Wednesday, April 3, 2024

दशा माता के व्रत से दुख, दारिद्रय का नाश होकर होगा परिवार में सुख समृद्धि का संचार

 दशा माता के व्रत से दुख, दारिद्रय का नाश होकर होगा परिवार में  सुख समृद्धि का संचार
 

हिंदू परम्परा के अनुसार प्रत्येक वर्ष चैत्र कृष्ण दशमी पर महिलाओ द्वारा  घर की दशा सुधारने के लिए दशामाता  का पूजन और अनुष्ठान किया जाता है  । मुख्यतः इस दिन व्रत रखकर पीपल के वृक्ष का पूजन तथा कथा का श्रवण किया जाता है। महिलाएं कच्चे सूत के धागे में 10 गठान लगाकर इसे गले में स्वर्ण हार के रूप में ग्रहण करती हैं।  शास्त्रों के अनुसार मान्यता है इससे दुख, दारिद्रय का नाश होता है तथा परिवार में सुख समृद्धि आती है।ज्योतिर्विद डॉ. संजय गील  ने बताया हिंदू धर्म परंपरा में दशा माता व्रत का विशेष महत्व है। इस व्रत में महिलाएं दशा माता से दशविध लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करती हैं। पूजन में हल्दी से रंगे हुए सूत के कच्चे धागे में 10 गठान लगाकर पूजा अर्चना करने का महत्व है।

महिलाएं मां से मनोकामना मांगते हुए धागे में 10 गठान लगाती है। इसके बाद पूजा अर्चना कर इसे गले में पहनती है। बाद में इस धागे को घर की तिजोरी में रखा जाता है। मान्यता है इससे घर परिवार में वर्षभर सुख समृद्धि बनी रहती है। अगले वर्ष जब महिलाएं फिर से दशा माता का पूजन करने जाती है। तिजोरी में रखे धागे को साथ लेकर जाती है, इस धागे को पीपल के वृक्ष के समीप पूजन स्थल पर रख देती है और नई दशा घर लेकर आती हैं।

दशा माता की पूजा का शुभ मुहूर्त

दशा माता की पूजा के बारे में बताया जाता है कि होली के दूसरे दिन से ही महिलाएं दशा माता की 10 दिन तक अलग अलग कथा सुनती हैं। फिर चैत्र मात्र के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को दशा माता की पूजा अर्चना करती हैं और फिर पीपल के पेड़ के पास जाकर पूजा अर्चना करती हैं।  गुरूवार, 4 अप्रैल को महिलाएं दशा माता की पूजा सुबह 6 बजकर 29 मिनट से 8 बजकर 2 मिनट तक एवं प्रातः 11 बजकर 8 मिनट से दोपहर 3 बजकर 46 मिनट तक कर सकती हैं।

ये किया जाता है दशा माता के  व्रत में -  

  • इस दिन कच्चे सूत का 10 तार का डोरा, जिसमें 10 गठानें लगाते हैं, लेकर पीपल की पूजा करती हैं।
  • इस दिन महिलाएं कच्चे सूत का डोरा लाकर डोरे की कहानी कहती है तथा पीपल की पूजन कर 10 बार पीपल की परिक्रमा कर उस पर सूत लपेटती हैं तथा डोरे में 10 गठान लगाकर गले में बांधकर रखती हैं। 
  • इस डोरे की पूजन करने के बाद पूजन स्थल पर नल-दमयंती की अनोखी प्रेम कहानी/कथा सुनती हैं।
  • इसके बाद डोरे को गले में बांधती हैं। 
  • पूजन के पश्चात महिलाएं अपने घरों पर हल्दी एवं कुमकुम के छापे लगाती हैं। 
  • एक ही प्रकार का अन्न एक समय खाती हैं। 
  • इस व्रत में भोजन में नमक नहीं लिया जाता है। 
  • इस दिन विशेष रूप से अन्न में गेहूं का ही उपयोग करते हैं। 
  • यह व्रत जीवनभर किया जाता है और इसका उद्यापन नहीं होता है।
  • इसके अलावा इस दिन घर की साफ-सफाई करके घरेलू जरूरत के सामान के साथ-साथ झाडू इत्यादि भी खरीदेने का महत्व माना गया है।

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