Saturday, October 5, 2024

Diwali on 31st Or 1st Nov. 2024 (दिवाली पर्व को लेकर ज्योतिषीय गणना में है इस बार मतभेद)

 

दिवाली पर्व को लेकर  ज्योतिषीय गणना में है इस बार मतभेद

इस बार दिवाली को लेकर ज्योतिर्विदो की गणना  में मतभेद नजर आ रहे  हैं, क्योकि इस बार कार्तिक अमावस्या तिथि गुरूवार, 31 अक्टूबर और शुक्रवार, 01 नवंबर 2024  दोनों दिवसों पर  रहेगी। जहाँ दक्षिणी भारत के ज्योतिर्विद दिवाली लक्ष्मी पूजा का मुहूर्त 01 नवंबर को बता रहे है , वही उत्तर भारतीय विद्वान 31 अक्टूबर 2024 को ही दिवाली मनाने का समर्थन कर रहे हैं। गुरूवार, 31 अक्टूबर 2024 गुरुवार को दिवाली मनाए जाने के पक्ष में ज्योतिर्विदो का धर्मसिंधु और निर्णयसिंधु  शास्त्रों के आधार पर तर्क है कि संध्याकाल, प्रदोष काल में और निशीथ काल में भी दिवाली मनायी जानी चाहिए ।  साथ ही इन ज्योतिर्विदो का कहना है कि सनातन में 5 दिन दीपोत्सव की परंपरा है  एवं 1 नवंबर को अमावस्या शाम 5.38 बजे ही समाप्त हो जाएगी अतः  इस स्थिति में दीपावली 31 अक्टूबर को ही मनाना श्रेयस्कर होगा।  इसी प्रकार प्रदोष काल में ही मां लक्ष्मी की पूजा का विधान  है, जबकि इस दौरान अमावस्या नहीं रहेगी, बल्कि प्रतिपदा तिथि प्रारंभ हो जाएगी अतः  इसलिए 31 अक्टूबर को ही दिवाली मनाना ठीक होगा। । वि‌द्वानों का कहना है कि दीपावली मनाने को लेकर उदयतिथि की अमावस मान्य नहीं है एवं दीपावली हमेशा प्रदोष काल  और व्यापिनी अमावस में मनाई जाती है। एक नवंबर को प्रदोष व्यापिनी अमावस नहीं मिल रही अतः 31 दिवाली मनाना श्रेयष्ठकर है ।
इसके विपरीत शुक्रवार ,01 नवंबर 2024 को दिवाली मनाए जाने के पक्ष में ज्योतिर्विदो का
स्कंद पुराण के वैष्णव खंड में कार्तिक महामात्य के आधार पर तर्क है कि तीनों ही  तिथियां को  दीपदान किया जा सकता है  यथाक्रम त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या । यदि ये संगव काल से पूर्व समाप्त हो जाती है तो  पूर्व तिथि से युक्त वाली ग्रहण करना चाहिए। इस प्रकार  1 नवंबर को संगव काल सुबह 8 बजकर 39 मिनट से 10 बजकर 54 मिनट तक रहेगा  । इसके बाद तक अमावस्या तिथि प्रारंभ होकर 06:18 तक रहेगी  इस मान से 1 नवंबर को दिवाली मनाना ज्यादा उचित  है। इसी प्रकार यदि कोई सनातनी लक्ष्मी पूजन 31 को कर लेंगे तो पितृ कार्य 1 नवंबर को देव कार्य के बाद होंगे, जबकि  देवकार्य से पूर्व पितृ कार्य करने का निर्देश है। इस प्रकार 1 नवंबर दोपहर में पितृ कार्य और इसके बाद शाम को देव कार्य कर सकते हैं। साथ ही 1 नवंबर को नंदा तिथि  भी  नहीं रहेगी जिसे की शुभ नहीं माना जाता है। निर्णय सिंधु के द्वितीय परिच्छेद पर लेख है कि 'दण्डैक रजनी योगे दर्श: स्यात्तु परेअहवि। तदा विहाये पूर्वे दयु: परेअहनि सख्यरात्रिका:' अर्थात यदि अमावस्या दो दिन प्रदोष व्यापिनी है तो अगले दिन करना चाहिए। तिथि निर्णय में उल्लेख है कि 'इयं प्रदोष व्यापनी साह्या, दिन द्वये सत्वाअसत्वे परा' अर्थात यदि अमावस्या दोनों दिन प्रदोष को स्पर्श न करे तो दूसरे दिन ही लक्ष्मी पूजन करना चाहिए। निर्णय सिंधु प्रथम परिच्छेद के पेज
26 पर निर्देश है कि जब तिथि दो दिन कर्मकाल में हो तो निर्णय युग्मानुसार ही करें। अमावस्या और प्रतिपदा का युग्म शुभ माना गया है। अत: प्रतिपदा युक्त अमावस्या महान फल देने वाली होती है।साथ  ही यदि  दोनों ही दिन प्रदोष को स्पर्श करे तो लक्ष्मी पूजन दूसरे दिन ही करना चाहिए। शुक्रवार, 1 नवंबर को अमावस्या साकल्या पादिता तिथि होगी, जो पूरी रात्रि और अगले दिन सूर्योदय तक मानी जाएगी। 1 नवंबर को पूरे प्रदोष काल, वृषभ लग्न व निशीथ में सिंह लग्न में लक्ष्मी पूजन किया जा सकता है ।

Dr. Sanjay Geel 
Sai AstroVision Society, Chittorgarh 
9829747053,7425999259
 

No comments:

Post a Comment