनी अमावस नहीं मिल रही अतः 31 दिवाली मनाना श्रेयष्ठकर है ।
इसके विपरीत शुक्रवार ,01 नवंबर 2024 को दिवाली मनाए जाने के पक्ष में ज्योतिर्विदो का
स्कंद पुराण के वैष्णव खंड में कार्तिक महामात्य के आधार पर तर्क है कि तीनों ही  तिथियां को  दीपदान किया जा सकता है  यथाक्रम त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या । यदि ये संगव काल से पूर्व समाप्त हो जाती है तो  पूर्व तिथि से युक्त वाली ग्रहण करना चाहिए। इस प्रकार  1 नवंबर को संगव काल सुबह 8 बजकर 39 मिनट से 10 बजकर 54 मिनट तक रहेगा  । इसके बाद तक अमावस्या तिथि प्रारंभ होकर 06:18 तक रहेगी  इस मान से 1 नवंबर को दिवाली मनाना ज्यादा उचित  है। इसी प्रकार यदि कोई सनातनी लक्ष्मी पूजन 31 को कर लेंगे तो पितृ कार्य 1 नवंबर को देव कार्य के बाद होंगे, जबकि  देवकार्य से पूर्व पितृ कार्य करने का निर्देश है। इस प्रकार 1 नवंबर दोपहर में पितृ कार्य और इसके बाद शाम को देव कार्य कर सकते हैं। साथ ही 1 नवंबर को नंदा तिथि  भी  नहीं रहेगी जिसे की शुभ नहीं माना जाता है। निर्णय सिंधु के द्वितीय परिच्छेद पर लेख है कि 'दण्डैक रजनी योगे दर्श: स्यात्तु परेअहवि। तदा विहाये पूर्वे दयु: परेअहनि सख्यरात्रिका:' अर्थात यदि अमावस्या दो दिन प्रदोष व्यापिनी है तो अगले दिन करना चाहिए। तिथि निर्णय में उल्लेख है कि 'इयं प्रदोष व्यापनी साह्या, दिन द्वये सत्वाअसत्वे परा' अर्थात यदि अमावस्या दोनों दिन प्रदोष को स्पर्श न करे तो दूसरे दिन ही लक्ष्मी पूजन करना चाहिए। निर्णय सिंधु प्रथम परिच्छेद के पेज
26 पर निर्देश है कि जब तिथि दो दिन कर्मकाल में हो तो निर्णय युग्मानुसार ही करें। अमावस्या और प्रतिपदा का युग्म शुभ माना गया है। अत: प्रतिपदा युक्त अमावस्या महान फल देने वाली होती है।साथ  ही यदि  दोनों ही दिन प्रदोष को स्पर्श करे तो लक्ष्मी पूजन दूसरे दिन ही करना चाहिए। शुक्रवार, 1 नवंबर को अमावस्या साकल्या पादिता तिथि होगी, जो पूरी रात्रि और अगले दिन सूर्योदय तक मानी जाएगी। 1 नवंबर को पूरे प्रदोष काल, वृषभ लग्न व निशीथ में सिंह लग्न में लक्ष्मी पूजन किया जा सकता है ।

Dr. Sanjay Geel 
Sai AstroVision Society, Chittorgarh 
9829747053,7425999259
 

Tuesday, October 1, 2024

सर्व पितृ अमावस्‍या पर दान-पुण्‍य करने से मिलेगी पितरो की विशेष कृपा

 श्राद्ध पक्ष -2024

सर्व पितृ अमावस्‍या पर दान-पुण्‍य करने से मिलेगी पितरो की विशेष कृपा

आश्विन कृष्‍ण अमावस्‍या अथवा सर्वपितृ अमावस्या इस बार बुधवार, 02 अक्टूबर  को है। इस दिन पितृ गण पुनः देव  लोक की ओर प्रस्‍थान करते हैं एवं इस दिन पितरों के नाम से दान पुण्‍य करने से वे प्रसन्‍न होकर आपको सुखी रहने का आशीर्वाद प्रदान करते हैं , जिससे सुख समृद्धि की  प्राप्‍त होती ऐसी मान्‍यता है कि अगर आप किसी भी कारणवश तिथि पर अपने पूर्वजों का श्राद्ध नहीं कर पाए हैं तो सर्वपितृ अमावस्‍या पर उनके निमित्‍त दान-पुण्‍य करने और कुछ उपाय करने से उनको तृप्ति प्राप्‍त होती है और वे आपसे प्रसन्‍न होते हैं। आपको पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्‍त हो जाता है। गरुड़ पुराण के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की  अमावस्या के दिन पितृगण वायुरूप में घर के दरवाजे पर उपस्थित रहते हैं और अपने स्वजनों से श्राद्ध की अभिलाषा करते हैं। जब तक सूर्यास्त नहीं हो जाता, तब तक वे भूख-प्यास से व्याकुल होकर वहीं खड़े रहते हैं। सूर्यास्त हो जाने के पश्चात वे अपने-अपने लोक को चले जाते हैं। अतः अमावस्या के दिन प्रयत्नपूर्वक श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। यदि पितृजनों के पुत्र तथा बन्धु-बान्धव उनका श्राद्ध करते हैं और गया-तीर्थ में जाकर इस कार्य में प्रवृत्त होते हैं तो वे उन्हीं पितरों के साथ ब्रह्मलोक में निवास करने का अधिकार प्राप्त करते हैं। उन्हें भूख-प्यास कभी नहीं लगती। इसलिए पितृ अमावस्‍या के दिन अपने पितरों के लिए श्राद्ध अवश्य करना चाहिए । 

पितृ अमावस्या कब से कब तक

हिंदू पंचांग के आधार पर ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील ने बताया की सर्व पितृ अमावस्या आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को होती है ,  जो की इस बार   मंगलवार, 01 अक्टूबर, 2024 को रात्रि 09 बजकर 39 मिनट से प्रारंभ होकर  बुधवार, 03 अक्टूबर को रात्रि 12 बजकर 18 मिनट पर समाप्त होगी  इस प्रकार  बुधवार, 02 अक्टूबर  को  सर्व पितरो संबंधी कार्य करना उतम रहेगा ।

*कुतुप मुहूर्त -*  प्रातः 11: 46 से 12 :34  तक

*रौहिण मुहूर्त* – 12: 34  से 01 : 21  तक

*अपराह्न काल* – 01 : 21  से 03:43  तक

पितृ अमावस्या पर क्‍या करें

मुख्यतः इस दिन भगवान विष्णु के हंस स्वरूप की पूजा करें. इस दिन भी पितृगणों के लिए श्राद्ध, तर्पण व पिंडदान किया जाता है, जिससे पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जातक की हर मनोकामना पूरी होती है. सर्व पितृ अमावस्या को महालया अमावस्या, पितृ अमावस्या और पितृ मोक्ष अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है और यही पितृ पक्ष का आखिरी दिन भी होता है.  साथ ही पितृ अमावस्‍या पर सुबह जल्‍दी उठकर स्‍नान कर लें और स्‍वयं अन्‍न जल ग्रहण करने से पहले पितरों को जल दें और पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं और एक मटकी में जल भरकर वहां रख आएं। पितृ अमावस्‍या पर सुबह उठकर सबसे पहले प‍ितृ तर्पण करें। गाय को हरा चारा या फिर पालक जरूर खिलाएं। गाय को चारा डालने से पितरों को भी संतुष्टि प्राप्‍त होती है। पितृ अमावस्‍या की शाम को पितरों के निमित्त तेल का चौमुखी दीपक दक्षिण दिशा की तरफ जलाकर रखें। ऐसी मान्‍यता है देवलोक को प्रस्‍थान करने में यह दीपक पितरों की राह रोशन करता है।

पितृ अमावस्‍या पर करें दान-पुण्‍य

पूर्वजों को अमावस्‍या का देवता माना जाता है और इस दिन पितर अपनी संतान के पास आते हैं और उनके निमित्‍त दान-पुण्‍य करने की आस रखते हैं। पितरों को प्रसन्‍न करने के लिए सदैव अच्‍छे कर्म करें और पितृ अमावस्‍या के दिन जरूरतमंदों को दान-पुण्‍य करें। आपके अच्‍छे कर्मों को देखकर और आपके दान धर्म को देखकर पूर्वज आपसे प्रसन्‍न होते हैं और आपको सुखी व संपन्‍न रहने का आशीर्वाद देते हैं।

इस दिन करें पीपल की पूजा

मान्यता है कि  पीपल के पेड़ में सभी देवी-देवता और पितरों का वास होता है. इसी कारण से पीपल के पेड़ की पूजा का विधान होता है. सर्वपितृ अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की पूजा और दीपक जलाने का विशेष महत्व होता है. मान्यता है अमावस्या तिथि पर पीपल की पूजा करने पर पितृदेव प्रसन्न होते हैं । इस तिथि पर पितरों को प्रसन्न करने के लिए तांबे के लोटे में जल, काला तिल और दूध मिलाकर पीपल के पेड़ पर अर्पित किया जाता है ।

ये करे विशेष  उपाय

सर्वपितृ अमावस्या के दिन पीपल की सेवा और पूजा करने से हमारे पितृ प्रसन्न रहते हैं । इस दिन स्टील के लोटे में दूध, पानी, काले तिल, शहद और जौ मिला लें । इसके साथ कोई भी सफेद मिठाई, एक नारियल, कुछ सिक्के और एक जनेऊ लेकर पीपल वृक्ष के नीचे जाकर सर्वप्रथम लोटे की समस्त सामग्री पीपल की जड़ में अर्पित कर दें । इस दौरान 'ॐ सर्व पितृ देवताभ्यो नमः' मंत्र का जाप भी लगातार करते रहें ।

अमावस्या पर ऐसे दें पितरों को विदाई 

जो व्यक्ति पितृपक्ष के 15 दिनों तक तर्पण, श्राद्ध आदि नहीं कर पाते या जिन लोगों को अपने पितरों की मृत्यु तिथि याद न हो, उन सभी पितरों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण, दान आदि इसी अमावस्या को किया जाता है. सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों को शांति देने के लिए और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए गीता के सातवें अध्याय का पाठ करना उत्तम माना जाता है. अमावस्या के श्राद्ध पर भोजन में खीर पूड़ी का होना आवश्यक है. भोजन कराने और श्राद्ध करने का समय दोपहर होना चाहिए. ब्राह्मण को भोजन कराने के पूर्व पंचबली दें और हवन करें. श्रद्धा पूर्वक ब्राह्मण को भोजन कराएं, उनका तिलक करके दक्षिणा देकर विदा करें. बाद में घर के सभी सदस्य एक साथ भोजन करें और पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें ।

सरल पूजन विधि

1. तर्पण-दूध, तिल, कुशा, पुष्प, सुगंधित जल पितरों को अर्पित करें ।

2. पिंडदान-चावल या जौ के पिंडदान, करके भूखों को भोजन दें ।

3. निर्धनों को वस्त्र दें ।

4. भोजन के बाद दक्षिणा दिए बिना एवं चरण स्पर्श बिना फल नहीं मिलता ।

5. पूर्वजों के नाम पर करें ये काम जैसे -शिक्षा दान,रक्त दान, भोजन दान,वृक्षारोपण ,चिकित्सा संबंधी दान आदि अवश्य करना चाहिए ।